
धन गौरी के लाल गणपति
धन गौरी के लाल गणपति,
सौंहत ठाढ़े मोर दुवार।
जेकर नित आशीष ले पायेन,
जग के सुग्घर मया दुलार।।
रोज बिहनिया साँझ मंझनिया,
तोरेच सुरता आथे ना ।
आठो पहर दिन रात घड़ी पल,
सुध मन तोर लमाथे ना।
दुख दलिदरी दुरिहा करके,
राखे सुख के दियना बार।
धन गौरी के लाल गनपति,
सौंहत ठाढ़े मोर दुवार।।
बैला शेर मंजूर साँप मुसुवा,
जेकर बैठे सुनता मा।
तेन जगा दुरभावना पलही,
अउ रही कोनो चिन्ता मा।
शिव दरबार के सुग्घर झॉंकी,
मन मा लेथे सदा निहार।
धन गौरी के लाल गनपति,
सौंहत ठाढ़े मोर दुवार।।
***
नौ नौ रूप धरे मोर मैंया
नौ नौ रूप धरे मोर मैंया,
महका दे फुलवारी वो।
अंतस के दियना बारे हॅंव,
आबे मोर दुवारी वो।।
मोरो घर के डेरौठी मा मैंया,
गोड़ ला अपन मड़ा दे वो।
जनम-जनम ले कलपत हवँव,
जीव ला मोरो जुड़ा दे वो।।
सेवा पुन्न कर लेतेंव मैंया,
छुटतेंव जनम उधारी वो…
अंतस के दियना बारे हँव,
आबे मोर दुवारी वो …
हर नवरात बिहनिया अंगना,
सुन्दर चौंक पुरे रहिथँव।
घर मन मंदिर उज्जर करके,
तोर सुरता मा बुड़े रहिथँव।।
गलती झन होवय डर्राथँव,
मन मा हवे दुख भारी वो…
अंतस के दियना बारे हँव,
आबे मोर दुवारी वो …
***
पंचरचित ये तन हा संगी
पंचरचित ये तन हा संगी,
माटी मा मिल जाही जी।
हवा गरेरा आही एक दिन,
तन के चियाँ उड़ाही जी।।
दुनिया के अनमोल रतन ले,
बढ़के मानुष काया हे।
आये हवे तेला जाय ल पड़ही,
जीवन जुच्छा माया हे।।
जिनगी मा बाढे हे उलझन,
कोन एला सुलझाही जी…
हवा गरेरा आही एक दिन,
तन के चियॉं उड़ाही जी….
जीवन भर तो काम बुता हे,
आ थोरिक सुसता लेथन।
धुर्रा उड़ावत सोनहा बेरा,
अँछरा मा गठिया लेथन।।
बने करम जे करही मनखे,
गीत खुशी के गाही जी …
हवा गरेरा आही एक दिन,
तन के चियॉं उड़ाही जी…
लहू के नंदिया पानी पुरा कस,
चारो मुड़ा बोहावत हे।
माटी तन के पेट बोजे बर,
जीव मुसेटत खावत हे।
पुन्न करम जे करही भैया,
उही सरग सुख पाही जी…
हवा गरेरा आही एक दिन,
तन के चियाँ उड़ाही जी…
***
जागव दीदी बहिनी
जागव दीदी बहिनी, अब तुँहरे जमाना हे।
नारी मन का नइ कर सके, करके देखाना हे।।
तइहा के ला बइहा लेगे, घूँघट कोन काढ़े वो।
नान-नान नोनी मन, अंगरेजी झाड़े वो।।
यहू मन ला वैज्ञानिक, कलेक्टर बनाना हे।
नारी मन का नइ कर सके, करके देखाना हे।।
अब चुल्हा फूँके के, दिन हा नंदा जही।
तुँहर कनखी देखई में, बेरा बंधा जही।।
अतका हिम्मत तुमला, सबला देखाना हे।
नारी मन का नइ कर सके, करके देखाना हे।।
अबला-अबला कहिके, तुँहला धिरोय हे।
जीवन के गगरी में, मही कस बिलोय हे।।
अपन गोड़ में खड़े होके, जमाना झुकाना हे।
नारी मन का नइ कर सके, करके देखाना हे।।
***
महंगाई बाढ़े मुड़ में तिहार खड़े हे
महंगाई बाढ़े मुड़ म, तिहार खड़े हे।
जरहा लकड़ी म जैसे, दियॉंर चढ़े हे।।
खेत परगे सुक्खा, धान सबे मरगे।
