पेंग बाल नाटक संकलन नाटक-1: ऊर्जा गीत-रवीन्द्र प्रताप सिंह

पेंग बाल नाटक संकलन-

पेंग बाल नाटक संकलन पांच नाटकों का संग्रह जिसे हम धारावाहिक क्रम में पेंग के पांच नाटकों का प्रकाशन कर रहे हैं । इसके पहले भाग में प्रस्‍तुत है बाल नाटक ‘ऊर्जा गीत’ ।

नाटक-1: ऊर्जा गीत

-रवीन्द्र प्रताप सिंह

पेंग बाल नाटक संकलन  नाटक-1: ऊर्जा गीत-रवीन्द्र प्रताप सिंह
पेंग बाल नाटक संकलन नाटक 1: ऊर्जा गीत-रवीन्द्र प्रताप सिंह

पात्र

खोब : बच्चा
लीड : कुत्ते का छोटा बच्चा

समय

सुबह छह बजे

स्थान

पार्क

:

(खोब पार्क में एकांत में बैठा गीत गा रहा है। )

नभ है नीला , मेरी आँखें नीली नीली
क्यों मैं बैठा ही रह जाऊं
क्यों न मैं भी उड़कर आऊं।

(अचानक सरसराहट की आवाज़। )

खोब : अरे कोई बोल रहा है , कोई है क्या पार्क में…कोई नहीं है। अभी तो सब जगे ही नहीं होंगे बच्चे। सिर्फ खोब जग सकता है , इतनी सुबह । मैं अपना ऊर्जा गीत गाऊँगा।

(गीत गाता है )
आसमान में उड़कर आऊँगा
पक्षी उड़ते , बादल उड़ते
उड़ती रहती पर फैलाये
रंग बिरंगी चिड़िया कितनी
कितने प्यारे प्यारे तोते
हरे कबूतर , लाल कबूतर।

