पुदीना एक सुगन्धित एवं उपयोगी पौधा है । आयुर्वेद के अनुसार यह स्वादिष्ट, रूचिकर, पचने में हलका, तीक्ष्ण, विकृत कफ को बाहर निकालनेवाला एवं चित्त को प्रसन्न करने वाला होता है । यह ज्वर, कृमि, अरूचि, अफरा, दस्त, खाँसी, श्वास, निम्न रक्तचाप, मूत्राल्पता, त्वचा रोग, हैजा, अजीर्ण, सर्दी-जुकाम आदि जैसे रोगों में औषधि के रूप में उपयोगी है ।

पुदीना का रासायनिक संगठन-
ताजी पत्ती में 0.4-0.6 प्रतिशत तेल होता है। तेल का मुख्य घटक मेन्थोल 65-75 प्रतिशात, मेन्थोन 7-10 प्रतिशत तथा मेन्थाइल एसीटेट 12-15 प्रतिशत तथा टरपीन (पिपीन, लिकोनीन तथा कम्फीन) है। पुदीना में विटामिन ‘ए’ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । इसमें रोगप्रतिरोधक शक्ति उत्पन्न करने की सामथ्र्य है ।
औषधि के रूप में उपयोग-
पुदीना सहज सुलभ पौधा है इसे आप अपने क्यारी में रोप सकते हैं, यह सहज में लगने वाला व फैलने वाला पौधा है । इसकी ताजी पत्ती, ताजे रस प्रयोग में लाये जाते हैं । इसके औषधि गुण को देखते हुये बहुत सारे दवा उत्पादक कंपनी इस पुदीना के रस का मार्केटिंक कर रहे हैं यह तरल रूप में, अर्क के रूप में, कैप्सूल के रूप में बाजार में सहज ही उपलब्ध होता है । यह विभिन्न रोगों में कारगार होता है । इसमें कुछ उपयोग इस प्रकार हैं-
1. मलेरिया में-
पुदीना एवं तुलसी के पत्तों के काढ़ा अथवा पुदीना एवं अदरक का रस एक-एक चम्मच सुबह-शाम लेने से मलेरिया रोग का शमन होता है ।
2. गैस एवं पेट के कृमि में-
पुदीना के दो चम्मच रस में एक चुटकी काला नमक डालकर पीने से गैस एवं पेट के कृमि नष्ट हो जाते हैं ।
3. सर्दी-जुकाम एवं न्यूमोनिया में-
पुदीना एवं अदरक के एक-एक चम्मच रस एक चम्मच शहद में मिलाकर दिन में दो बार पीने एवं पुदीना रस की दो-तीन बूँदे कान में डालने से सर्दी-जुकाम एवं न्यूमोनिया में विशेष लाभ होता है ।
4. मासिक धर्म अल्पता में-
मासिक धर्म न आने पर, कम आने पर पुदीना के काढ़े में गुड़ एवं चुटकीभर हींग डालकर पीने से लाभ होता है । इसी प्रकार के सेवन से मासिक धर्म के कारण उत्पन्न दर्द का भी नाश होता है ।
5. अजीर्ण अथवा अपच में-
अजीर्ण अथवा अपच होने की स्थिति में केवल पुदीना अर्क अथवा पुदीना रस में शहद मिलाकर पीने से लाभ होता है ।
6. दाद में-
पुदीना के रस में नींबू रस मिलाकर दाद से प्रभावित क्षेत्र में लगाने पर दाद का प्रभाव धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है ।
7. उल्टी-दस्त, हैजा में-
उल्टी-दस्त होने पर पुदीना के रस में नींबू का रस, अदरक का रस एवं शहद मिलाकर पीने से के अथवा केवल पुदीना अर्क पीने से लाभ होता है ।
8. बिच्छू के दंश में-
बिच्छू अथवा अन्य जहरीले जुतुओं के दंश के शमन के लिये पुदीना का रस उस स्थान पर लगायें एवं पुदीना रस पर मिसरी मिलाकर पीने से लाभ होता है ।
