पुस्‍तक समीक्षा: बाल साहित्य समीक्षा-डॉ अलका सिंह

पुस्‍तक समीक्षा: बाल साहित्य समीक्षा

-डॉ अलका सिंह

पुस्‍तक का नाम“चैन कहाँ अब नैन हमारे ” और “झलकारी बाई “
लेखक का नामरवीन्द्र प्रताप सिंह
प्रकाशकसबलाइम पब्लिकेशन्‍स, जयपुर
ISBN चैन कहाँ अब नैन हमारे -978-81-8192-304-2
झलकारी बाई -978-81-8192-294-6
मूल्‍य “चैन कहाँ अब नैन हमारे ” – 75 रूपये
“झलकारी बाई ” -200 रूपये
भाषाहिन्‍दी
विधानाटक
समीक्षकडॉ अलका सिंह
पुस्‍तक समीक्षा: बाल साहित्य समीक्षा
पुस्‍तक समीक्षा: बाल साहित्य समीक्षा
पुस्‍तक समीक्षा: बाल साहित्य समीक्षा

बाल साहित्य समीक्षा

आज़ादी की अमृत महोत्सव में रोचक पाठ हैं नाटक “चैन कहाँ अब नैन हमारे ” और “झलकारी बाई ” की समीक्षा

आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाते हुये , स्वतंत्रता दिवस की पचहत्तरवीं वर्षगांठ का जश्न , उत्सव और उमंग और भी खास हो जाता है , जब हम शौर्य और पराक्रम की गाथाओं में भारत माता की मिटटी में जन्मी वीरांगनाओं का योगदान और उनकी भूमिका जंग ए आज़ादी के परिप्रेक्ष्य में पढ़ते और देखते हैं।

आज़ादी के अमृत महोत्सव के जोश में वीरांगनाओ पर लिखा गया साहित्य न केवल हमें हमारे संस्कृति की नारी सम्मान की भावना का बोध कराता है , वहीँ वर्तमान समय में नारी सशक्तिकरण के कार्यक्रम मिशन शक्ति हेतु भी काफी रोचक और उत्साहवर्धक पाठ्य सामग्री प्रदान करता है। रवीन्द्र प्रताप सिंह की दो छोटे छोटे हिंदी नाटक – “चैन कहाँ अब नैन हमारे ” और ” झलकारी बाई “इसमें उत्तर भारत की दो सशक्त महिला क्रन्तिकारी – वीरांगना ऊदादेवी और वीरांगना झलकारी बाई के व्यक्तित्व और संघर्ष पर प्रकाश डालते हैं । सरल वाक्य विन्यासों एवं संचार की शैली में रची गयी कृतियां ,आम जन को उनकी भाषा और संस्कृति की अनुभूति कराते हुये इतिहास की शौर्यगाथा और पराक्रम को न केवल दोहराते हैं अपितु जन सामान्य को अपने देश की लिए सोचने समझने की लिए प्रेरित भी करते हैं। ऐसे ही साहित्य में शामिल , नाटककार रवीन्द्र प्रताप सिंह की आलोच्य कृतियां “चैन कहाँ अब नैन हमारे ” और ” झलकारी बाई “, वीरांगना ऊदादेवी और झलकारी बाई जैसे भारतपुत्रियों के स्वतंत्रता संघर्ष पर केंद्रित महत्वपूर्ण नाट्यकृतियाँ हैं। ” चैन कहाँ अब नैन हमारे” , उत्तर प्रदेश की अवध क्षेत्र में स्वातंत्र्य समर की कुछ महत्त्वपूर्ण तिथियों पर जगरानी ऊदा देवी के नेतृत्व में , स्वतंत्रता संगम की उस पृष्ठभूमि की गाथा है जो लखनऊ में ऐतिहासिक सिकंदरबाग की संघर्ष की रूप में 16 नवंबर 1857 को घटी। रवीन्द्र प्रताप सिंह ने बड़े रोचक ढंग से पाठकों को समझाया है। वे लिखते हैं , “वंदन है भारत भूमि तुम्हे / जिसने शूर वीर कोटिश / वीरांगनाएं उतनी ही /जन्मी , अपने अंचल में / शत शत प्रणाम तुम्हें ! / तुमने घर आंगन / आंचल जनपद / वीर शूर जन्मे / धन्य भाग हम सबके /हम तेरे आंगन जन्म लिए / नमन तुम्हें धरती माता की / भारत माँ नमन तुम्हें /(नमन , चैन कहाँ अब नैन हमारे )। आगे वे लिखते हैं , ” इन शूरवीर योद्धाओं में /कितनी वीरांगना नारी थीं /जिनने अपने पराक्रम से /अपनी राह बना ली थी /इन शौर्य कथाओं की क्रमांक में / आज कथानक है जिनका / ऊदा देवी विख्यात नाम / अन्य नाम जगरानी था। ” ( चैन कहाँ अब नैन हमारे, पृष्ठ 7 )

