परिवार पर छत्तीसगढ़ी कविता
-धर्मेन्द्र निर्मल
परिवार पर छत्तीसगढ़ी कविता
बाबूजी
धराके अँगरी बचपन ले, रेंगे ल सिखाथे बाबू जी।
सुख दुख ल जग जिनगानी के कहिनी म सुनाथे बाबू जी।।
जाड़ म कथरी बरखा छतरी, छाँव घाम म बन तन जाथे।
नहाके अपन पसीना म हमला ओगराथे बाबू जी।।
गलती म जब डाँट पियाथे, लगथे दुनिया रूठगे का।
रतिहा ओढ़ा मया के कथरी, भर नींद सुलाथे बाबू जी।।
नइ बोलय धुँधरागे तस्मा, बाँधे डाँड़ी के जगहा सुँत।
धोती सीलत सुजी म कँदरे, अँगरी चुभाथे बाबू जी।।
पहिन लेथन पनही ओकर फेर, पाँव के पार नइ पावन।
पाकत देख चुँदी मुड़के पागा पहिराथे बाबू जी।।
भाई
भाई बरोबर भुजा नहीं
लहू ले बढ़के दूजा नहीं
भाई संग होवय मया अपार
एक नेक रहय परिवार
महाभारत के अर्जुन धनुर्धर,
बलराम कन्हाई के हलधर।
बनवास बेरा सेउक लखन,
भरत खड़ाउ के राज रतन।
ढहगे रावन, दहगे लंका, बहगे बालि के बल अपार
मिल बइठ भाई संग मया बाँट,
सुख दुख के चटनी ल चाँट।
नइ मरय परोसी के मारे साँप,
परके उभरौनी मंसा पाप।
करम कभू नइ जाय अबिरथा, जइसन विचार वइसे संसार
परबुधिया झन हो बात समझ,
निर्भय मिल, रख बात , समझ।
दुख देके अपने ल का पाबे,
भलकुन एक दिन बड़ पछताबे।
इहें सरग सुख इहे नरक दुख, सब तोर करनी के भण्डार
मत अटक खटक हँस बोल बता,
हटके बचपन ल कर सुरता।
झन झटक धर भाई के हाथ,
झुके म खियावय नहीं माथ।
ककरो हक मारे फूरय नहीं, भाई के हक कभू झन मार
बेटी के पुकार
झन करौ गा भेद
महूँ संतान अँव
विधि के विधान अँव
बचपन म पाँव के पइरी सरग ले सुहाथे
घर के बूता म दाई ल हाथ कोन बँटाथे
लीप पोत अँगना दुवार कोन सजाथे
लछमी दू दिन के मेहमान अँव
जोड़थँव बिहाके मैं दू ठिन परिवार ल
ए घर ले वो घर ले जाथँव संस्कार ल
सहि पीरा कोख ले जनमथँव संसार ल
सोचव तो मैं जग के जान अँव
सोचव महतारी तुँहर रहिस ककरो बेटी
जेकर ले बिहाव रचे उहू ककरो बेटी
कहाँ पाहू बहू जब मारत जाहू बेटी
सक्ति के जीयत परमान अँव
बेटी के बिदाई
पहुना होगे बेटी, सुन्ना परगे
दाई ददा के कोरा गँवई,
अन्न अमागे कोठार ले कोठी,
खड़े खेत रोवय नरई,
गिर जाय भले घेंच ले गेरूआ,
टूटय नहीं कभू नता के नेरूआ,
हम तो आवन वो पिरिया के झिरिया,
कहिथे इही आवय सरग के सिढ़िया,
धधकत हे छाती जस कोनो भट्ठी,
रही रही आँखी के छलकई
कोजनि बहुरिया कइसन खवाही,
तोर पुतरी-पुतरा अबड़ बिजराही,
बईला के आरो पा भात निकल जय,
हरहिंसा दाई तोर पारा भर किंदरय।
घर ल बोंमियाही भाँय ले करके,
सुरता के गली म तोर किलकई।
रेहेस हमर बर जस गहना तैंहा
बनिस जइसे पाल देहन छँईंहा,
झोरी ल असाढ़ पानी कस छोड़े
जाके के समुन्द संग नाता जोरे,
आबो जाबो झन तैं सुरहरबे,
