प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह की पांच कविताएं

प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह की पांच कविताएं

प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह की पांच कविताएं

प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह की पांच कविताएं
प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह की पांच कविताएं

प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह की पांच कविताएं

1.तिमिर छंटने का समय है

भोर होने का समय है 
तिमिर छंटने का समय है,
भोर का तारा दिखा है 
तरल मलयज हो रहा है 
विहग सक्रीय हो गये हैं 
गीत गायन में लगे हैं
दिख रहा है गाओं कोई 
जिंदगी करवट बदल कर 
उठ गयी संकल्प लेकर। 
बड़ी लम्बी रात थी 
बिना किस्से बिन कहानी ,
अंधड़ चले , टट्टर उड़े 
डंठलों को छोड़ कर बालें उड़ीं 
ऐसी हवा !
क्या अचानक समय फिसला 
पाथेय जाने क्या हुआ 
किन्तु हम चलते रहे 
रास्ता दीखता रहा 
भोर होने का समय है 
तिमिर छंटने का समय है। 

2.रुकना कहाँ हमने पढ़ा

कौन जाने जिंदगी है या यूँ ही अचानक कुछ हवा, 
मौत ही दिखती रही 
लड़खड़ा चलती हुई ,
संग अँधेरे चल रहे,
ठोकरें संग चल रहीं 
हम भी निडर वो भी चपल, 
हम चल रहे वो घेरते ,
रुकना कहाँ हमने पढ़ा 
हम स्वेद रंजीत लालिमा,
है उधर निष्ठुर कलुषता, 
दोनों प्रबल , दोनों सबल 
द्वंद दोनों ही तरफ 
इस बार मन से है छिड़ा। 
क्यों थके कोई , पिछड़ जाये 
लगने लगा अब जिंदगी है ,
संकल्प से सिद्धि हुई है। 

3.एक सम्बल यादों का

आयी थी वही कोई पांच दशक पूर्व डोली ,
ड्योढ़ी यही , दीवारें यही । 
दीवारें नयी सजी, बिलकुल खुश। 
आज कितने समय बाद 
फिर वही कुछ समय 
कुछ तो दीवारें शेष 
और कितनी ढह गयी। 
नहीं रहे वे लोग सभी 
मगर कितने फिर नए 
चौपाल गिर गई
नया कुछ वैसा नहीं। 

लोग कितने आये  गए 
मिटी कितनी दास्तानें
कहानियां , तीज त्योहार
मान मनुहार , और हाँ 
जिंदगी के कितने सत्य ,
आज फिर मैं मौन 
ड्योढ़ी वही , धरती वही। 

यादों के उगे कितने पेड़ 
वह जा चुके हैं 
जिनके लिये आयी यहाँ  ,
वहां भी बड़ा सा मौन 
जहाँ पैदा हुई , जन्मी 
मात्र बंधन शेष 
नए , विकसे
 और कितने 
न जाने कौन कौन 
एक सम्बल यादों का 
एक सम्बल यादों का। 

4.चक्रवात और फिर कुछ बूँद

अँधियों से टूट कर नीचे गिरे कुछ पुष्प टल्लव ,
पत्तियों संग गिर गई डाली 
कह रही लघु सी कहानी। 
अटक इसमें रह गयीं हैं 
कुछ, चक्रवाती बूँद, दो दर्जन 
काल  से ही प्रेम की कहने कहानी। 
गर्व से ये वायु रथ पर 
चढ़ अचानक आ गई थीं ,
किन्तु सीमा तो नियत है ,
प्रेम -अत्याचार की 
वेग था भ्रम में अनियंत्रित 
शक्ति झोंके से बहककर 
अन्यथा क्यों तोड़ता 
शिशु पल्लवों को क्रूर बन। 
क्यों अचानक तोड़ता 
जीर्ण नीले कई पत्ते 
विस्थापनों से जो बचे 
उखड़े उड़े , फिर सह थपेड़े 
पुनः जड़ पर आ गिरे। 
उनके ह्रदय भी दग्ध 
नियति से वे कर रहे हैं प्रश्न 
चुपचाप देखें सोचते 
क्यों हुये हैं ये विलग। 

5.स्वयं से संघर्षरत आवेग

बूँद, आंसू बन रही हैंसंताप दुःख की मूर्त रूपक 
स्वयं से संघर्षरत आवेग 
भला इनकी क्यों सुनेगा। 
भाव भी लाये अगर वह करुण
उमड़ आयें भाव भी होकर द्रवित 
शक्ति मद में चूर सब 
क्योंकर कोई अभिव्यक्ति देगा। 

कितने निरीहों को कुचल कर 
रौब लादे शक्ति आती 
वेग पीछे चल रहे 
आँधियाँ ले जोश चलता। 

नयी कोपल क्या कहेगी 
वह चक्र से अनभिज्ञ है, 
बूँद यह सब देखकर 
खीझती है, क्लांत है। 

प्रायश्चितों के चक्र दोहरा 
स्वयं को ये बिंदु 
पत्तियों के अंत होने से कदाचित 
कई घंटे पूर्व 
सूर्य को अर्पित करेंगी। 

पाप को अपने  जलाकर 
जल की पवित्रता हेतु शायद कुछ करेगी। 
चक्रवाती शक्ति में भी कदाचित 
वलय कुछ कोमल दिखे 
भले आये देर से 
सत्य चक्षु कुछ खुले।

प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह– कवि परिचय

प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय  लखनऊ में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं , और लखनऊ विश्वविद्यालय के डायरेक्टर इंटरनेशनल कोलैबोरेशन , इंटरनेशनल स्टूडेंट्स एडवाइजर  तथा वाईस चेयरमैन  डेलीगेसी ।प्रकाशित पुस्तकें :  कुल 36 ,  फ़्ली मार्किट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें(2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी(2019) , चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018)उनके प्रसिद्ध नाटक हैं , बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड  मून एंड अ लिटल गर्ल (2017) ,पथिक और प्रवाह(2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑफ़ फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी कवितायेँ  लगभग एक दर्जन  साझा  काव्यसंकलनों में भी संग्रहीत हैं। विभिन्न  जर्नल   एवं ऑक्सफ़ोर्ड , सेज , मैकमिलन ,ब्लैकवेल ,स्प्रिंगर  ,  ए बी की क्लीओ  जैसे प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित ज्ञानकोशों एवं इनसाइक्लोपीडिया में उनके लगभग 130   शोधपत्र प्रकशित हैं ।  उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम  अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार  एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे  सोलह   पुरस्कार प्राप्त हैं । वे  देश विदेश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं के लिए नियमित लेखन करते हैं , एवं आकाशवाणी से जुड़े वार्ताकार हैं  ।

प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह की अन्‍य रचनाएं

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *