पेंग बाल नाटक संकलन नाटक-5.भूले को पथ दिखलाना-रवीन्द्र प्रताप सिंह

पेंग बाल नाटक संकलन-

पेंग बाल नाटक संकलन पांच नाटकों का संग्रह जिसे हम धारावाहिक क्रम में पेंग के पांच नाटकों का प्रकाशन कर रहे हैं । इसके अंतिम और पॉंचवें भाग में प्रस्‍तुत है बाल नाटक ‘भूले को पथ दिखलाना’ ।

नाटक-5: भूले को पथ दिखलाना

-रवीन्द्र प्रताप सिंह

पेंग बाल नाटक संकलन नाटक-5.भूले को पथ दिखलाना-रवीन्द्र प्रताप सिंह
पेंग बाल नाटक संकलन नाटक-5.भूले को पथ दिखलाना-रवीन्द्र प्रताप सिंह

पात्र

बादल : भेड़िया
करतनी : चूहा
मुलानी : चूहा
लोलो : शेर , जंगल प्रशासन में पदाधिकारी
बाबा :शेर , जंगल प्रशासन में पदाधिकारी
मदन : चूहा , महागुप्तचर
कमिया : सियार , गुप्तचर
गोजे सिंघा : शेर राजा

दृश्य -1

(जंगल का एक सूखा किनारा। बादल , करतनी और मुलानी जोर जोर से हँसते हैं। वे सब कुछ पेय पी रहे हैं। )

बादल : अरे करतनी और मुलानी , तुम लोगों ने तो मेरे मन की बात छीन ली !

मुलानी : अरे दोस्त ! काली करतूत की कसम , अगर जंगल को जला न दिया तो मेरा नाम मुलानी नहीं !

करतनी : अरे क्या , जल्द ही तुम यहाँ के राजा होंगे , बहुत जल्द , कसम काली करतूत की !

बादल : और , तुम दोनों ही हमारे मंत्री !

मुलानी : जरूर , जरूर , जय काले करतूत की !

(सब जोर -जोर से हँसते हैं। )
करतनी : चलो इसी बात पर कुछ काला हो जाये। ( पेय का एक घूँट पीते हुये) बड़ा अच्छा लगा ये तो मुझे !

मुलानी : बादल साहब , ये करतनी कवि हैं , शायर बड़े वाले।

करतनी : अपनी मूछों पर पंजे फेरते हुये । ..हाँ -हाँ , क्यों नहीं।

मुलानी : अब हम तीनों काला गीत गायेंगे और शेरों को बिल में छुपायेंगे !

बादल : जरूर , जरूर , जरूर !

करतनी : काला गीत , काला गीत , काला गीत !

बादल : तो चलें काला गीत , भाई बजाओ कुछ बाजे !

(पीछे से बाजे बजने की आवाज आती है। मुलानी , करतनी और बादल तीनों गीत गाते हैं। )

गीत
काला गीत , काला गीत , काला गीत ,
जंगल के हैं बादल राजा ,
हम दोनों हैं इनके मीत ,
काला गीत, काला गीत , काला गीत।
अपनी काली करतूतों से
तहस नहस कर देंगे जंगल
लोलो , बाबा , गोजेसिंघा।
अपनी काली करतूतों से
हम जीते हैं , हम चलते हैं ,
नहीं बचोगे तुम अब तीनों ,
लोलो , बाबा , गोजेसिंघा।
कहा था न लो हमसे पंगा ,
काला गीत , काला गीत , काला गीत,
जंगल के हैं बादल राजा ,
हम दोनों हैं इनके मीत।

दृश्य -2

स्थान : जंगल के दूसरे भाग , राजा गोजेसिंघा की बैठक

(राजा गोजेसिंघा की बैठक चल रही है। बाबा और लोलो बैठे हुये हैं। चूहा मदन आते हैं। )
मदन : गोजेसिंघा जिंदाबाद ! गोजेसिंघा की जय हो !

बाबा : स्थान ग्रहण कीजिये , दादा मदन।

लोलो : कैसे हैं आप , क्या समाचार लाये ?

मदन : (आह भरते हुये ) आज फिर जंगल में बहुत लोग बेहोश और बीमार पड़ गए। आधे से ज्यादा जंगल बीमार पड़ गया है।

बाबा : (गुस्सा में आते हैं और विचारमग्न होते हैं। ) पता तो हमें भी है। हमने सभी के साथ बड़ी बड़ी बैठकें की हैं , किन्तु हल परिणाम कुछ नहीं प्राप्त हो रहा है। करें तो क्या करें , दोस्त मदन !

मदन : (शांत भाव से ) : हमारे साथ गुप्तचर कमिया भी आये हैं। महाराज की आज्ञा हो तो बुलायें !
गोजेसिंघा : अवश्य !

(गुप्तचर कमिया का प्रवेश )
कमिया : महाराज की जय हो ! हमें बहुत सटीक जानकारी मिली है , यदि आज्ञा हो तो कहें !

गोजेसिंघा : अवश्य कहें कमिया !

