पुस्तक समीक्षा छन्द झरोखा-रामकुमार चन्द्रवंशी
पुस्तक समीक्षा-छन्द झरोखा
पुस्तक समीक्षा | ‘‘छन्द झरोखा’’ |
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कृति का नाम | ‘‘छन्द झरोखा’’ |
कृतिकार | रामकुमार चन्द्रवंशी |
प्रकाशक | वैभव प्रकाशन, रायपुर |
कृति स्वामित्व | कृतिस्वामी |
प्रकाषन वर्ष | 2021 |
सामान्य मूल्य | रू. 200/ |
विधा | पद्य |
शिल्प | छन्द |
भाषा | छत्तीसगढ़ी |
पुस्तक की उपलब्धता | कृतिस्वामी के पास |
समीक्षक | अजय अमृतांशु |
पुस्तक समीक्षा-छन्द झरोखा
समीक्षक-अजय अमृतांशु
विगत तीन चार बछर ले छत्तीसगढ़ी म सरलग छन्द लेखन होवत हे जेमा 100 ले आगर छन्दकार महतारी भाखा ल पोठ करे के काम करत हवय। युवा छन्दकार रामकुमार चन्द्रवंशी जी के पहिली कृति “छन्द झरोखा” पढ़े बर मिलिस। ये कृति म 65 प्रकार के छन्द के प्रयोग कवि हा करे हवय जेन अब तक के कोनो भी छत्तीसगढ़ी कृति मा पहला कृति आय। शुरुआत सरस्वती वंदना से हे जेन त्रिभंगी छंद मा हे।
कृति म सबले जादा रचना घनाक्षरी अउ सवैया छन्द मा हवय। जेमा 7 प्रकार के घनाक्षरी, अउ 13 प्रकार के सवैया हवय । येकर अलावा-
त्रिभंगी, कुण्डलिनी, उपेन्द्रवज्रा, सारवती, सीता, दोधक, वसन्ततिलका,चंचरी,ताटक,श्रृंगार,छन्द विजात, सिंधु, कज्जल,कहमुकरी, राधिका, विधाता, शोभन,रूपमाला, गीता, आल्हा,सगुण, प्लवंनगम,दिगपाल, मरहठा,रजनी, पीयूष वर्ष, शक्ति, उल्लाला, त्रिभंगी, अमृतध्वनि, सार,छन्द मनोरम, मुक्तामणि, लावणी,ताटक, कुकुभ, मधुमालती,पादाकुलक, सरसी, गीतिका, हरिगीतिका, छप्पय अउ कुण्डलिया छन्द हवय।
छन्द लेखन के ज्यादातर विषय पारंपरिक हवय जेमा – ज्ञान,जीवन दर्शन, प्रभु आराधना, दान, परहित, हार-जीत, सुख-दुख, मेहनत, देशप्रेम आदि । वर्तमान समस्या जइसे-
जल सरंक्षण, पर्यावरण, प्लास्टिक के बेतरतीब उपयोग, किसान के चिंता, नशा अउ मँहगाई ऊपर घलो कवि अपन कमल चलाय हवय।
दोहा छन्द के बानगी देखव-
भुइँया सुन्ना रुख बिना, तुलसी बिना दुवार। कोठा सुन्ना गउ बिना, बेटी बिन संसार।। आल्हा छन्द मा कवि के चिंता पर्यावरण बर - सुनव सुनव जम्मो नर नारी,करलव बेरा रहत विचार। काट कभू झन करव नदानी, रुख हावय तब हे संसार।। कवि के एक बेहतरीन उल्लाला छन्द देखव- दौलत वो का काम के, राखे गठरी बाँध के। लइका जस घरघुंदिया, खाय कभू ना राँध के।।
सवैया मा गण व्यवस्था रहिथे येकर कारण सवैया लिखे मा बनेच मेहनत लगथे फेर सवैया मा चन्द्रवंशी जी के बढ़िया पकड़ हवय जेकर संख्या 105 हवय। वैश्विक बीमारी कोरोना ऊपर कुण्डलिनी छन्द म घलाव कवि अपन कलम चलाय हे। डमरू घनाक्षरी जेमा 32 वर्ण के चार पद अउ सबो वर्ण लघु होथे घलो कवि लिखे हवय।
एक प्रकार के छन्द ल एके जघा रखे ले देखे अउ पढ़े म सहजता प्रतीत होथे फेर घनाक्षरी सवैया अउ कुछ छन्द हा मिंझरा होय ले पुस्तक के शुरू हा थोरिक अव्यवस्थित लगत हे प्रकाशक ल ये बात के ध्यान रखना चाही।
डीजे संस्कृति के समस्या ला सिंहावलोकनी के एक दोहा म कवि लिखथे
डी जे के साउण्ड सुन, मनखे भैरा होय। धक धक हिरदे हा करय,धर के माथा रोय।।
सियान के लिये बुजरक शब्द के प्रयोग दोहा मा करे गे हवय जेन खटकथे। अइसन शब्द के प्रयोग ले कवि ला बचना चाही।
चौपाई छन्द मा अति संयोक्ति अलंकार के प्रयोग देखव –
जय हो जय भारत के सेना। तुँहर बराबर कोई हे ना।। शत्रु तुँहर आघू घबरावय। देखत ठाड़े ठाड़े सुखावय।।
वर्तमान म छत्तीसगढ़ी भाखा अड़बड़ नाजुक दौर ले गुजरत हवय। एक डहर जिहाँ छत्तीसगढ़ी भाखा ल विकृत करे के कुत्सित प्रयास होत हे उँहे दूसर डहर छन्द मा शानदार काम घलो चलत हवय। “छन्द झरोखा” किताब येकर प्रमाण आय । अभी दू बछर के भीतर छन्द के सुग्घर सुग्घर किताब आइस जेन छत्तीसगढ़ी भाखा ला समृद्ध करे के काम करिस। निश्चित रूप से ये किताब घलो छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ करही।
मोला विश्वास हे कि ये कृति रामकुमार चन्द्रवंशी जी ला छत्तीसगढ़ी साहित्य के क्षेत्र मा अलग पहिचान देवाही अउ कृति हा छत्तीसगढ़ी म छ्न्द लेखन के परंपरा ल आघु बढ़ाही।
-अजय "अमृतांशु" भाटापारा (छ.ग.)
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