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रासपंचाध्यायी रासलीला, श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय 29 से अध्याय 33 की कथा है जिसे रासपंचाध्यायी के नाम से जाना जाता है । “रास पंचाध्यायी रासलीला” इसी पर आधारित हिन्दी काव्यानुवाद छंदबद्ध रचना है । दोहा और चौपाई को आधार छंद लेते हुए मुक्तामणी, गीतिका, चवपैया, जैसे मात्रिक छंद हैं, मत्तगयंद सवैया, कनक मंजरी, वसंततिलका जैसे वार्णिक छंदों में यह कृति आबद्ध है ।
इस कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है गोपीगीत को उसके मूल छंद कनकमंजरी में उसी प्रकार आबद्ध किया गया है जिस प्रकार मूल गोपीगीत है । इसकी दो विशेष्ताएं है एक प्रत्येक चरण के प्रथम और सातवां वर्ण एक समान है और दूसरा प्रत्येक पद के दूसरा वर्ण एक समान है । शिल्पगत इन विशेषताओं को समेटते हुए इसी शिल्प के साथ इस गोपिकागीत की रचना की गई है । इसी प्रकार चौथे और पांचवें अध्याय को भी मूल छंद में ही अनुदित किया गया है ।
रास पंचाध्यायी रासलीला वर्तमान हिन्दी साहित्य भक्तिमार्ग की एक विशिष्ठि कृति है । यह कृति धार्मिक रूचि के लोगों के लिए तो उपयोगी है ही इसके साथ-साथ काव्यप्रेमियों के लिए भी यह अत्यंत रूचिकर है ।
रास पंचाध्यायी का नियमित पाठ किया जाता है, जिसे संस्कृत पाठ कठिन लगता हो उसके लिए यह अत्यधिक उपयोगी है । साहित्य की यह एक अनमोल कृति है ।
Description
रासपंचाध्यायी रासलीला, श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय 29 से अध्याय 33 की कथा है जिसे रासपंचाध्यायी के नाम से जाना जाता है । “रास पंचाध्यायी रासलीला” इसी पर आधारित हिन्दी काव्यानुवाद छंदबद्ध रचना है । दोहा और चौपाई को आधार छंद लेते हुए मुक्तामणी, गीतिका, चवपैया, जैसे मात्रिक छंद हैं, मत्तगयंद सवैया, कनक मंजरी, वसंततिलका जैसे वार्णिक छंदों में यह कृति आबद्ध है ।
इस कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है गोपीगीत को उसके मूल छंद कनकमंजरी में उसी प्रकार आबद्ध किया गया है जिस प्रकार मूल गोपीगीत है । इसकी दो विशेष्ताएं है एक प्रत्येक चरण के प्रथम और सातवां वर्ण एक समान है और दूसरा प्रत्येक पद के दूसरा वर्ण एक समान है । शिल्पगत इन विशेषताओं को समेटते हुए इसी शिल्प के साथ इस गोपिकागीत की रचना की गई है । इसी प्रकार चौथे और पांचवें अध्याय को भी मूल छंद में ही अनुदित किया गया है ।
रास पंचाध्यायी रासलीला वर्तमान हिन्दी साहित्य भक्तिमार्ग की एक विशिष्ठि कृति है । यह कृति धार्मिक रूचि के लोगों के लिए तो उपयोगी है ही इसके साथ-साथ काव्यप्रेमियों के लिए भी यह अत्यंत रूचिकर है ।
रास पंचाध्यायी का नियमित पाठ किया जाता है, जिसे संस्कृत पाठ कठिन लगता हो उसके लिए यह अत्यधिक उपयोगी है । साहित्य की यह एक अनमोल कृति है ।