कमिया : महाराज , कल हमने एक अत्यंत संवेदनशील समाचार प्राप्त किया है।

बाबा : तुरंत कहें !

कमिया : ये रहा , कृपया इस रिकॉर्ड में देखें –

(वह दृश्य एक की घटना अपने लैपटॉप पर चला देता है। पाँचो लोग बड़े आश्चर्य से देखते हैं। )
बाबा : ये तो अपने व्यवस्थापक बादल…

गोजेसिंघा : अरे ये तो करतनी है , शत्रु राज्य का अधिकारी और साथ में है जो…. वो भी कुछ जाना पहचाना ही है…

मदन : बात स्पष्ट है महाराज !

बाबा : जी महाराज (गोजेसिंघा को सम्बोधित करते हुये ) बादल की महत्वाकांक्षा !

लोलो : महत्वाकांक्षा क्यों , दुराकांक्षा !(तमतमाते हुये )

गोजेसिंघा : ये कोई राजतन्त्र तो है नहीं , हम लोग तो चुनकर आये हैं !

मदन : जी महाराज , ये भेड़िया बादल अपने पडोसी शत्रुओं के साथ मिलकर हमारे जंगल में जहर घोल रहा है।

लोलो : हमारी व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।

बाबा : इसकी मंशा राजा बनने की है।

गोजेसिंघा : तो किसने रोका है इसे , चुनाव होते ही रहते हैं , क्यों न चुनाव में जनता के सामने…

बाबा : नहीं महाराज , नहीं , दुष्प्रचार करने की साजिश है।

लोलो : हम इसका सच जनता के सामने लायेंगे !

बाबा : कैसे ?

कमिया : एक युक्ति है !

मदन : युक्ति ?

कमिया : महोदय , वन उत्सव का आयोजन !

लोलो : उससे क्या होगा ?

बाबा : इन देश के दुश्मनो की काली करतूत बन जायेगी उनके लिए काली रात !

लोलो : समझ गया… बादल और उसके सपनों का भंडाफोड़ !
(गोजेसिंघा स्वीकृति में सिर हिलाते हैं। )

दृश्य :3

वन उत्सव

(जंगल प्रशाशन के सभी पदाधिकारी अपने अपने समुचित स्थान पर बैठे हैं। जंगल संस्कृति मंत्रालय अपना गीत प्रस्तुत कर रहा है। )

कलाकारों की प्रस्तुति
पहला गायन दल

यह महाव्यवस्था , महासंस्कृति ,
यह प्रेम शांति का जंगल प्यारा।
तरह तरह के पशु पक्षी से ,
मिलकर बनता परिवार हमारा।
यह महासंस्कृति महाव्यवस्था
प्रेम शांति का जंगल प्यारा ,
हम सीधे -साधे पशु पक्षी ,
अपना काम ख़ुशी से करते ,
हम अपने मन से ही मिलकर ,
अपना राजा चुनते।

दूसरा गायन दल

लेकिन घुस आये हैं दुश्मन
अपनी सीमाओं में
अपने ही दुश्मन के साथी ,
छोड़ चले मर्यादाओं को।

पहला गायन दल

अरे कौन हैं वो भाई ,
कोई हमें बताये तो।
हम इस जंगल के वासी।
उसको राह दिखाये तो।

कमिया : भाइयो और बहनों , यह रहा वह दल , हमारा दुश्मन ! अब आप प्रोजेक्टर पर देखिये , “कालागीत ” !

(प्रोजेक्टर पर कालागीत चलता है। बादल , मुलानी और करतनी भागने की कोशिश करते हैं। लोलो झपट कर उन्हें पकड़ लेते हैं। )
जंगल जनता का स्वर : मारो! मारो !मारो !

गोजेसिंघा : नहीं नहीं , भटके हुये लोग हैं ये , मेरे प्यारे भाइयों और बहनों , मेरी प्यारी जनता , इन्हें सही रस्ते पर लाना हमारा कर्तव्य है। मारो नहीं। ये तीनों क्षमा मांगेगें और तीन वर्षों तक पूरे जंगल के लोगों की सेवा करेंगे।

(बादल , मुलानी और करतनी गोजेसिंघा के पैरों पर गिर जाते हैं। )
बादल , मुलानी और करतनी (सामूहिक स्वर में ) : भाइयों और बहिनो , मेरे न्यायप्रिय महाराज गोजेसिंघा जी , हमें क्षमा कीजिये। हम अपराधी हैं।

गीत बजता है –

भूले को पथ दिखलाना ,
भटके को सन्देश बताना ,
सही व्यवस्था यही कहेंगे।
जन जन का कल्याण जहाँ हो ,
उसे व्यवस्था सही कहेंगे ,
जय जय जय समुदाय हमारा ,
अपना जंगल कितना प्यारा।

धीरे धीरे पर्दा गिरता है।
समाप्त

प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
(प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्केट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें (2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी (2019),चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017),पथिक और प्रवाह (2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑव फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) प्रोजेक्ट पेनल्टीमेट (2021) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सत्रह पुरस्कार प्राप्त हैं ।)

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