पुस्‍तक समीक्षा- ”दोहा के रंग” समीक्षक-श्री अजय ‘अमृतांशु’

समान्‍य जानकारी-

कृति का नाम‘‘दोहा के रंग’’
कृतिकारश्री रमेशकुमार सिंह चौहान
प्रकाशकवैभव प्रकाशन, रायपुर
कृति स्वामित्वकृतिकार
प्रकाशन वर्ष2016
सामान्य मूल्य-200.00
विधापद्य
शिल्प –दोहा छंद
भाषा –छत्तीसगढ़ी
पुस्तक की उपलब्धताकृतिस्वामी के पास
समीक्षकश्री अजय ‘अमृतांशु’
दोहा के रंग
दोहा के रंग
दोहा के रंग

भूमिका-

साहित्य म छंद के अपन अलगे महत्ता हवय । छंद ह साधना के विषय आय, बेरा-बेरा म छत्तीसगढ़ी म छंद लेखन के काम होवत रहे हे, फेर आज के नवा पीढ़ी ह छंद के नाव ल सुनके भागथे । अइसन बेरा म श्री रमेश चौहान जी के दोहा गीत संघरा-दोहा के रंग के प्रकाशन ये बात के द्योतक हे कि अभी घलो छंद के महत्ता कम नइ होय हे, ओकर लिखईया भले कम होगे हे ।

दोहा के रंग ले परिचय-

दोहा के रंग ल चौहानजी बड़ सुग्घर ढंग ले अलग-अलग खण्ड म बाँट के लिखे हवय । ये किताब ल पांच खण्‍ड म बांटे गे हे । पहिली खंड छंद ब्‍याकरण अउ दोहा के मूलभूत नियम ले सजाये गे हे । पहिली भाग ह पूरा-पूरा छंद ब्‍याकरण अवय । आघू म चौहानजी के दोहा संग्रह अउ दोहा ऊपर कई-कईठन प्रयोग हवय । येला एक-एक करके अइसन देखे जा सकत हे ।

खण्‍ड़- ‘अ’

खड़-‘अ’ में दोहा छंद के शिल्प विधान दे गे हवय । दोहा काला कहिथे, दोहा कतका परकार के होथे, कतका मातरा के होथे, दोहा कईसे लिखे जाथे अउ दोहा लिखे के कोन-कोन से नियम-धियम हे तेला विस्तार ले समझाय गे हवय । मात्रिक छंद म मातरा गिने के तरीका, लघु अउ गुरू लगाय के तरीका, तुकान्त के नियम, सम चरण अउ विषम चरण ल विस्तार से मझाय गे हवय । अलग-अलग संदर्भ ग्रंथ ले दोहा शिल्प विधन के जानकारी ल चौहानजी बड मिहनत ले संग्रहित करे हवय । छंद सिखैया मन बर ये बड़ उपयोगी साबित होही । दोहा-गीत, दोहा-ददरिया, दोहा-सिंहावलोकनी, दोहा-मुक्तक ल उदाहरण सहित समझाय गे हवय ।

खण्‍ड़- ‘ब’

खण्ड़-ब ‘दोहावली’ आय ये ह चौहानजी के दोहा संग्रह आय, जेमा कुल मिलाके 349 दोहा संग्रहित हवय । दोह ह अलग-अलग विषय जइसे पिरीत, बेजा-कब्जा, गाँव अउ किसान, शि्‍ाक्षक दिवस, मउसम, आतंकवाद, टूटत परिवार,संस्कार, रामकथा, सहिष्णुता, काम-बुता, सहित अन्य विषय म लिखे गे हवय । ये दोहा मन के एक खास बात ये हे जिहां जुन्‍ना विषय म दोहा देखे ला मिलथे ऊँहे नवा-नवा विषय म घला दोहा देखे ल मिलथे ।

खण्ड़-‘स’

ये खण्‍ड म दोहा दोहा ल जोड़ के दोहा गीत बनाये गे हे जेमा कुल 43 दोहागीत समावेशि्‍ात हवय जेमा अलग-अलग विषय, परिवेश, परब, तीज-त्यौहार, धार्मिक स्थल आदि ल लेके दोहा गीत रचे गे हवय । ये प्रयोग हिन्‍दी म तो देखे बर मिलथे फेर छत्‍तीसगढ़ी म मोला पहिली प्रयोग लगथे ।

खण्ड़-‘द’

दोहा ददरिया आय ये हा लेखक के नवा प्रयोग आय काबर ददरिया म दोहा के प्रयोग हवय । नायक अउ नायिका के सवाल अउ जवाब दोहा म करे गे हवय जेन ह मोर जानब म छत्तीसगढ़ी म पहिली प्रयोग आय ।

खण्ड़-‘इ’

दोहा मुक्तक अउ सिंहावलोकनी दोहा हवय । दोहा सिंहवलोकनी जिहां हिन्‍दी छंद साहित्‍य म बड़का महत्‍व रखथे ऊंहे मुक्‍त ह जन प्रचलित विधा के रूप म जाने जाथे ।

पुस्तक के कुछ बानगी-

अइसे पुस्‍तक के सबो दोहामन पढ़े के लइक हे, येमा दू-चारठन के बानगी देखे जा सकत हे-

मजदूर के पीरा

लात परे जब पीठ मा, पीरा कमे जनाय ।
लात पेट मा जब परय, पीरा सहे न जाय ।।

बेजा कब्जा

बेजा कब्जा व्यथित होके कवि लिखथे-

तरिया नरवा छेक के, दें हें ओला पाट ।
कहाँ हवय पानी भला, कहाँ हवय गा घाट ।।

तंबाकू, मदिरा जइसन दुर्व्यवसन के भयावहता के चित्रण –

दारू मंद के लत लगे, मनखे मर-मर जाय ।
जइसे सुख्ख डार हा, लुकी परे बर जाय ।।

छ.ग. के प्रसिद्व धार्मिक स्थल

छ.ग. के प्रसिद्व धार्मिक स्थल मन के सुग्घरबरनन चौहान जी अपन दोहा म करथें-
दामाखेड़ा धाम मा, हे साहेब कबीर ।
ज्ञानी ध्यानी मन जिहाँ, बइठे बने फकीर ।

उपसंहार-

रमेश चौहानजी नवा पीढ़ी के प्रतिनिधित्व करथे, छत्तीसगढ़ी साहित्य म छंद विधा ल पोठ करे के काम चौहानजी करे हवय । दोहा गागर मसागर भरे के विधा आय वो दृश्टिकोण से चौहानजी कुछ दोहा म थोकिन कसावट के जरूरत महसूस करेंव फेर उँकर मेहनत अउ नवा प्रयोग सराहनीय हवय । कव्हर पेज सुग्घर कलात्मक हे, कुल मिलाके पुस्तक ह संग्रहणीय हे । उन ला बधाई अउ शुभकामना …

-अजय ‘अमृतांशा’

इसे भी देखें

दोहा छंद विधान

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