नाटक “झलकारी बाई” में उन्होंने “दुर्गादल ” में वे लिखते हैं , ” सदियों से परतंत्रता झेलता भारत स्वतंत्रता की उद्दात भावों से भर गया , गांव -गांव , नगर -नगर स्वतंत्रता की अलख जग गयी और 10 मई 1857 को मेरठ की सैनिक छावनी में भारतीय सैनिकों ने भारत की स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फूंक दिया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय नारियों ने भी पुरषों के साथ अपना यथोचित योगदान दिया। ” (वीरांगना झलकारी बाई , पेज 6)।

ये दोनों नाटक भारत के स्वातंत्र्य समर में अदम्य रण कौशल से लड़ी और भारत माँ के लिए बलिदान हो गयी वीरांगनाओं के सम्मान में महत्त्वपूर्ण रचनायें हैं। नाटककार मानते हैं कि आज़ादी का अमृत महोत्सव वीरांगना झलकारी बाई , वीरंगना ऊदा देवी , वीरांगना अवंतीबाई जैसी , ऐतिहासिक महिलाओं के प्रति नमन और श्रद्धांजलि देने का अवसर है। इन नाटकों में काव्य और गद्य को अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। अवध क्षेत्र में आम बोलचाल में प्रयुक्त होने वाली शब्दावली नाट्य प्रस्तुतिकरण को सरल और सुग्राह्य बनाती है। नाटककार ने शब्दों की चयन में कोई परहेज़ नहीं किया है , शायद वह संवाद की प्रेषणीयता को अपना ध्येय मानते हैं। सरलता और सहजता ही अच्छे बाल साहित्य कि कसौटी है। इन नाटकों में एक और जहाँ प्रामाणिक ऐतिहासिकता देखने को मिलती है , वहीँ एक मजे हुये लेखक की कलम का जादू।

बाल साहित्य के सन्दर्भ में मेरा मानना है कि वर्तमान ऑडियो – विज़ुअल परिप्रेक्ष्य में हमें अपने हिंदी बाल साहित्य पर एक गंभीर विशेषण करने की आवश्यकता है। अधिकांश रूप से हिंदी बाल साहित्य में या तो पशु पक्षी या सामान्य घटनाओं को दिखाया जाता है , या पौराणिक पात्रों को। आज़ादी का अमृत महोत्सव समाज , संस्कृति , भारतीय ज्ञान परंपरा , समाज एवं संस्कृति को एक नए ढंग से देखने की प्रेरणा देता है। अच्छा साहित्य बाल मन में एक अमिट प्रभाव छोड़ता है , जो आजीवन सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता है। तेज़ी से बदलते हुए समाज में प्रेरक बाल साहित्य लेखन की आवश्यकता है। आज़ादी का अमृतमहोत्सव एक ऐसा अवसर और प्रेरणा प्रसंग है , जहाँ “चैन कहाँ अब नैन हमारे ” और ” झलकारी बाई ” जैसी अधिकधिक कृतियां लिखी जायें।

समीक्षक-
डॉ अलका सिंह ,
शिक्षक, डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *