नीति के दोहा-दोहा पचासा

नीति के दोहा-दोहा पचासा

नीति के दोहा छत्‍तीसगढ़ी

-रमेश चौहान

नीति के दोहा-दोहा पचासा
नीति के दोहा-दोहा पचासा

संस्‍कृति अउ कुरीति म अंतर कर

1.
अपन सबो संस्कार ला, मान अंध विश्वास ।
संस्कृति ला कुरीति कहे, मालिक बनके दास ।

2.
पढ़े लिखे के चोचला, मान सके ना रीति ।
कहय ददा अढ़हा हवय, अउ संस्कार कुरीति ।।

3.
रीति रीति कुरीति हवय, का बाचे संस्कृति ।
साफ-साफ अंतर धरव , छोड़-छाड़ अपकृति ।।

4.
दाना-दाना अलहोर के, कचरा मन ला फेक ।
दाना कचरा संग मा, जात हवय का देख ।।

5.
धरे आड़ संस्कार के, जेन करे हे खेल ।
दोषी ओही हा हवय, संस्कृति काबर फेल ।।

6.
दोषी दोषी ला दण्ड दे, संस्कृति ला मत मार ।
काली के गलती हवय, आज ल भला उबार ।।

सियानी गोठ

7.
झेल घाम बरसात ला, चमड़ी होगे पोठ ।
नाती ले कहिथे बबा, मान सियानी गोठ ।।

8.
चमक दमक ला देख के, बाबू झन तैं मात ।
चमक दमक धोखा हवय, मानव मोरे बात ।।

9.
मान अपन संस्कार ला, मान अपन परिवार ।
झूठ लबारी छोड़ के, अपने अंतस झार ।।

10.
मनखे अउ भगवान के, हवय एक ठन रीत ।
सबला तैं हर मोह ले, देके अपन पिरीत ।।

11.
बाबू मोरे बात मा, देबे तैं हर ध्यान ।
सोच समझ के हे कहत, तोरे अपन सियान ।।

12.
कहि दे छाती तान के, हम तोरे ले पोठ ।
चाहे कतको होय रे, कठिनाई हा रोठ ।।

सच ठाढ़े अपने ठउर

13.
चारे मछरी के मरे, तरिया हा बस्साय ।
बने बने भीतर हवय, बात कोन पतियाय ।।

14.
सच ठाढ़े अपने ठउर, घूमय झूठ हजार ।
सच हा सच होथे सदा, झूठ सकय ना मार ।।

15.
बुरा बुरा तैं सोचथस, बुरा बुरा ला देख ।
बने घला तो हे इहां, खोजे मा अनलेख ।।

16.
अपन करम ला सब करव, देखव मत मिनमेख ।
देखे मा गलती दिखय, तोरे मा अनलेख ।।

17.
जइसे होथे सोच हा, तइसे होथे काम ।
स्वाभिमान राखे रहव, होही तोरे नाम ।।

मुखिया

18.
होथे जस दाई ददा, होवय मुखिया नेक ।
गांव राज्य या देश के, मुखिया मुखिया एक ।

19.
मुखिया के हर काम के, एक लक्ष्य तो होय ।
रहय मातहत हा बने, कोनो झन तो रोय ।।

20.
काम बुता मुखिया करय, जइसे भइसा ढोय ।
अपने घर परिवार बर, सुख के बीजा बोय ।।

21.
घुरवा कस मुखिया बनय, सहय ओ सबो झेल ।
फेके डारे चीज के, करय कदर अउ मेल ।।

22.
सोच समझ मुखिया बनव, गांव होय के देश ।
मुखिया मुॅंह कस होत हे, जेन मेटथे क्लेश ।।