(अचानक कूद कर लीड आ जाता है। )
खोब : अरे उन तो डरा दिया , लीड !
लीड : डर गया , वह भी मुझसे , दोस्त से अपने !
खोब : अरे नहीं लीड , डरता थोड़े हूँ किसी से , यूँ ही चौंक गया !
लीड : (मुस्कराता है )अरे हाँ ! चौंक गया बस , (हँसता है ….हाँ तो अच्छा ये बता , हरे कबूतर, लाल कबूतर , ये कहाँ होते हैं !
खोब : अरे पिल्ले , ये तो मेरा ऊर्जा गीत था , उसमे ही बोल दिया मैंने !
लीड : तो तू ,ऊर्जा गीत में कुछ भी बोलता है , खोब ! भाई मुझे तो कभी भी हरा पिल्ला , लाल पिल्ला नहीं बोला ! और तो और , कहता क्या है तू , की मेरा सबसे अच्छा दोस्त है !
खोब : तो ये बात है ! इसमें क्या ! ले अभी ले … बोलता हूँ … हरा पिल्ला , लाल पिल्ला! हरा पिल्ला , लाल पिल्ला! अब ये बता , मैं क्या कहूँ , की तू मेरा सबसे बड़ा दुश्मन है।
लीड : हाँ , कह सकते हो ! (मुंह बिचकाते हुए। )
खोब : अच्छा छोड़ , ये बता भाई , मैं तो ऊर्जा गीत गाते गाते थक गया , इतने दिन से , लेकिन उड़ नहीं पाया।
पिल्ला : अरे मुझे भी तो उड़ना था , कितने ऊर्जा गीत गाये , कितने दिनों से , तूने ही तो बताया था !
बच्चा : चल दोनों साथ साथ गाते हैं , हो सकता है एक और एक ग्यारह की ताकत मिले !
(दोनों हँसते हैं। )
लीड : अरे खोब , दोस्त तो एक और एक ग्यारह का ही काम करते हैं !
खोब : हाँ -हाँ , अच्छा चल गाते हैं !
लीड : कौन वाला ?
खोब : हम ऊर्जा से
लीड : हम ऊर्जा से …. (धीमे स्वर में , जैसे स्वयं से) … थोड़ा भूल रहा हूँ , अच्छा हाँ , याद आया , आ गया याद !
खोब: आ गया याद…
लीड : हाँ , हाँ !
खोब : तो जब हम बोलें , तब तू गाने लगना !
लीड : कोड है कोई क्या ?
खोब : हाँ , आम मतलब गाना , तरबूज़ मतलब रुक जाना। (चिल्लाकर ) आम !
लीड : अरे थोड़ा रुक कर भाई !
खोब : तरबूज़ ! क्यों तरबूज़ कहना पड़ा !
लीड : अरे मैं आम के लिए तैयार नहीं था !
खोब : क्यों ?
लीड : (अपनी गर्दन को कसरत की तरह घुमाते हुये अपने को तैयार करता है। ) हाँ अब तैयार हैं हम आम के लिए।
खोब : तो ठीक है। बोलें ?
लीड : हाँ भाई , क्यों देर करते हो ?
खोब : (चिल्लाते हुये ) आम !
(खोब की चाची पास से गुजरते हुये )
चाची : अरे कौन चिल्लाया आम ? (खोब की तरफ देखते हुये ) बेटे तुम… मेरा बच्चा !
खोब : हाँ चाची !
चाची : आम खाना है , बच्चा !
खोब : (झुंझलाते हुये ) हाँ , तो दे दीजिये आम !
चाची : ला देंगे बच्चा , बाग से…
लीड : (मुस्कराते हुये ) एक बात बोलूं खोब , देख बड़े लोग हम बच्चों की बातों को कैसे ताल देते है !
(खोब और लीड बहुत जोर से हँसते है। )
खोब : चाची जी भी !
लीड : कोई बात नहीं !
खोब : क्या करें लीड , आज शाम उड़ना फिर नहीं लिखा है !
लीड : नहीं , ऐसा नहीं है , कोशिश कर लेते है।
खोब : आम! (चिल्लाकर )
लीड : (सोचते हुये ) गीत कौन सा वाला गाना था…अच्छा याद आ गया !
(खोब गाना शुरू कर देता है। लीड भी उसी में शामिल हो जाता है। )
खोब और लीड का सामूहिक स्वर :

हम ऊर्जा ले तैरें डोलें
महाशक्ति बन !
हम ऊर्जा से भर बोलें
महाशक्ति बन !
सोच हमारी बनी अपरिमित
महाशक्ति बन !
सोच अगर है , हम पा लेंगे लक्ष्य हमारा
महाशक्ति बन !
उड़ना है अब नील गगन में हम दोनों को,
उड़ना सागर, नदियों , झीलों के ऊपर से,
ऊर्जा से भर
ऊर्जा से भर
ऊर्जा से भर !

(अचानक तीन चार कुत्तों का झुण्ड शोर मचता हुआ आ जाता है। दौड़ते चीख़ते हुये कुत्ते गुजरते हैं)
खोब : लो आ गया व्यवधान !
(ऊर्जा गीत समाप्त )
लीड : क्या तुमने तरबूज़ कहा ?
खोब : तरबूज़
(दोनों के चेहरे निराश हैं)
आज फिर क्यों यह व्यवधान
ऊर्जा गीत रुका क्यों यूँ है
ये कैसा व्यवधान।
आज फिर क्यों यह व्यवधान !

(दोनों के हंसने की आवाज़ सुनाई देती है। धीरे धीरे पर्दा गिरता है। गीत बजता है। )

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

(प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्केट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें (2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी (2019),चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017),पथिक और प्रवाह (2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑव फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) प्रोजेक्ट पेनल्टीमेट (2021) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सत्रह पुरस्कार प्राप्त हैं ।)

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