मेरी प्रतिनिधि कविताएं
-प्रकाश गुप्ता “हमसफ़र”
प्रकाश गुप्ता “हमसफ़र”
1.आशीर्वचन
जा! ….
तेरे गीत इतने मारक हों
कि विश्वरूपी आँगन पर
मुखरित हो उठें
तेरा आन्दोलित स्वर
घोर कालिमामयी
रात्रि के …
सन्नाटों को भेदकर
हृदयों को जागृत कर दे
तेरा प्रबल विश्वास
सिन्धु की …
तेज गर्जनाओं से भी
टकरा उठे
और ….
तेरे स्वप्न …
इतने विशाल हों
कि समस्त दिशाओं में
स्नेह रुपी ….
फूल ही फूल खिल उठें
हिंसा,घृणा,
छद्म-वेश का
अवसाद,अभाव,
मोह-द्वेष का
तेरी रक्त वाहिनियों में
कोई प्रभाव न हो
ओ ….
चराचर जगत के यायावर!
एक आशीर्वचन
मुझसे भी लेता जा ।।
2. घाव
आग की तपिस में
छिलते पाँव
भूख से सिकुड़ते पेट
उजड़ती हुई बस्तियाँ
और ….
पगडण्डियों पर बिछी हैं
लाशें ही लाशें!
कहीं दावत कहीं जश्न
कहीं छल झूठे प्रश्न
तो कहीं …
आलीशान महलों की
रेव पार्टियाँ
दो रोटी को तरसते
सैकड़ों बच्चों पर
फ़फ़क-फ़फ़क कर रोते
हजारों वृद्धजनों पर
कर्ज़ की बोझ से दबे
लाखों हलधरों पर
और ….
मृत्यु से खेलते
श्रमजीवी …
करोड़ों मजदूरों पर
शायद! ….
आज भी
किसी की नज़र नहीं जाती
वक़्त है …
कि गुजर जाता है
लेकिन ….
गरीबी का ये ‘घाव’
कभी भरता ही नहीं ।।
3.कुछ करना है
जन-जन तक पहुँचना है
सबको साथ लेकर चलना है
टूटते हुए परिवेश में
हमें राष्ट्र को भी बदलना है
और ….
बदलना है …
रूढ़िवादी सोच को
खदेड़ना है …
संकुचित विचारों को
लतेड़ना है …
गन्दी जबानों को
उखाड़ फेंकना है …
व्यभिचारों को
भूलना है …
तिरस्कारों को
अपनाना है …
बेसहारों को
दफ़नाना है …
अहंकारों को
मिटाना है …
देश के गद्दारों को
इंकलाब का स्वर उठाना है
लोगों में नया विप्लव लाना है
करना है चेतना का फिर संचार
हमें नव युग का निर्माण करना है
अब तो ….
समय का भी
यही कहना है
देश,समाज और
पूरे विश्व के लिए
हमें भी कुछ करना है ।।
4. वो तुम थीं
मौसमों के कारवाँ की
ये गीली सुबह ….
अनहद स्मृतियों को
लिबास में समेटे
बरसों से बंजर – –
सपनीले एहसासों की
दुनिया को
फिर एक बार – –
मंथर गति दे चली है
छायाओं के क्षितिज!
पीड़ाओं के पयोधर
मेरे घर की
खपरीली छत
और ….
मिट्टी के – – – –
सौंधेपन को स्पर्शती
पावस की वो पहली बूँद
तुम थीं
शायद! ….
तुम ही तो थीं ।
5.भेड़िये की खाल
भेड़िये की खाल
पहनकर छिपा है
इंसानी चेहरों का
एक झुंड
मौत की बिसात पर
बदस्तूर जारी है ….
आदमखोर परछाइयों का
यहाँ आना-जाना
कहीं किसी गली की …
अँधेरी गुफागुह! में
आहों और चीखों की
डरावनी आवाजें हैं
कहीं किसी …
अंधी सड़क के मोड़ पर
सड़ी हुई हड्डियों के
ढाँचे हैं
कोई स्याह आँखों से …
इस खूनी दृश्य को
देखता है
तो कहीं …
असुरी खुरों का ओरांग उटांग!