पीरा सहे न जाय

23.
लात परे जब पीठ मा, पीरा कमे जनाय ।
लात पेट मा जब परय, पीरा सहे न जाय ।।

24.
काम बुता ले हे बने, पूरा घर परिवार ।
काम छुटे मा हे लगे, अपने तन हा भार ।।

25.
लगे काम ला कोखरो, काबर तैं छोड़ाय ।
मारे बर तैं मार ले, अब कोने जीआय ।।

26.
काम बुता के नाम हा, जीवन इहां कहाय ।
बिना काम के आदमी, जीयत मा मर जाय ।।

दारू के लत

27.
दारू मंद के लत लगे, मनखेे मर मर जाय ।
जइसे सुख्खा डार हा, लुकी पाय बर जाय ।।

28.
तोरे पइसा देह हे, कर जइसे मन आय ।
पी-पा के तैं हा भला, काबर जगत सताय ।

29.
मान बढ़ाई तैं भला, राखे काखर सोच ।
गारी-गल्ला देइ के, लेथस इज्जत नोच ।।

30.
कुकुर असन तैं तो भुके, बिलई कस मिमिआय ।
कभू शेर सियार बने, समझ नई कुछु आय ।।

31.
बने भिखारी दारू बर, बेचे अपन इमान ।
पाछू तैं देखात हस, आन बान अउ शान ।।

धरम-करम

32.
धरम धरम के शोर हे, जाने धरम ल कोन ।
कट्टर मन चिल्लाय हे, धरमी बइठे मोन ।।

33.
पंथ पंथ के खेल ले, खेले काबर खेल ।
एक पेड़ के हे तना, तभो दिखय ना मेल ।।

34.
अपन सुवारथ मा करे, धरम करम के मोल ।
हत्या आस्था के करे, अपने बजाय ढोेल ।।

35.
भक्त बने के साध मा, मनखे हे बउराय ।
गिद्ध बाज मन ला घला, अपनेे गुरू बनाय ।।

36.
गुरू भक्ति के जोश मा, माने ना ओ बात ।
छोड़ सनातन बात ला, रचे अपन औकात ।।

37.
एक गांठ हरदी धरय, अइसन गुरू हजार ।।
चार वेद हा सार हे, होये पंथ हजार ।

38.
बेटा मारे बाप ला, अपन ल बड़े बताय ।
अइसन गुरू घंटाल हा, अपने पंथ बनाय ।।

39.
बाट सनातन धर्म ला, डंका अपन बजाय ।
सागर मा होकेे खड़ा, सागर खुदे कहाय ।।

40.
भेद संत के कोन हा, आज जान हे पाय ।
संत कभू बाजार मा, ठाठ-बाठ देखाय ।।

41.
ज्ञानी घ्यानी संत हा, करे सनातन गान।
अपन बड़ाई छोड़ के, करथे सबके मान ।।

42.
परम तत्व केे खोेज मा, रहिथे जेन सहाय ।
जंगल झाड़ी हे कहां, हमला कोन बताय ।।

43.
अपन अपन आस्था हवय, धरव जिहां मन भाय ।
धरे हवस तैं जान के, बिरथा दोश लगाय ।।

44.
तोरे आस्था हे बड़े, मोर कहां कमजोर ।
जाबो एके घाट मा, जिहां बसे चितचोर ।।

45.
तोरे आस्थ हा गढ़े, कोनो ला भगवान ।
पथरा पथरा ला मिले, तभे इहां सम्मान ।।

नीति के दोहा

46.
नई होय छोटे बड़े, जग के कोनो काम ।
जेमा जेखर लगे मन, ऊही ले लौ दाम ।।

47.
सक्कर चाही खीर बर, बासी बर गा नून ।
कदर हवय सबके अपन, माथा तै झन धून ।।

48.
निदा निन्द ले धान के, खातू माटी डार ।
पढ़ा लिखा लइका ल तैं, जीनगी ले सवार।।

49.
महर महर चंदन करय, अपने बदन गलाय ।
आदमी ला कोन कहय , देव माथा लगाय ।।

50.
सज्जन मनखे होत हे, जइसे होथे रूख ।
फूलय फरय दूसर बर, चाहे जावय सूख ।।

51.
जम्मो इंद्री बस करे, बगुला करथे ध्यान ।
जेन करय अइसन करम, होवय ओखरमान ।।

-रमेश चौहान

दोहा छंद विधान

दोहा छंद विधान को विस्‍तार से जानने के लिए कृपया इस लिंक पर जाए-दोहा छंद विधान

रमेश चौहान के छत्‍तीसगढ़ी रचना पढ़े बर इहां पधारव – छत्‍तीसगढ़ी छंद कविता के कोठी

Loading

4 thoughts on “नीति के दोहा-दोहा पचासा

  1. जम्मो दोहा एक ले बढ़के एक हे, बड़ सुग्घर, पढ़ के आनंद आगे, सुग्घर – सुग्घर दोहा बर बहुत बहुत बधाई🙏🙏

  2. नीति के दोहे नई रुप में गजब सुग्घर हे अईसन रचना रचैया चौहान साहब ला कोटि कोटि बधाई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *