₹250.00
Antarman kee hook अंतर्मन की हूक (सेदोका संग्रह)
-प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
Pradeep kumar Dash “Deepak”
● Antarman kee hook ( अंतर्मन की हूक )
A collection of SEDOKA poems. [2019]
● Publisher : Utkarsh prakashan Delhi.
● Price : ₹ 250
Description
Antarman-kee-hook अंतर्मन की हूक (सेदोका संग्रह)
Antarman kee hook अंतर्मन की हूक (सेदोका संग्रह)
-प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
Pradeep kumar Dash “Deepak”
● Antarman kee hook ( अंतर्मन की हूक )
A collection of SEDOKA poems. [2019]
● Publisher : Utkarsh prakashan Delhi.
● Price : ₹ 250
Antarman kee hook अंतर्मन की हूक (सेदोका संग्रह)
“कोमल उर/सहज भाव गुन/सेदोका लेता बुन/मानो विहग/कर चुनाव तृण/घोंसले लेता बुन ।” सेदोका के माध्यम से सेदोका कविता को परिभाषित करने वाले प्रसिद्ध हाइकुकार श्री प्रदीप कुमार दाश “दीपक” जी का सेदोका संग्रह “अंतर्मन की हूक” सेदोका पुस्तकों की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण और स्तरीय पुस्तक है । सेदोका कविता भी हाइकु एवं ताँका की भांति आक्षरिक लघु छंद है, जो षड् पंक्तिक है और 38 अक्षरों में निबद्ध है । परंपरा की दृष्टि से इसके मूल स्रोत को प्राचीन संस्कृत साहित्य में देखा जा सकता है, परंतु वर्तमान क्लासिक सेदोका कविता का शुभारंभ इसी सदी में हुआ है । स्थान, काल और भाषिक प्रकृति के अनुरूप ही कविता का अस्तित्व स्वरुप और आकार ग्रहण करता है सेदोका का आकार तो नहीं बदला, परंतु भाव-विन्यास में समय-परिवेश परिवर्तन होते रहे हैं । जापान के कविता संकलन “मान्योशू” में संग्रहित (मात्र 61 सेदोका) कविताओं से आज की सेदोका कविताओं में पर्याप्त अंतर है । बहुत समय तक लुप्तप्राय रही यह कविता ताँका के अधिक प्रचलन के बाद पुनः प्रकाश में आई और हिन्दी में 2012 से पुस्तक रूप में सेदोका संग्रह प्रकाशित होने लगे । इसी श्रृंखला में प्रतिष्ठित हाइकुकार प्रदीप कुमार दाश “दीपक” जी का सेदोका संग्रह “अंतर्मन की हूक” प्रस्तुत हो रहा है । संग्रह की इन कविताओं में प्रमुख रूप से प्रकृति-पर्यावरण का चित्रांकन, वर्तमान समाज की यथार्थ स्थितियों का चित्रण और आध्यात्मिक बोध दृष्टिगत होते हैं ।
मानव प्रकृति का ही एक अंग है और अंतः प्रकृति तथा बाह्य प्रकृति में अन्योन्याश्रित संबंध है । रचनाकार समय का भी सजग प्रहरी होता है । वह न सामाजिक परिवेश को अनदेखा कर सकता है और न प्राकृतिक परिवेश को । प्रदीप जी ऐसे ही रचनाकार हैं । आपने प्रकृति के अनेक पदार्थों का बिम्बात्मक और लाक्षणिक चित्रण किया है । स्थिर झील, बावले मेघ, हर्षित कृषक, कोमल मिट्टी, सज्जित धरती, सोन चिरैया, विशाल वट, घने छायादार पेड़, हिलती टहनी, नयी कोंपलें, कोमल फूल, झूमते पेड़, सघन वन, जल की धार, गिरि के शिखर, शीतल भोर, फागुनी रंग, हँसते विटप, उगता रवि, हवा की कूची, सोनेरी धूप – सभी को आपने समीप से देखा है और उनकी चेतनता को महसूस किया है । हमारी स्वस्थ परंपराएं साहित्य में ही सर्वाधिक जीवित रहती हैं । शरद पूर्णिमा की संध्या का वर्णन दृष्टव्य है –
शरद संध्या
चाँद जो मुस्कराया
धरा पर बिखरी
श्वेत चंद्रिका
खीर के भोग पर
गिरी सुधा कणिका !
चित्रांकन में भी अद्भुत सौंदर्य है-
साँझ सफर
सुहाना-सा मौसम
चाँद हमसफर
ठिठुर रहा
नदी के जल मध्य
डुबकी लगाकर !
प्रकृति-पर्यावरण के इस वैभव के साथ प्रदूषित होते जा रहे समग्र वातावरण पर भी आपकी दृष्टि गयी है । वर्तमान समाज के बेतरतीब ढाँचे की बात करते-करते स्वार्थी मनुष्यों की भीड़ की ओर, शहरीकरण और नयी पीढ़ी की दायित्वहीनता की ओर भी रचनाकार की दृष्टि पहुँचती है । “देखे थे स्वप्न/…. शहर गया बेटा/बेचे हुए खेत का/ले सारा धन ।” यह ‘बेटा’ आज के ग्रामीण अंचल के युवाओं का प्रतिनिधित्व करता है । रचनाकार ने उस कृषक की पीड़ा का अनुभव किया है, जिसने अपने बच्चे को अपना खेत बेचकर शिक्षा के लिए शहर भेजा है । उसने सूखे पड़े खेत और किसानों की उदासी को देखा है । सूखे पड़े कुओं-तालाबों को देखा है वृक्षों की कराहों को सुना है और बिखरते हुए पत्तों को देखा है । पर्यावरणीय प्रदूषण से रोते हुए वसंत को देखा है और बारुदी गन्ध से छाये आतंक को देखा है । घर की दीवारों पर पड़ी दरारों को देखा है । वस्तुतः अनुभूति की गहनता के कारण ही ऐसा पर्यावरण-बोध और समय की सामाजिक स्थितियों का ऐसा प्रत्यक्षीकरण संभव होता है । प्रदीप जी के अधिकांश सेदोका, इसीलिए विशिष्ट बन गये हैं ।
आध्यात्मिक संस्पर्श की सेदोका कविताओं की जीवन्तता के प्रवाह का प्रभाव भी कम नहीं है –
तन करघा
चुन मन का धागा
रमा धुन कबीरा
घर फूँकता
चल पड़ा बुनने
अपनी चदरिया !
सकारात्मक चिंतन से उत्प्रेरित एक और भी प्रस्तुति –
पृथ्वी के गर्भ
बीच में छिपे पेड़
पेड़ में छिपे वन
वन में गूँजे
जीवन रुपी गीत
पंछियों के संगीत ।
इस प्रकार जीवन के विविध रंगों को चित्रित करने वाली ये सेदोका कविताएं हिन्दी सेदोका साहित्य को समृद्ध कर रही हैं । सृजन के साथ-साथ सम्पादन के क्षेत्र में भी श्री प्रदीप कुमार दाश “दीपक” जी का प्रदेय सराहनीय है । प्रसन्नता का विषय है कि आपके सम्पादन में एक सेदोका ग्रंथ भी शीघ्र प्रकाश्य है । हमारी अनेक मंगलकामनाएं !
– डाॅ. मिथिलेश दीक्षित