प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह की चंद कवितायें

प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह की चंद कवितायें

प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह की चंद कवितायें
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह की चंद कवितायें

1.रंग फैले पड़े है हर ओर

प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह की चंद कवितायें

मृग मरीचिका सा चमकता माह
हर तरफ से रूपहले  चमके  दिखे सब मार्ग
मार्ग का आनंद ही उद्देश्य हैं
ध्येय का ही स्वाद ही बस स्वाद है।
साध्य कितना सिर्फ मानक पार कर जाना
बंधनों को पार कर पायें अभीष्ट
कई मुश्किल को हरा कर ,
कई खायी पाट कर
कई नाले पार  कर
अब फिर चलें ,लौट कर को देश ,
फिर गुने कोई नया प्रयास
रंग फैले पड़े है हर ओर
है लगाये धूल कण को हृदय से,
बस नहीं अभिप्राय
बस यही थी सिद्धि ,
त्योहार की हैं भोर।  

2.अवचेतना में दृष्टि भरमी

भोर के तुम स्वप्न हो
या किसी गिरि श्रृंग से
गिर पड़ी आ , मणि सी कहीं कुछ
ओस जैसी पंखुड़ी पर
आ गिरी इस ग्रीष्म में
चमकता कोई करिश्मा बन अचानक ,
है किसी अवचेतना में दृष्टि भरमी,
या कोई चेतन पहेली।
सोच के फैलाव भी खुशबुओं के दायरे से
बन रहे , फिर तर्क से टकरा रहे
स्वप्न , फिर बंधन  अभुझे और फिर
एक विचलन की घडी।

बच्चो के लिए तीन कवितायेँ

1. करती किट किट एक  गिलहरी-

करती किट किट एक  गिलहरी
सुबह  सुहानी धूप सुनहरी
इसकी किटकिट  में है गाना
समय पर अपने खाती  खाना ।
डाली डाली घूम घूम कर
सुस्ताती छाया में अक्सर
सुबह  सुहानी धूप सुनहरी
दोपहर आते शांत वो दिखती
संध्या होती सोने जाती।  

2.तोते दीवारों से  चिपके-

तोते दीवारों से  चिपके
कितने कितने साथ में दिखते
कुछ तारों पर उलटे लटके
आपस में कुछ बातें करते।

रोज़ सुबह ही आ जाते हैं
धूप चढ़े बागों में जाते
हर ऋतु में इनके खेल अलग से
हरे भरे से ये लगते हैं।

3.बहुत तेज़ है सूरज बाहर-

चलता है कीड़ा उदास
नहीं दोस्त कुछ दिखते पास
कोई भी न निकला बाहर
दोस्त सभी सिमटे हैं अंदर।

बहुत तेज़ है सूरज बाहर  
कोई नहीं है निकला  आज ,
यही सोचता नन्हा कीड़ा
गमले में आ करके बैठा।

छोटा पौधा हंस कर बोला
आज देर से तुम आये हो
सुबह सभी  आये थे , खेले
जल्दी आते सब मिल जाते।

(प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह हिंदी और अंग्रेजी के जाने माने नाटककार, कवि और निबंधकार हैं। वे लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं )

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