प्रकाश सिंह प्रकाश की दो कवितायें

प्रकाश सिंह प्रकाश की दो कवितायें
प्रकाश सिंह प्रकाश की दो कवितायें

1.गणेश वंदना (छब‍ि छंद)-

 जय  जय  गणेश। जयति विघ्नेश
  जय  सुत महेश ।  हर लो  कलेश

   हे    एक    दंत  ।  हे   प्रेम   वंत 
   भजत सब  संत  । तुम हो अनंत

 मूषक   सवार  ।  कारज  संवार
   हूँ   मैं  गवांर   ।  जीवन   सुधार

   लिख छंद सार । नव रस अधार
   जन  हित  अपार । ग्रंथन सुमार

  बन   के सुजान  । ना  हो  गुमान 
  भावे  न आन   ।  देखव   समान

  सुन लो  पुकार । विनय हर  बार 
  जाऊँ  न  हार  । जोड़  अब  तार

  हो  न  परिहास । मन  है  उदास
  टूटे  न  आश ।  सुमरत   प्रकाश

2.उठ  जाग (छबि छंद)-

अरे  उठ  जाग ।  मोह  सब  त्याग
छोड़   अनुराग ।   कर   तू  बिराग

करम  कर  भोग । जगत  मन रोग
हानि अरु  लाभ । जग  जीव नाभ

सहज  हरि साध । मिटे सब व्याध
आरत  सकाम ।   राम   निसकाम
 
लोभ  सब भांति । करत दिन राति
बढ़त  यश  नाम । सुधी  ना   राम

पुन्य  अरु  पाप  ।  भोग   परिमाप
तौल सब मोल  ।  स्वांस  अनमोल

प्रगति मति चाल । देश  अरु काल
धरे  अभिमान  ।  न  होय   निदान

काल  कर  काल ।  तुम हरि  दयाल
काट  सब  पाश ।  बिनवत  प्रकाश

-प्रकाश सिंह ‘प्रकाश’

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