रीत ए सुख दुख अवई जवई।
बेटा
सूझ बूझके जूझबे बेटा
रन म दुनिया के।
जगह जगह शकुनि दुर्योधन
ब्यूह रचे हे मया के।।
शान से जीबे हे असीस
मन से करबे हर काज।
मान समाज म अपन बढ़ाबे
रख लेबे हमरो लाज।।
सुख दुख सब करम के फल
सरग परिवार सुमत मया के
खेल खा लेहूँ संग लइकन
नइ चाही भोग संसार के।
गोठिया लेबे बइठ चिटिक
दू टूक मया संस्कार के।।
अँगरी के जगहा लाठी धरा देबे
झन रेंगबे कभू तिरिया के
हिरदे के हण्डा मन के मूरत
तन के तैं प्रतिरूप हमर।
महक मोंगरा मन जस अँगना
जस चंदैनी अगास बगर।।
गीता ग्यान मानस के मान ले
तन मन जीवन फरिहा के।।
लोरी-(दाई के दुलार)
(1) बेटा बर
मोर आँखी के पुतरी
हिरदे बाँधे मया के सुतरी
मोर जिनगी के अधार
तोर बर जनम कई वार
काँटा गड़य झन कभू तोर पाँव
परय कभू झन बिपत के छाँव
तोर सबो दुख ल मैं भोग लेवँव
मोर सरी सुख होवय तोरे नाँव
तोर ले मोर संसार
होवय उही जउने तैं चाहस
भाग भागे आवै जेति जावस
सोचे झन पावस पूरै मनकामना
दुनिया म अपन जस बगरावस
तोरे रहय सबो सार
जुग जुग जी हो नाम अम्मर
कमती परय सरग सुख तोर बर
तोर मुसकाए ले मोर दुख पीरा
सुख जावय जर झरके बर बर
बोहावय निरमल धार
(2) बेटी बर
सोजा सोजा बेटी राजकुमारी
करबे बिहिनिया ले शेर सवारी
रेंगे तैं छुन छुन सुन घर लेथे साँस
बइठे हिरदे भीतरी मुच मुच हाँस
रूप तोर लछमी दुरगा सरसुती
जनमें जग म जग सिरजाए के सेति
सजाथस लीप चउँक अँगना दुवारी
जाबे तैं लछमी जस सज ससुरार
डोली भर घर ले ले जाबे संस्कार
घर परिवार के मान बढ़ाबे
जग ल नारी के महात्तम बताबे
रूप बेटी बहू बहिनी महतारी
एके तोर पढ़े ले घर भर पढ़ही
तोर चाल चलन पाछू दुनिया बढ़ही
दहेज लेवइया बर नवदुरगा बन जा
कोख गिरइया बर बन सुरसा तन जा
शक्ति ! तैं जग ले मिटा अत्याचारी
लक्ष्मी भौजी
लक्ष्मी भौजी आगे
तन मन उमंग छागे
नीक सरग अस लागे ना
मोर घर अँगना
चाँदनी रथ म बइठ चंदा उतरगे
सितारा साड़ी पहिन रतिहा संवरगे
मटमटही रात रानी गिज गिज हाँसत
हवा के हाथ धरे घरो घर किंदरगे
अँखिया के सुकुवा ले करे जब इसारा
धरती लजाके हाँसे ना
अपन सरग सही घर के संस्कार
गढ़े बर आए धरे नवा संसार
फूल जस चेहरा म कोयली के बानी
महमहाए घर भर छाए बहार
संझा बिहिनिया सजा थारी आरती
गावय गीत मंगला
जीयत-जागत भगवान दाई-ददा
गाड़ी चढ़गेव माने हवा म झन उड़ावव
धन दोगानी पाके अतेक झन अँटियावव
सुख सुबिधा म दया मया ल झन भुलावव
अपन मरे बिन सरग नइ दिखय
फेर कोन आए हे लहुट के
बताए बर सरग ले सरग के हाल
सरग अउ नरक
भइगे जिनगी के रद्दा तो आय
जेला बनाथे खुद मनखे के चाल।
सोन चाँदी म सुतत हस का भइगे
फुल फुल ले दिखत हस का भइगे
नींद बँड़वा हे मन खँचवा हे।
