प्रदूषण पर छत्तीसगढ़ी कविता-प्रदूषण
-श्लेष चंद्राकर
प्रदूषण पर छत्तीसगढ़ी कविता
प्रदूषण (शंकर छंद)
(1)
आज प्रदूषण सेती बदलत, हवय गा जलवायु।
किसिम-किसिम के रोग धरत हे, घटत हावय आयु।।
आघू कुदरत के गुस्सा ला, सहय झन इंसान।
फेर पुराना दिन हा लहुटय, चिटिक देवव ध्यान।
(2)
करव प्राकृतिक संसाधन के, सोच के उपयोग।
खखल बखल गा येकर भइया, करव झन उपभोग।।
बदलत मौसम हा सबझिन ला, देत हे संकेत।
पछताये बर पड़ही काली, अभी जावव चेत।।
(3)
खेलत हावय मनखे कइसे, देख गंदा खेल।
भुँइया के छाती ला खनके, निकालत हे तेल।।
अपन सुवारथ ला देखत हे, इहाँ मनखे आज।
इही नाश के कारण बनही, नहीं समझत राज।।
(4)
जघा-जघा गा बोर खनत हे, होत भुँइया खोल।
पेड़ काटके मनखे मन हा, बिगाड़त भूगोल।।
अबड़ बिछावत चारों-कोती, कंक्रीट के जाल।
भुँइया के कर दे हे देखव, आज बाराहाल।।
(5)
ओजोन परत हा फैलत हे, होत भुँइया तात।
सब बर्फानी मन पिघलत हे, बिचारे के बात।।
जल जंगल आबाद रहे गा, दिखे हरियर घास।
चलव प्रदूषण रोके खातिर, करव कुछु परयास।।
(6)
मनखे अब परिवेश सुधारे, अपन गलती मान।
फेर प्रदूषण झन फैलय जी, रखे अतका ध्यान।।
करे जागरुक जम्मो झन ला, इही एक उपाय।
सबके हित मा राहय अइसे, करय ओ व्यवसाय।।
-श्लेष चन्द्राकर,
पता:- खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.- 27,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़) पिन – 493445,
मो.नं. 9926744445
श्लेष चन्द्राकर की कुण्डलियांँ
मोर रचना ला स्थान देबर हार्दिक आभार
बहुत सुंदर रचना गुरूजी