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पंचांग क्‍या है ? पंचांग कैसे देखा जाता है ?

पंचांग क्‍या है ? पंचांग कैसे देखा जाता है ?

पंचांग क्या है ?

‘पंचांग काल-प्रमाणों का लेखा-जोखा होता है ।’ पंचांग एक ऐसी विवरण पत्रिका जिसमें पूरे वर्ष का काल गणना होता है । यह हिन्दू वर्ष का काल गणना होता है । विक्रम संवत, शकसंवत सबका का अलग-अलग पंचांग होता है । हम यहाँ विक्रम संवत पर चर्चा कर रहे हैं । एक वर्ष में 12 माह होते हैं । प्रत्येक माह के दो पक्ष होते पहला कृष्ण पक्ष दूसरा शुक्ल पक्ष । पंचांग में विवरण मास अनुसार न होकर पक्षवार होता है इस प्रकार पंचाग में 24 पक्षों का विवरण होता है यदि किसी वर्ष अधिमास हो तो उस वर्ष 26 पक्ष होते हैं । प्रत्येक पक्ष में पाँच प्रकार के समय सूचक शब्द होते है । पंचांग के नाम से ही स्पष्ट है इसमें पाँच अंग होते हैं -तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण ।

ज्‍योतिष में पंचांग का महत्व-

ज्योतिष काल गणना के आधार पर भविष्य कथन करने की वैदिक विधि है । ज्योतिष के द्वारा भविष्यवाणी करना पूरी तरह से एक गणतीय प्रक्रिया और गणना पर आधाररित है । इस गणना का आधार पंचांग होता है । पंचांग के बिना ज्योतिष की कल्पना भी नहीं की जा सकती है ।

पंचांग के अंग-

पंचांग के पांच अंग होते हैं-

  1. तिथि
  2. वार
  3. नक्षत्र
  4. योग
  5. करण

पंचांग में विवरण-

पंचांग में पांचों अंगों के जानकारी के पहले सबसे ऊपर विक्रम संवत और शक संवत दिया रहता है । इसके नीचे या समान्तर में चन्द्रमास, पक्ष, गोल और ऋतु दी रहती है ।

चन्द्रमास-

चन्द्रमा गति के गणना के आधार पर जो माह निर्धारित किये जाते हैं, उसे ही चन्द्र मास कहते हैं । चन्द्र मास दो प्रकार के होते हैं-

  1. अमान्त मास-यह चन्द्र मास शुक्ल प्रतिपदा से अमावस्या तक रहता है । यह दक्षिण भारत में प्रचलित है ।
  2. पूर्णिमान्त मास- यह चन्द्र मास कृष्ण प्रतिपदा से पूर्णिमा तक रहता है । यह मास उत्तर भारत में प्रचलित है ।

हिन्दी मास या चन्द्र मास-

चन्द्रमास की संख्या 12 है –

  1. चैत्र
  2. बैसाख
  3. ज्‍येष्‍ठ
  4. आषाढ़
  5. श्रावण
  6. भद्रपद
  7. आश्विन
  8. कार्तिक
  9. मार्गशीर्ष
  10. पौष
  11. माघ
  12. फाल्गुन

पक्ष-

चन्द्र मास में दो पक्ष होते हैं । पहला कृष्ण पक्ष इसे बदी भी कहते हैं । कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक कृष्ण पक्ष होता हैं । दूसरा शुक्ल पक्ष इसे सुदी भी कहते हैं । शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष होता है ।

गोल-

आकाश मण्डल जो गोलाकार होता है के दो भाग किये जाने पर ऊपरी भाग के मध्य में उत्तर ध्रुव और दूसरे भाग के मध्य में दक्षिण ध्रुव होता है । इन्हें ही क्रमशः उत्तर और दक्षिण गोल कहते हैं । उत्तर गोल में मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशि होती हैं । तुला, वृश्चिक, धनु,मकर, कुंभ, और मीन राशियां दक्षिण गोल में होती हैं ।

ऋतु-

12 सौर मास में 2-2 माह की छः ऋतुएं होती है । उत्तरायण में तीन ऋतुएं क्रमशः शिशिर, बसन्त और ग्रीष्म होते हैं । दक्षिणायन में वर्षा, शरद और हेमंत ऋतुएं होती हैं ।

पंचांग कैसे देखा जाता है ?

