1.गणेश वंदना (छबि छंद)-
जय जय गणेश। जयति विघ्नेश जय सुत महेश । हर लो कलेश हे एक दंत । हे प्रेम वंत भजत सब संत । तुम हो अनंत मूषक सवार । कारज संवार हूँ मैं गवांर । जीवन सुधार लिख छंद सार । नव रस अधार जन हित अपार । ग्रंथन सुमार बन के सुजान । ना हो गुमान भावे न आन । देखव समान सुन लो पुकार । विनय हर बार जाऊँ न हार । जोड़ अब तार हो न परिहास । मन है उदास टूटे न आश । सुमरत प्रकाश
2.उठ जाग (छबि छंद)-
अरे उठ जाग । मोह सब त्याग छोड़ अनुराग । कर तू बिराग करम कर भोग । जगत मन रोग हानि अरु लाभ । जग जीव नाभ सहज हरि साध । मिटे सब व्याध आरत सकाम । राम निसकाम लोभ सब भांति । करत दिन राति बढ़त यश नाम । सुधी ना राम पुन्य अरु पाप । भोग परिमाप तौल सब मोल । स्वांस अनमोल प्रगति मति चाल । देश अरु काल धरे अभिमान । न होय निदान काल कर काल । तुम हरि दयाल काट सब पाश । बिनवत प्रकाश
-प्रकाश सिंह ‘प्रकाश’