बालमन के हिरदे म नैतिकता अउ सामाजिकता के बीजा बोही फुरफुन्दी
-पोखन लाल जायसवाल
कृति का नाम | फुरुुन्दी |
कृतिकार का नाम | कन्हैया साहू ‘अमित’ |
प्रकाशक | जी एच पब्लिकेशन प्रयागराज |
प्रकाशन वर्ष | 2022 |
पृष्ठ | 64 |
मूल्य | 150 रू. |
भाषा | छत्तीसगढ़ी |
विधा | काव्य |
समीक्षक | पोखन लाल जायसवाल |
साहित्य म जब कभू बाल साहित्य के बात आथे, त कुछ मन ल भरम हो जथे कि बाल साहित्य लइका मन के लिखे साहित्य आय, जबकि अइसन नोहय। बाल साहित्य असल म लइका मन बर लिखे गे साहित्य हरे। जेला नान्हे-नान्हे लइका मन के मनोरंजन अउ ज्ञान बढ़ाय के उद्देश्य ले लिखे जाथे। एकर लिखइया लइका घलव हो सकथे, फेर लइका मन के भाषा म साहित्यिक भाषा के कमी देखब म मिलथे। जउन प्रोत्साहन ले आगू जा के मँजा जथे, परिष्कृत हो जथे। बाल मनोविज्ञान के बने जानकार हर ही बढ़िया बाल साहित्य के सृजन कर सकथे। बाल सुलभ मनोवृत्ति के जानबा नइ रेहे ले बाल साहित्य म मनोरंजन, चरित्र निर्माण अउ ज्ञानवर्द्धन के त्रिवेणी संगम नइ हो सकय। बाल साहित्य के लिखइया चाहे कोनो उमर के हो बाल साहित्यकार कहलाथे। बाल साहित्य के भाषा निचट सरल होना चाही, जेकर ले लिखे गे साहित्य के उद्देश्य के संप्रेषण सहज हो सकय। रूढ़ (कठिन) शब्द, समास ले भरे अउ प्रयोग पूर्ति लाक्षणिक भाषा ले बाल साहित्य लइका के मन बहलाव म बाधा बनथे। इही पाय के कतको बाल साहित्यकार मन नवसिखिया मन ल एकर प्रयोग ले बाँचे के सुझाव देथें। बाल साहित्य म भाषा बाल सुलभ अउ लइका मन के मन लुभावन होना चाही।
छोटे लइका बर लिखना मतलब छोटे-छोटे वाक्य के मोती ले गीत कहानी कहना। जतके छोटे रचना, ओतके बड़े चुनौती। पहलइया चुनौती भाव के मुताबिक शुद्ध वाक्य गढ़े के होथे, त दूसरइया चुनौती छोटे-छोटे वाक्य म पूरा भाव ल समेटे के होथे। तीसर चुनौती विषय वस्तु के चयन होथे। एकर अलावा अउ चुनौती हे फेर…. बेरा नइ हे। ए सब बाल मन के मुताबिक होना चाही। छोटे-छोटे वाक्य गढ़ना मतलब रचना म लघुता लाना। लइका के मन बड़ चंचल रहिथे। छिन-छिन म हिरना कस एती-ओती उछल-कूद करे लग जथे। इही कारण आय कि लइका मन बर रचना उँकर उमर के हिसाब ले होना। आने-आने उमर के लइका बर अलग-अलग किसम के रचना लिखे जाना चाही।
आज जब चारों कोति ए संसो जताय जावत हे कि लइका मन अब समय ले पहिली बड़े हो जावत हें। ए सब टीवी अउ सोशल मीडिया के प्रभाव आय। उँकर मन म बड़े मन के प्रति सम्मान भाव नइ दिखय। एकर पीछू बड़का कारण आय-समिलहा (संयुक्त) परिवार के टूटई अउ स्कूली पाठ्यक्रम म बरोबर बाल साहित्य के नइ होना। नैतिक शिक्षा के पूरा-पूरा अभाव हे। एसो ए दिशा म शिक्षा विभाग के संसो दिखत हवय, फेर अवइया समय बताही ए संसो ले नवा कारज शुरु होही के नइ।
नैतिक अउ सामाजिक मूल्य गढ़े म बाल साहित्य के बड़ भूमिका हे। ए सबो जानथें अउ मानथें। कन्हैया साहू ‘अमित’ प्रायमरी स्कूल के शिक्षक होय के सेती छोटे लइका मन ले जुड़े हें, उँकर ए जुड़ाव ठेठ गँवई गाँव के लइका मन ले हे। अइसन म ओला मालूम होगे हे कि लइका मन ल का चाही? उँकर इही अनभो ह उँकर रचना म दग-दग ले दिखथे। उँकर लिखे छत्तीसगढ़ी बाल कविता के संग्रह फुरफुन्दी लइका मन बर बड़ उपयोगी हे। फुरफुन्दी के 47 कविता मन म गेयता हे। जउन लइका मन ल आकर्षित करहीं। अपन कोति खींचहीं। इही गेयता के सवारी(गाड़ी) म सवार कविता मन लइका के अंतस् म जगा बनाय म सफल हें। ए कविता मन म नैतिक शिक्षा हे त देशभक्ति अउ समरसता घलव हे। उदाहरण देखव-