फसल के लालच, सकेले जिनिस ओहरगे।।
दाहरा भरोसा कर्जा के, पहाड़ खड़े हे।
जरहा लकड़ी में जैसे, दियॉंर चढ़े हे ।।
ठुठवा परगे जंगल, भुईयाँ के पानी अँटागे।
मनखे मन में स्वारथ के, आँधी झपागे।।
जीये के सबे बेवस्था, बीमार परे हे।
जरहा लकड़ी में जैसे, दियॉंर चढ़े हे ।।
दारू पी के रोज झगरा, थिराय नहीं वो।
कठवा-पथरा माँ के हिरदे, पिराय नहीं वो।।
सुख में जिनगी के सपना खुवार परे हे।
जरहा लकड़ी में जैसे, दियाँर चढ़े हे।
***
भगवान के महिमा
युग-युग ले हे भगवान के महिमा, का हे शंकाजी।
रावण असन बलशाली मन के ढहिगे लंका जी।।
सतयुग म भक्त प्रहलाद हा, श्री हरि विष्णु नाम ऊचारे।
ओकर बाप ओला लाखों बरजे, हाथी ले कुचरे पहाड़ ले कचारे।।
प्राण लेवत राक्षस थर्रागे,आखिरी म होलिका संग बारे।
होलिका बरगे प्रहलाद निकलगे, श्री हरि विष्णु नाँव पुकारे।।
भक्त के हित बर नरसिंग निकलिस, फाड़ के खंभा जी।
युग-युग ले हे भगवान के महिमा, का हे शंका जी।।
त्रेता युग म हनुमान हा, बारीस लंका राक्षस मारे ।
पूछी म चेन्दरा बॉंधे तेमें, तेल रिकोके आगी बारे।।
भगवान के महिमा भारी वो आगी, जेला छुवे भसम कर डारे।
उछले कूदे वीर बजरंगी, सोन के लंका दफन कर डारे।।
त्रेता युग म श्री राम के महिमा, बजाइस डंका जी।
युग-युग ले हे भगवान के महिमा, का हे शंका जी ।।
द्वापर युग म कृष्ण जन्म ले, बाल लीला कर जग ला मोहाये।
रणभूमि म उपदेश दे जग म, गीता के गंगा ला बोहाये।।
अर्जुन के बन संगी सारथी, विकट महाभारत युद्ध रचाए।
दुर्योधन के अत्याचार म, द्रोपदी के चीर बढ़ाये।।
भरे सभा कोनो नइ देखिस, सब होगे अंधा जी।
युग-युग ले हे भगवान के महिमा, का हे शंका जी ।।
कलयुग म जनम लेते लइका, राम-राम कहि राम पुकारे।
रामबोला सब कई दिन ओला, मूल नक्षत्र डर घर कर डारे ।।
दासी संग लइका ल मइके पठो के, माता हुलसी सरग सिधारे।
राम भक्ति भुलाय तुलसी के, रत्नावली आँखी उघारे।।
कलयुग म रामचरित मानस के, बजाइस डंका जी।
युग-युग ले हे भगवान के महिमा, का हे शंका जी।।
०००
मोर अंगना में आबे रे
मोर अंगना में आबे रे, उड़के सोन चिरैय्या।
चूँ-चूँ चह-चह चुग-चुग दाना,
नरियाबे उड़ जाबे।
फुदक-फुदक के फुदकी धुर्रा, में डेना फरियाबे
निरभय दाना चुगहू सब झन, नइ हे बनबिलैय्या।
मोर अंगना में आबे रे, उड़के सोन चिरैय्या।।
किसम-किसम के फूल बाड़ी में, बारो महीना फुले रथे।
अलग-अलग मौसम में सुग्घर, फर डारा में झुले रथे।।
गोदा दसा परिवार बसाले, नइ हे कोनो सतैय्या।
मोर अंगना में आबे रे, उड़के सोन चिरैय्या।।
कतको चिरई चिरगुन के कुंदरा, खोंड़रा डारा में बने हवे ।
वहूमन दुनिया भर के कतको, रुख राई ला गने हवे।।
किसम- किसम के फूल खिले हैं, मन ला मगन करैय्या।
मोर अंगना में आबे रे, उड़के सोन चिरैय्या।।
०००
अन्नदाता किसान के कोन हे देखैय्या