दिन रात लाहकत हस कुकुर कस इहाँ उहाँ
दवा दारू के भरोसा जीयत हस खातू कस
समाज म देखबे त नाक कान बुचुवा हे।
कुकुर के मुँहु ल चाँटत हस चुमत हस
मनखे के संग म बेवहार करूवा हे
अइसनो जिनगी का काम रे भाई।
मन म चैन आँखी भर नींद
तन भर सेहत अउ का चाही
सरग के सुख इही जिनगी के कमाई।
वो दुनिया के बनइया
दूए पाँव म तीनो लोक नपइया
ओकर आगू म तैं का टिकबे।
तोर चढ़ाये दू रूपिया के मोहताज नइहे
नइहे तोर कस भुखमर्रा मूठा भर अन्न के
भोरहा म झन रहिबे।
दान करेच बर हे पुन कमाएच बर हे
त मंदिर म चढ़ावा के देखावा ल छोड़
कोनो भुखाय ल दू कौरा खवा दे।
कोनो दुखिया के आँसू पोंछ
कोनो हपटे भटके ल रूक के रस्ता बता
सियान के हाथ ल धर रस्ता पार करा दे।।
इंकर दुवा ले सरग दउड़े चले आही
इन धरती के अइसे जीयत जागत भगवान ये
दण्डवत ढलंग जा, मुड़ ल मड़ा दे गोड़।
दाई ददा के असीस
हर कोनो ल हरेक बेरा म
हरेक जघा नइ मिलय किस्मत वाले के छोड़।।
जिनगी ल तोर नाम लिखेहँव (जाँवर जोड़ी के मया)
जिनगी ल तोर नाम लिखे हँव
समे परे म ऊँच नीच म
झन छोड़ देबे हाथ बीच म
मन ल बोरे सपना म रतिहा
मँझन पहाती साँझ लिखे हँव
रहिबे साँस म आवत जावत
भूल कोनो होही समझावत
रूठहूँ मनाबे झन बिसराबे
संग म तोर चार धाम लिखे हँव
बनके बादर मया बरसाबे
मन के भुर्हंया ल हरियाबे
छिटक चँदैनी कस जिनगी म
बाँह म तोर अराम लिखे हँव
मया के राखी
धागा भर झन समझबे मोर मया के राखी
अंतस के आँखी
सपना के पाँखी
सुरता के साखी
मोर मया के राखी
नानपन के नान्हे नान्हे खेल म लइ़ई मनई
थोरको नइ देखे म कहाँ हे कहिके पूछई
ददा तीर नानकुन बात के लिगरी लगई
डाँट खवा भीतरे भीतर रस ले मुसकई
फर्ज अउ अधिकार ए कलई के राखी
मिल बाँट पुन्नी मेला के मिठई खवई
जादा खा लिस जूठार दिस कहिके रिसई
मोर सुग्घर नवा कपड़ा कहिके चिचियई
मिल बइठ एक दूजे के ससन भर बड़ई
गरब अउ गुमान भरे भलई के राखी
बूढ़ी दाई के संग म सुते बर झगरई
रोजेच के रोज एके कहिनी के सुनई
मै देहूँ हूँकारू कहिके करलई मतई
कहिनी के मुँहाटी म वो नींद के परई
मीठ अम्मठ खीर तसमई सेवई के राखी
मोर दाई
मोर दाई
सबले बने
सबले सुग्घर
सियान अऊ सुजान
मोला हरदम चेतावय
बेटा !
जउन तोर मन करय
तउन खा
खेल अऊ कर।
खाए बर खाबे
फेर अतका धियान रखबे
बेटा !
मुँह के सुवाद भले बिगड़ जय
पेट झन बिगड़य।
खेले बर खेलबे
फेर अतका धियान रखबे
बेटा !
हार के घलो प्रसन्न हो जाय
काकरो मन झन टूटय।
करे बर करबे
फेर अतका धियान रखबे
बेटा !
गला भले कटा जय
नाक बाँचे रहय।
जउन करबे
तन, मन, धन लगाके करबे
अतका धियान रखबे
बेटा !
जिनगी भले खुवार हो जय
स्वाभिमान अम्मर रहय।
-धर्मेन्द्र निर्मल 9406096346