पंचांग मूलत- एक सारणी के रूप में होता है जिसमें विभिन्‍न क्षैजित एवं ऊर्ध्‍वाधर पंक्तियां होती हैं । इसमें सभी जानकारी दी गई रहती है इसे निम्‍नक्रमानुसार देखा जाता है-

तिथि-

पंचाग का यह पहला अंग है । इसलिये सबसे पहले ऊर्ध्वाधर स्तंभ में तिथियों की संख्या दी जाती है ! शुक्ल पक्ष में यह तिथि 1 से 15 तक एवं कृष्ण पक्ष में 1 से 14 और अंतिम तिथि को 30 लिखा जाता है । इस प्रकार पूर्णिमा तिथि को 15 और अमावस्या तिथि को 30 लिखा जाता है । तिथि के आगे के स्तंभ में तिथि समाप्ति काल दिया रहता है । दोनों पक्षों क्रमशः 1 से 14 तक की तिथि को क्रमशः 1.प्रतिपदा, 2.द्वितिया, 3.तृतीया, 4.चतुर्थी, 5.पंचमी, 6.षष्ठी, 7.सप्तमी, 8.अष्टमी, 9.नवमी, 10.दशमी, 11.एकादशी, 12.द्वादशी, 13.त्रयोदशी और 14.चतुदर्शी कहते हैं । शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि 15 को पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि 30 को अमावस्या कहते हैं ।

वार-

वार पंचाग का दूसरा अंग होता है, इसलिये इसे तिथि स्तंभ के ठीक बाद दिया जाता है जैसे कि आप सब जानते है वार 7 होते हैं सोमवार या चंद्रवार, मंगलवार, बुधवार, गुरूवार, षुक्रवार, षनिवार और रविवार । पंचाग में इनके संकेताक्षर क्रमषः चं, मं, बु, गु, शु, श, र प्रयोग में लाई जाती है ।

पंचांग की पहले स्तम्भ में तिथि दूसरे स्तम्भ में वार और तीसरे स्तम्भ में तिथि समाप्ति का समय दिया रहता है ।

नक्षत्र-

नक्षत्र पंचांग का तीसरा महत्वपूर्ण अंग होता है । इसे तिथि समाप्ति स्तम्भ के तत्काल बाद दिया रहता है । नक्षत्रों की संख्या 27 होती है, इस स्तम्भ में इन नक्षत्रों का नाम दिया रहता है इसके बाद नक्षत्र समाप्ति का समय दिया रहता है । इन नक्षत्रों का नाम इस प्रकार है-

  1. अश्विनी
  2. भरणी
  3. कृत्तिका
  4. रोहणी
  5. मृगशिरा
  6. आर्दा
  7. पुनर्वसु
  8. पुष्य
  9. आश्लेषा
  10. मघा
  11. पूर्वा फाल्गुनी
  12. उत्तरा फाल्गुनी
  13. हस्त
  14. चित्रा
  15. स्वाति
  16. विशाखा
  17. अनुराधा
  18. ज्येष्ठा
  19. मूल
  20. पूर्वाषाढ
  21. उत्तराषाढ़
  22. श्रवण
  23. धनिठा
  24. शतभिषा
  25. पूर्वाभाद्रपद
  26. उत्तरा भाद्रपद
  27. रेवती

योग-

योग पंचांग का चौथा अंग होता है इसे नक्षत्र समाप्ति स्तम्भ के बाद दिया जाता है । इन्हें संकेताक्षरों में दिया जाता है । यह इस प्रकार है-