अन्नदाता किसान के, कोन हे देखैय्या।
जहू तहू मिलथे एला, चुसैय्या सतैय्या।।
अन्नदाता किसान के कोन हे देखैय्या…
कुलुप अंधियारी, एकर जिनगी के रद्दा।
गरीबी लाचारी के, एकर घर में अड्डा।।
टोंटा के आवत ले, करजा में बूड़े हे।
संसो फिकर में, नींंद एकर उड़े हे।।
कहॉं बिलागे सुराज के रटैय्या…
अन्नदाता किसान के कोन हे देखैय्या…
बिपत ले उबरे के, उदिम उल्टा होगे।
का करे बिचारा के, करम कुलटा होगे।।
धान गहूँ सुक्खा मरगे, बंगाला कीम्मत मा।
साग भाजी दवई में बूड़े, जीयत हवे जिल्लत मा।।
कती लुकागे विकास के रटैय्या…
अन्नदाता किसान के कोन हे देखैय्या…
तन एकर कोइला परगे, हाड़ा हपटके।
अरझे लबडेना मुड़ी में, गिरगे बखत के।।
खेती बाड़ी ला छोड़े के, सोंचथे किसान गा।
खेती किसानी हमर भारत के शान गा।।
दाना-पानी बिन मर जही, सोन चिरैय्या…
अन्नदाता किसान के कोन हे देखैय्या…
एकर पहिली खेती मरे, चेत करो भैय्या हो।
किसानी ला मरन झन देव, देश के खेवैय्या हो।।
भ्रष्टाचारी चीथ-चीथ, मॉंस बर लड़थे।
जरे में नून झन डारव, ये आगी में बर थे।।
खेत में फॉंसी लगैया, जहर के पियैय्या…
अन्नदाता किसान के कोन हे देखैय्या…
०००
उठो किसनहा सब मिलजुल के
उठो किसनहा सब मिलजुल के, सुम्मत दीया जलाना हे।
अंधियार के छाती चीर के, नवाँ बिहनिया लाना हे।
चारों डाहर काँटा खूँटी, बंजर खाई के रद्दा।
अउ ओमा जैछार बड़ोरा, ले बच के घर जाना हे।
मोटरा जोरे टोपा बॉंधे, जिनगी घानी के बैला।
चल कोनों मेर सुख के छैंहा, में थोरिक सुसताना हे।
पर के कमई में इतराये, बैठांगुर घुँस मुसवा मन।
उही किसान के हँसी उड़ाथे, बात कतिक बचकाना हे।
साँप बिला में हाथ डारो झन, पहिली वोला गुंगुवादव।
दोरदिर-दोरदिर निकलत जाही, लौठी में घटकना हे।
लिखे अशोक आकाश सियनहा, नवॉं किसानी जोगों रे।
जब तक तुमन सचेत नइ रहू , करजा में चपकाना हे।
०००
धरती मैया के जीवन रेखा
धरती मैया के जीवन रेखा, नंदिया जेला कहिथे।
धरती मैया असन यहू हा, सरी दलिदरी सहिथे।।
कल-कल कल-कल बोहाय नंदिया,
छल-छल छल-छल पानी।
हमर पुरखा जंगल नंदिया,
संग जीये जिनगानी।।
तभे तो भारत भुईंयाँ के मनखे, नंदिया ल दाई कहिथे।
धरती माता असन यहू हा, सरी दलिदरी सहिथे।।
धरती में विकास के धारा,
नदिया ले बोहाथे।
भारत भुईंयाँ में नंदिया ला,
तीरथ कही बलाथे।।
बड़े-बड़े विकसित शहर मन,नंदिया तीर में रहिथे।
धरती माता असन यहू हा, सरी दलिदरी सहिथे।।
मनखे मन विकास के धारा,
नदिया के संग चढ़गे।
मनखे आगू बढ़ गए भैया,
नंदिया सुक्खा परगे।।
सबो शहर के गंदा पानी, नंदिया मन में बहिथे।
धरती माता असन यहू हा, सरी दलिदरी सहिथे।।
पार तीर में पेड़ लगाओ,
सप्फा राखो नंदिया ।
नरवा मन में पानी रोको,
हरियर राखो बंधिया।।
मनखे स्वस्थ रथे जे नंदिया के, पानी फरियर रहिथे।
धरती माता असन यहू हा, सरी दलिदरी सहिथे।।