दो अतुकांत नई कविताएं
प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह
1.और चिपका कई जोड़ी आँख-
चलो मजदूरों चलो
पीठ पर लादो लैपटॉप
और हाथों में पकड़ स्क्रीन
कहाँ है अब सब्र
मालिक देखता आँखे तान ,
और चिपका कई जोड़ी आँख
हर तरफ
आगे , और पीछे
बाँयी और दाँयी ओर,
हाँ कई बंधु , देख लो
जा कर जा गिरे,
कुछ और लगने को लगे हैं
बन कतार ,
कुछ कान खोले
मुँह ठुसाये
खड़े हैं पंक्तिबद्ध ,
अरे हाँ , नहीं करना शी !
देख लेना ,और देगा लाद!
मालिक जल रहा सौतिया डाह !
अपनी बचाओ पीठ ,
गर्दन को बचा
सोच की अब खुद रही है कब्र ,
नहीं सोचो यार ,
बस हसो ठट्ठामार,
मालिक जब हँसे,
झुको जिस कोण पर वो झुके
और मुस्काओ गले को रूंध !
शब्द मुँह में ले चलो कुछ और ,
अमा थूक देना यार ,
जालिमों की कहाँ कितनी शान !
2. और फिर मॉडरेशन –
और फिर मॉडरेशन
और फिर मॉडरेशन
जिंदगी मॉडरेटेड कर रहे हैं यार
अपना चला रंदा ,
रुखानी मार !
मॉडरेशन कर रहे हैं ;
सोच का ,
अस्तित्व का
इतिहास का ,
सिस्टमों में फैलता कीचड़
लोग भूले यहाँ अपना कल ,
इस शीत में बदलू बढ़े कम्बल ओढ़
और घुरू को निकलते पंख कितनी जोर।
चलो भैया करो मॉडरेशन रोज़
यहाँ दिखने लगी है अब होड़ !
प्रो. रविन्द्र प्रताप सिंह