समाज की गाल पर
एक गहरा तमाचा जड़ता है
ठीक उसी वक़्त …
मनुष्यता के माथे पर
बल पड़ता है
और ….
भेड़िये की खाल में लिपटा
एक इंसान …
दूसरे इंसान को छलता है
अब तो सब कुछ
बस ….
ऐसे ही चलता है ।।
6.वह कवि है
सम्वेदनाओं के
अंकुर से प्रस्फूट
कल्पनाओं के
अंतर के झुरमुट
कोमल,उज्ज्वल
ब्रह्मांड में – –
सर्वथा निश्छल
अनवसान पवित्र
देवों का भित्त चित्र
माँ के हृदय की
पीड़ाओं को भी
महसूसने वाला
अदृश्य,दुर्गम,
अथाह,अतुलनीय
और – – – –
दन्तकथाओं के
चौथे लोक को भी
विस्तार देने वाला
युगानुयुग!
आलोक पुंज का धारक
अग्निपथ के
घनघोर तम का संहारक
रवि है
कोई और नहीं – –
वह कवि है ।
7.आकृतियाँ
रेत की सुनहरी
आकृतियों की तरह ही
मनुष्य की दैवीय प्रतिमाएँ
कुछ धूँधली स्मृतियाँ
अर्धरात्रि के सपनीले प्रासाद
और – – – –
पानी की – –
सफेद चिलचिलाहटें
ओझल हो जाती हैं
कभी-कभी
तो कभी – –
जागृत आँखों की
आकांक्षाओं के
सच होने का एहसास भी
गहराता है मुझमें
किसी सागर की
तट पर खड़ा
यह परिवर्तन
मैं देखता हूँ बारी-बारी
और देखता हूँ – – – –
तमाम आकृतियों
और संभावनाओं को
लहरें – – – –
अपने साथ लिए
उन्हें छोड़ आती हैं
किसी – -?
अनंत सीमा की तह पर
जहाँ – –
सिद्ध हो सके
उनकी मौजूदगी की सार्थकता
बुनियादी जड़ों की प्रासंगिकता
साथ ही – – – –
उनके होने का
कोई न कोई अभिप्राय
मगर! – – – –
ठीक उसके विपरीत
आज जिधर भी देखिये
विषदंती सर्पों की फुफ़कार!
कुछ आदमखोर परछाइयाँ!
वर्तमान के षड़यंत्र!
और – – – –
भविष्य की आशंकाएँ!
आदमियत की छाती को
बेधती हैं
चहुँ दिशाओं से
तब – – – –
अनेक आकृतियाँ
फिर जन्म लेती हैं
मानवता की कोख से ।
8.मजबूरी
कर्ज़ के पर्वत
लादे गये पीठ पर
रौशनी तिरोभूत हुई
सूरज के पीछे
हमारे हिस्से की रोटी तो
चुग गयी चिड़िया
और स्वप्न दफ़्न हुए
पाताली गुफाओं के नीचे
ऐसे में – – – –
अब भी चिल्लाता है
शहर के – –
तमाम पोस्टरों पर
घोषणाओं का काला घुग्घू
अगर यही ज़िन्दगी है
तो माफ़ करना!
थोपे गये झूठ को
सच मानकर
लोग – – – –
जीने को हैं मजबूर ।
9.कुछ भी तो नहीं
रहने को ….
सब कुछ तो है यहाँ
पर लगता है
जैसे कुछ भी तो नहीं
शून्य सी खामोशी
निःस्तब्धता का साम्राज्य
अंतर्मन से उठते सवाल
और ..
आँखों में तैरती
असंख्य दुनिया सपनों की
लगातार ….
इसी सोच में
डूबी रहती हैं
कि ….
मृगतृष्णाओं की
इस धरा पर भी
पाया जा सकता है
सारा भूगोल
वशीभूत किया जा सकता है
समय का चक्र
देखा जा सकता है
भविष्य के उस पार
और ..
एकत्रित किया जा सकता है
विलासिता का आधार
जबकि ….
क्षणभंगुर हैं
भौतिकवादी सारी चीजें
नश्वर है यह जीवन
हर काया मिट्टी-मिट्टी
चार चाँदनी यह प्रहसन
अर्धरात्रि में ….