सुमता-गंगा हमन नहान।
मनखे मनखे एक समान।।
०००००
जी परान दे के रक्षा करबो।
एखर खातिर हाँसत मरबो। (देशभक्ति)
००००
जात-पात के रोड़ा टारव।
नदिया कस आगू बढ़ना हे। (समरसता)
००००
आज समाज ले घटत जावत नैतिक अउ मानवीय मूल्य ल पुनर्जीवित करे बर प्रायमरी अउ मिडिल कक्षा के पाठ्यक्रम म बाल साहित्य ल शामिल करे के जरूरत हे। बालमन कच्चा माटी होथे। ओला सिरिफ ढाले के जरूरत हे। अउ ढाले बर दृढ़ इच्छाशक्ति ले बने साँचा के। तब अवइया बेरा म समाज म मानवीय मूल्य ह जगर मगर करही।
साहित्यिक दृष्टि ले जम्मो रचना म छंद विधान के पालन होय हे, उहें रचना मन म अलंकार के सुग्घर प्रयोग होय हे। ध्वन्यात्मक शब्द मन ले लइका मन के ज्ञान म बढ़ोतरी करे म ए संग्रह सराहे के लइक हे।
चलय रेल ह छुकछुक छुकछुक।
धुआँ उड़ावय भुकभुक भुकभुक।।
पातर पातर पटिया पटरी।
पोटा काँपय पुकपुक पुकपुक।।
एकरे संग जीव-जनावर मन का का आवाज निकालथें, वहू ल शामिल करे गे हे।
‘कोन काय करथे’ शीर्षक ले लिखे कविता म आने-आने बूता ले जुड़े मनखे मन के आरो देवत लइका मन के समझ बढ़ाय के सुग्घर उदिम हे।
सिलथे कपड़ा हमरे मरजी।
काहय ओला जम्मो दरजी।।
आज मनखे ल पर्यावरण असंतुलन ले उपजत समस्या ह संसो म डार दे हे। विकास के दउड़ म सब शामिल हें, सब काहत हें जंगल -झाड़ी नइ काटना हे फेर का होवत हे ? सब ल पता हे। फेर अमित जी अपन दायित्व ल पूरा करें हें-
पेड़ लगाबो पेड़ बचाबो।
बंजर धरती हम हरियाबो।।
पेड़ लगाबो चारों कोती।
पेड़ असल मा हीरा-मोती।।
ए संग्रह म लइका मन के रूचि के पूरा खियाल रखे गे हे कहे जा सकत हे, काबर कि एमा उन ल उँकर पसंद के सबो विषय ऊप्पर कविता पढ़े ल मिलही। ए फुरफुन्दी ह बालमन के हिरदे म नैतिकता अउ सामाजिकता के बीजा बोही।
कुछ कुछ जगा म छंद विधान पालन के चलत भाव जुर नइ पाय हे। जइसे-
भारत देश हमर महतारी।
छाती बैरी के छरना हे। (पृ.17)
मात्राभार बर देश लिखे गे हे, जबकि महतारी देश बर नइ भुइँया बर उपयोग होथे। अइसन चूक ले लइका के नींव (नेंव)कमजोर हो सकत हे।
भइया-भउजी दीदी-जीजा।
कर्रा कउहा करही बीजा।। (पृ. 37)
ए डाँड़ म तुकबंदी हे, भाव नइ दिखत हे।
००००
लइका खेलँय बाँटी भौंरा।
आमा अमली अँवरा धौंरा।। (पृ.37)
ए दू लाइन म बालमन भ्रमित हो सकत हे, काबर कि सबो कोती ए खेल नइ खेलँय। कोनो-कोनो तिर के वचन, कर्ता-क्रिया अउ टंकण संबंधी त्रुटि ल आगामी संस्करण बर सुधार लिए जाय त बने रही।
बाल साहित्य के सृजन बहुते श्रम साध्य के बूता आय। अइसन कठिन बूता ल हाथ म लेके कन्हैया साहू ‘अमित’ सरलग लेखन करत हें। सचित्र किताब निकाले के सोचना अउ कठिन हो जथे। फेर कन्हैया साहू अमित ल कठिन बूता ल ही करे म मजा आथे। ‘अमित’ ले नवा लिखइया मन ल प्रेरणा मिलही। लइका मन बर बहुपयोगी बाल कविता संग्रह ‘फुरफुन्दी’ के प्रकाशन बर कन्हैया साहू अमित ल मैं बधाई अउ शुभकामना देवत हँव।
-पोखन लाल जायसवाल
धन्यवाद भैयाश्री, सादर नमन सह आभार
अभिनंदन है अमित भाई आपका