9. हिस्टीरिया में-
ताजे पुदीना रस को गर्म करके सुबह-शाम नियमित सेवन करने से हिस्टीरिया में लाभ होता है ।
10. मुख दुर्गन्ध को ठीक करने में-
पुदीना के रस में पानी मिलाकर अथवा पुदीना के का काढ़े का घूँट मुँह में भरकर रखे, फिर उगल दे । यह क्रिया दो-चार बार करें । इससे दुर्गन्ध का नाश होता है ।
11. बेहोशी दूर करने में-
पुदीना की ताजी पत्ती को मसल कर बेहोश व्यक्ति को सूँघाने से बेहोशी दूर होता है ।
12. पेट दर्द में-
पुदीना रस में थोड़ा-थोड़ा जीरा, हींग, कालीमिर्च और नमक मिलाकर गर्म करके पीने से पेट दर्द में शीघ्रता से लाभ होता है । केवल पुदीना अर्क लेने से भी लाभ होता है ।
13. प्रसव दर्द में –
प्रसव के समय पुदीना रस पीलाने से प्रसव दर्द कम हो जाता है और प्रसव में भी सुविधाजनक रूप से होता है ।
14. तलवे में जलन-
तलवे में जलन होने की स्थिति में तलवे पर पुदीना रस से मसाज करने पर तलवे के जलन शांत होता है ।
15. मुँहासे होने पर-
पुदीना रस में कुछ बूँदे नींबू का रस मिलाकर चेहरे पर लेप करे, कुछ समय इसे सूखने के लिये छोड़ दें, सूख जाने के पश्चात साफ पानी से चेहरा धो लें । इस प्रकार नियमित रूप से करने पर चेहरे के मुँहासे समाप्त होने लगते हैं ।
16. जुएं होने पर-
अपने बाल धोने के शैम्पू में पुदीना रस मिलाकर अपने बाल पर लगाये इसे सूखने दें, सूखने के पश्चात इसे अच्छे से धो लें, इस प्रकार नियमित रूप से करने पर सिर के जुएं नष्ट हो जाते हैं ।
17. लू से बचने में-
गर्मी के दिनों मेे पुदीना का रस पीकर घर से बाहर निकले इससे लू लगने का भय दूर हो जाता है । यदि ज्यादा समय तक घर से बाहर हों तो पुदीना अर्क रख कर चले और निश्चित अंतराल पर इसका सेवन करते रहें ।
18. चेहरे के रूखापन को दूर करने में-
पुदीना रस को दही या शहद में मिलाकर चेहरा साफ करने से चेहरे का रूखापन दूर होता है ।
19. लिवर की सक्रियता बढ़ाने में-
पुदीना का नियमित रूप से सेवन करने पर लिवर की सक्रियता मं वृद्धि होती है ।
20. स्मरण शक्ति तेज करने में-
पुदीना के नियमित सेवन से स्मरण शक्ति में वृद्धि होता है ।
पुदीना आयुर्वेद के अनुसार एक अच्छी औषधी है । घरेलू उपचारों का एक अच्छा साधन है । उपरोक्त सभी उपाय लोगों के अनुप्रयोगिक अनुभवों के आधार पर है । ऐसे इसका कोई साइडइफेक्ट नहीं है किन्तु ‘अति सर्वत्र वर्जयते’ इसलिये इसका प्रयोग जिस रोग के लिये कर रहे हैं । उस रोग के निदान होते ही इसका प्रयोग बंद कर दें ।
प्रत्येक व्यक्ति का तासिर अलग-अलग होता है । जिसे वह स्वयं अथवा उनका चिकित्सक ही जान सकता है अतः अपने तासिर एवं चिकित्सकीय परामर्श के अनुसार प्रयोग करें ।
-रमेश चौहान
स्रोत-
- आयुर्वेद विशेषांक
- विकिपिडिया







Leave a Reply