प्रकृति संरक्षण पर कवितायें-डॉं. अलका सिंह
प्रकृति संरक्षण पर कवितायें
1.हर तरफ है व्योम-
फिर दिखेगा पक्षियों का वही कलरव
वही विस्तृत पड़ा है भूभाग
सिर्फ कुछ दिन शीत है ,जम गयी है बर्फ
पक्षियों का क्या ,विहग हैं , उड़ गए उस ओर
उन्हें क्या ,कहीं कोई मांगता पासपोर्ट ?
स्पष्ट है उनका गगन ,
उनकी हवा , उनका चमन
जिधर चाहें , उधर मुंह कर उड़े विचरें ,
सृष्टि उनकी ,प्रकृति उनकी ,
हवा उनकी और जलवायु।
उन्हें क्या , हर तरफ है व्योम
हर तरफ तो वही धरती
श्रृंखला में बद्ध ऋतुक्रम
श्रृंखला में बद्ध हैं हर चरण
और गति शीत वर्षा ग्रीष्म।
2.सोच के विस्तृत उदधि में-
सोच के विस्तृत उदधि में
आ गिरा फिर प्रश्न
रोज़ हैं अनगिनत गिरते
असहाय भावों को समेटे
ऊँघते सिमटे हुए कुछ तेज़।
कह रही थी, एक, कल ही ,पूर्व ज्वाला
जो डगमगाती देखती है बाट, सोचती –
कौन लायेगा यहाँ पर
क्रमबद्ध ऊर्जा के वही क्रम ,
जो जीर्ण होते जा रहे हैं रोज़
और पड़ती नहीं कोई दृष्टि।
बंद तो है हथेली
बंद बस दिख ही रही है
झर रही है रेत, बन अभिप्राय ,
सृजन का ही लेप लगता तो कहीं से
पुनः आता धैर्य ,
वो थके हारे भाव
जो आकर गिरे हैं।
सोच की कोई नहीं है थाह
बस सृजन की एक डुबकी आस।
उदधि भी है, सोच भी
और प्रण भी अभी हैं शेष।
डॉ अलका सिंह के विषय में
कवियत्रि परिचय- डॉ. अलका सिंह-
डॉ अलका सिंह डॉ राम मनोहर लोहिया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी लखनऊ में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।शिक्षण एवं शोध के अतिरिक्त डॉ सिंह महिला सशक्तीकरण , विधि एवं साहित्य तथा सांस्कृतिक मुद्दों पर सक्रिय हैं। इसके अतिरिक्त वे रजोधर्म सम्बन्धी संवेदनशील मुद्दों पर पिछले लगभग बारह वर्षों से शोध ,प्रसार एवं जागरूकता का कार्य कर रही है। वे अंग्रेजी और हिंदी में समान रूप से लेखन कार्य करती है और उनकी रचनाएँ देश विदेश के पत्र पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती हैं। उनकी सात पुस्तकें प्रकाशित हैं तथा शिक्षण एवं लेखन हेतु सात पुरस्कार/ सम्मान प्राप्त हैं।
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