हृदय की मौन पीड़ा
जब ..
आकार लेने लगती है
तब जागरण के बाद
मृत्यु रुपी
अटल सत्य के सिवा
बचता ….
यहाँ कुछ भी तो नहीं ।।
10.इस मुखर कवि को
हे सुरवन्दिता! ….
विंध्याचलविराजिता!
अपने ….
इस मुखर कवि को
अब मौन कर दे
या ….
उसकी हर साँस में
देश प्रेम के
गीत भर दे
बनके नवचेतना
रक्त के कण-कण में
तू क्रान्ति स्वर के
सहस्त्रों मशाल धर दे
उसे या तो
नीरस कर दे
या उसके जीवन में
सर्व रस अमर दे
लगा के उसके
भाल पर तिलक
उसे वीरगति के
पथ का वर दे
और साथ ही ….
उसके जीवन की
टूटी पतवार को
सदा-सदा के लिए
भवसागर तर दे
हे महाश्वेता! ….
ब्रह्मविष्णुशिवात्मिका!
अपने ….
इस मुखर कवि को
अनंतकाल तक
आनंदाच्छादित कर दे ।।
11.संघर्षों का दौर
कदम दर कदम
बढ़ता रहा
मुफ़लिसी का पहिया
चलता रहा
निराशा के बादल
गहराते रहे
आशाओं का सूरज
डूबता रहा
नसों में जूनून
उतरता रहा
बनके निशाचर
जगता रहा
रक्त का कण-कण
बिखरता रहा
अँधेरों में दीपक
बुझता रहा
और साथ ही
बुझता रहा ….
विप्लव का मशाल
नाउम्मीदी
और
कतारों के बीहड़ में
मगर ….
ठीक इसके विपरीत
होगी शायद जीत
महापुरुषों के कथनों पर
गिरेगी असफलताओं की भीत
तोड़ जगत के रीत
लिख क्रान्ति के नवगीत
बन गंगाजल सा पावन-पतीत
न डरकर हार पथ के मनमीत
क्यों कि ….
संघर्ष तो करना ही होगा
इसलिए कि ….
विधना ने माथे पर
लिखा संघर्ष
जिन्दगी भर जिन्दगी से
करता रहा संघर्ष
हर एक साँस के लिए
होता रहा संघर्ष
मेरे घर की दहलीज़ से
गुजरता रहा संघर्ष
पसीने की कीमत
पूछता रहा संघर्ष
मृत्युंजयी मोड़ के बाद
मिलता रहा संघर्ष
खानाबदोश कबीले
ढूँढता रहा संघर्ष
तो कभी छलिया बन
छलता रहा संघर्ष
मेरी कोशिशों का
वो खाली मकान
कब तलक जलेगा?
संघर्षों का ये दौर
कब तलक चलेगा?
संघर्षों का ये दौर
और कब तलक चलेगा? ।
-प्रकाश गुप्ता “हमसफ़र”
प्रकाश गुप्ता “हमसफ़र”-एक परिचय
प्रकाश गुप्ता “हमसफ़र”
युवा कवि एवं साहित्यकार
सह सलाहकार
(स्वतंत्र लेखन)
विनोबानगर वार्ड क्रमांक – 24
सेन्ट जेवियर स्कूल के सामने
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
पिन -४९६००१
भ्रमणभाष – ७७४७९१९१२९
अणु डाक – humsafarg22@gmail.com
Bahut badhiya tha sir… Apratim🙏🏼
thank you so much …. 💐💐
निश्चय ही रचनाएँ साहित्य के मोती साबित होंगे।
thank you so much Bhuneshwar bhai …. 💐💐🙏🙏
शानदार रचनाओं का संग्रह
दिल से आभार भैया जी …. 💐💐 🙏🙏
बहुत ही बेहतरीन और उत्कृष्ट कविताएं हैं प्रकाश भाई।ऐसी कविताएं और इससे बेहतर कविताएं रचते रहिए
दिल से आभार भाई रामकुमार ‘यार’ जी …. 💐💐 🤝🤝
thank you do much …. 💐💐
Nice sir
thank you so much …….. 🇮🇳🇮🇳🇮🇳
Hii sir ,
From jnv raipur