पेंग बाल नाटक संकलन नाटक-2: हरियाली खुशहाली-रवीन्द्र प्रताप सिंह

पेंग बाल नाटक संकलन-

पेंग बाल नाटक संकलन पांच नाटकों का संग्रह जिसे हम धारावाहिक क्रम में पेंग के पांच नाटकों का प्रकाशन कर रहे हैं । इसके दूसरे भाग में प्रस्‍तुत बाल नाटक है ‘हरियाली खुशहाली’ ।

नाटक-2: हरियाली खुशहाली

-रवीन्द्र प्रताप सिंह

पेंग बाल नाटक संकलन नाटक-2: हरियाली खुशहाली-रवीन्द्र प्रताप सिंह
पेंग बाल नाटक संकलन नाटक-2: हरियाली खुशहाली-रवीन्द्र प्रताप सिंह

पात्र

बीगो : छोटा कीड़ा
बीप : छोटा कीड़ा
हन : छोटा कीड़ा
बिस : छोटा कीड़ा
गोज़ी : छोटा कीड़ा
बीब्बो : छोटा कीड़ा
बोन : छोटा कीड़ा
यू : छोटा कीड़ा
लिन : गिरगिट
बानी कोयल

दृश्य -1

समय : सुबह छह बजे
स्थान : पार्क

(एक बड़ी सुहानी सुबह। पार्क में एक बहुत हरा भरा सा पौधा है। काफी बड़ा। उस पर बीगो , बीप , हन , बिस , गोज़ी , बीब्बो , बोन ,यू आदि छोटे कीड़े बैठे हैं। सब गाना गाते हैं -“हरियाली हम लोग , खुशहाली हम लोग ! ” अचानक लिन गिरगिट कूदते हुए आता है। )
लिन : वाह ! वाह! क्या खूब गाना गए रहे हो भतीजे ! हरियाली हम लोग , खुशहाली हम लोग !

बीप : हाँ , हाँ , धन्यवाद लिन चाचा !
लिन : एक बात मेरी समझ में नहीं आयी !
बीगो :क्या है ऐसा ?
लिन :”हरियाली हम लोग , खुशहाली हम लोग ! “ये क्या ? हरियाली तो पेड़ पौधों से होती है ! खुशहाली हम लोग , यह क्या ? खुशहाली भी तो…
हन : समझ गये , समझ गये चाचा ! आप कहना चाहते हैं की हमसे हरियाली नहीं , हमसे खुशहाली नहीं !
लिन : नहीं नहीं , यह नहीं ! लिन , तुम हमेशा गलत क्यों सोचते हो ?
हन : नहीं चाचा , नहीं तो…
लिन : मैं यह कह रहा हूँ की ये दो पंक्तियाँ…
बीगो :”हरियाली हम लोग ,
खुशहाली हम लोग ! “
लिन : हाँ – हाँ यही , ये दो पंक्तियाँ , यहाँ पर उपयुक्त नहीं लग रहीं !
बिस : ऐसा है चाचा जी , आप का मतलब !
गोज़ी , बीब्बो , बोन : (सामूहिक स्वर में ): ओह चाचा जी !
बीप : गिरगिट चाचा , आप हमारे भावों पर जाइये , शब्दों पर नहीं, और हाँ , हम लोग खुशियां मना रहे हैं। हम सब हरियाली हैं , हम सब खुशहाली हैं। हरियाली हमसे ही निकली , हम सब हरियाली में रहते।
लिन : बड़े बातूनी बच्चे हो , तुम सब के सब। अच्छा मैं चलता हूँ !
यू : अरे नहीं ! कहाँ जाएंगे आप ! अब तो आपको एक एक गाना गाना पड़ेगा , और हाँ , वो भी हरियाली पर।
लिन : बच्चों , एक नहीं , हम दो गायेंगे। एक हरियाली पर और दूसरा खुशहाली पर।
गोज़ी : क्या बात है…ठीक है चाचा जी… हम लोग आपके चारों ओर गोले में खड़े होते हैं। आप गाना गयीए लिन चाचा।

दृश्य -2

समय : सुबह साढ़े छह बजे
स्थान : पार्क

(बीगो , बीप , हन , बिस , गोज़ी , बीब्बो , बोन ,यू गोले में खड़े हुए हैं। बीच में लिन गाते हुए। )
लिन : (गीत गाते हुए )
हरियाली हम सबका जीवन
हरियाली से ऑक्सीजन
धरती अपनी हरी भरी हो
मन भी हरा भरा हो
इससे बढ़कर क्या ही लोगो ,
हम सब की है यही कमाई।
(अचानक पास में बानी कोयल आ जाती है। बानी भी अपने स्वर में गीत गाने लगती है। सभी बहुत खुश हैं। )
बानी : बीच में शामिल होने के लिए क्षमा चाहती हूँ।
सभी का सामूहिक स्वर : न न , इसमें क्षमा की क्या बात , ये तो खुशहाली गान है। हरियाली का गान।
लिन : तो बानी , तुम खुशहाली के गीत शुरू करो !
बानी : हाँ , हाँ , क्यों नहीं , ये लो !
बानी और सभी गाते हैं :
खुशहाली हरियाली से
खुशहाली हम सबके मन से
हम धरती के गीत सुनायें
हम खुश हों आनंद मनायें।
खुशहाली हम सबकी हमसे
खुशहाली वन कानन में ,
खुशहाली हर नगर ग्राम में ,
जल में , नभ में , थल में।
जीव जंतु खुशहाल रहें ,
जीव जंतु खुशहाल रहें।
( धीरे धीरे पर्दा गिरता है। )

समाप्त

-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
(प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्केट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें (2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी (2019),चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017),पथिक और प्रवाह (2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑव फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) प्रोजेक्ट पेनल्टीमेट (2021) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सत्रह पुरस्कार प्राप्त हैं ।)

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