  1. वि.- विश्‍कुंभ
  2. प्री.- प्रीति
  3. आयु.- आयुष्मान
  4. सौ. -सौभाग्य
  5. शो. – शोभन
  6. अति. – अतिगंड
  7. सु. – सुकर्मा
  8. धृ. -धृति
  9. शू. -शूल
  10. ग. – गंड
  11. वृ. – वृद्धि
  12. ध्रु. -ध्रुव
  13. व्या. -व्याघात
  14. ह. -हर्षण
  15. व. -वज्र
  16. सि. -सिद्धि
  17. व्य. – व्यतिपात
  18. वरी. – वरीयान
  19. परि. – परिधि
  20. शि. – शिव
  21. सि.- सिद्ध
  22. सा. -साध्य
  23. शु. -शुभ
  24. शु. -शुक्ल
  25. ब्र. -ब्रहम
  26. ऐ. – ऐन्द्र
  27. वै. -वैधुति

करण-

करण पंचांग का पांचवा अंग है ! योग के बाद संकेताक्षरों में करण दिये रहते हैं । किसी भी तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं एक तिथि में दो करण होते हैं । तिथि के पूर्वार्ध को पहला करण और उत्तार्ध को दूसरा करण कहते हैं । इस प्रकार करणों की संख्या 30 है ।

शुक्‍ल पक्ष की तिथिपूर्वार्धउत्‍तरार्ध
1 प्रतिपदाकिंस्तुध्नबव
2 द्वितियाबालवकौलव
3 तृतियातैतिलगर
4 चतुर्थवणिजविश्टि
5 पंचमीबवबालव
6 षष्‍ठीकौलवतैतिल
7 सप्‍तमीगरवणिज
8 अष्‍टमीविश्टिबव
9 नवमीबालवकौलव
10 दशमीतैतिलगर
11 एकादशीवणिजविश्टि
12 द्वादशीबवबालव
13 त्रयोदशीकौलवतैतिल
14 चतुर्दशीगरवणिज
15 पूर्णिमाविष्टिबव
कृष्‍ण पक्ष की तिथिपूर्वार्धउत्‍तरार्ध
1 प्रतिपदाबालवकौलव
2 द्वितियातैतिलगर
3 तृतियावणिजविश्टि
4 चतुर्थबवबालव
5 पंचमीकौलवतैतिल
6 षष्‍ठीगरवणिज
7 सप्‍तमीविश्टिबव
8 अष्‍टमीबालवकौलव
9 नवमीतैतिलगर
10 दशमीवणिजविश्टि
11 एकादशीबवबालव
12 द्वादशीकौलवतैतिल
13 त्रयोदशीगरवणिज
14 चतुर्दशीविष्टिबव
30 अमावस्‍याचतुष्पदनाग

पंंचांग में अन्‍य जानकारियां-

पंचांग में दायीं ओर दैनिक सूचनाएं जैसे-व्रतोत्सव, चन्द्र दर्शन, ग्रहों का राशि संचार, ग्रहों का उदायास्त, भद्रा उदय व अस्त, पंचक, ग्रहों का नक्षत्रों में संचार, सायन सूर्य राा का संचार ऋतु परिवर्तन, संक्रांति का प्रवेश समय आदि अनेक सूचनाएं दी रहती है ।

पंचांग के नीचे की और साप्ताहिक मिश्र कालीन या प्रातः कालीन या 5 घंटा 30 मिनट के ग्रह स्‍पष्‍ट दिये रहते हैं और सूर्योदय कालिक कुंडली दी रहती है ।

-रमेश चौहान

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12 responses to “पंचांग क्‍या है ? पंचांग कैसे देखा जाता है ?”

  1. सुखदेव सिंह अहिलेश्वर Avatar
    सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
    1. Ramesh kumar Chauhan Avatar
      1. Amit sahu Avatar
        1. Ramesh kumar Chauhan Avatar
  2. सत्यधर बान्धे Avatar
    सत्यधर बान्धे
    1. Ramesh kumar Chauhan Avatar
  3. Maniramsahu Avatar
    Maniramsahu
    1. Ramesh kumar Chauhan Avatar
  4. Mohit Pandey Avatar
    Mohit Pandey

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