पुस्‍तक समीक्षा : समकालीन जीवन यथार्थ और जयंत कुमार थोरात की कहानियां

पुस्‍तक समीक्षा-

पुस्‍तक समीक्षा: दोस्‍त अकेले रह गये (कहानी संग्रह)
पुस्‍तक समीक्षा: दोस्‍त अकेले रह गये (कहानी संग्रह)
कृति का नामदोस्‍त अकेले रह गये (कहानी संग्रह)
कृतिकार का नाम जयंत कुमार थोरात
भाषाहिन्‍दी
विधाकहानी
समीक्षकत्रिभुवन पांडेय
पुस्‍तक समीक्षा: दोस्‍त अकेले रह गये (कहानी संग्रह)

समकालीन जीवन यथार्थ और जयंत कुमार थोरात की कहानियां

– त्रिभुवन पांडेय

पुस्‍तक समीक्षा: दोस्‍त अकेले रह गये-त्रिभुवन पांडेय
पुस्‍तक समीक्षा: दोस्‍त अकेले रह गये-त्रिभुवन पांडेय

वर्तमान कथा समय आत्मकेन्द्रित कथाओं का है। कहानीकार का दुःख-सुख, मिलन-बिछोह, आत्म संघर्ष ही आज की कहानियों का सर्वप्रिय कथानक है। कहानियों का प्रारंभ जीवन समस्याओं एवं जीवन संघर्षों के चित्रण के साथ समाधान खोजने के उद्देश्य से हुआ था। लेकिन धीरे-धीरे सभी महत्वपूर्ण उद्देश्य कहानियों से ओझल हो गये। जयंत कुमार थोरात की कहानियों में उद्देश्य की वापसी देखकर प्रसन्नता हुई। कम से कम पाठक को पढ़ने के बाद इन कहानियों में अपने आसपास की जिंदगी की वापसी दिखलाई पड़ती है।

पहली ही कहानी ‘‘एक सुख ऐसा भी’’ को लें। आज परिवारों में वृद्ध हो रहे पिता, दादा, मां, दादी आदि की जिस तरह उपेक्षा हो रही है और जिस तरह निर्वासित, उपेक्षित, अवसादग्रस्त जिन्दगी, उन्हें जीना पड़ रहा है यह सर्वविदित है। वृद्ध सदस्यों का वृद्धाश्रम में जाकर रहना उसी उपेक्षा का परिणाम है। सेवानिवृत्त नागरिकों के लिए बेटा रविश, बहु रंजिता के पास इतना भी समय नहीं है कि वे कभी-कभी उनका हाल-चाल पूछ लें। उनसें बात कर लें। पत्नी की मृत्यु और सेवा निवृत्त होने के बाद नारंग एकदम अकेले हो गये हैं। एकदिन समाचार पत्र में अनाथ बच्चों की स्कूल में अध्यापक की जरूरत संबंधी विज्ञापन पढ़कर वे वहां काम करना शुरू कर देते हैं। कुछ दिनों के बाद बेटे और बहु को उनकी फिर से नौकरी करने की जानकारी मिलती है। कारण पूछने पर नारंग बताते हैं कि घर में अकेले पड़े रहने से यही अच्छा है कि कुछ देर बच्चों के बीच रहा जाये। इससे बड़ी राहत मिलती है। बेटे और बहु स्थिति समझने के बाद अफसोस व्यक्त करते हैं। उन्हें अपनी गलती का अनुभव होता है। 

‘‘करवा चैथ‘‘ पति-पत्नी के मध्य होने वाले छोटे-छोटे झगड़े और समझौता की कहानी है। सुयश और उमा की तरह आज की कितने ही घरों में पति-पत्नी के मध्य घटित होने वाले छोटे-छोटे मनमुटाव रोज ही होते हैं। लेकिन जिस तरह नाराज सुयश अपनी पत्नी उमा को मना लेता है, प्रेम में भाव विभोर कर देता है यह दाम्पत्य जीवन का सच है। 

’’एक दिवाली ऐसी भी’’ कहानी भी आधुनिक जीवन के एक दुखांत को रेखांकित करती है। मिस्टर एवं मिसेस सिन्हा का सुपुत्र हंस इंजीनियरिंग पास कर अमेरिका में नौकरी करने लगता है। माता-पिता घर में अकेले रह जाते हैं। उनका आग्रह है कि हंस दीवाली में जरूर आये। हंस आने का वचन देता है लेकिन त्यौहार के पूर्व सूचित करता है कि वह जरूरी काम के कारण आने में असमर्थ है। मां पिता की तैयारी धरी के धरी रह जाती है। उसी निराशा के समय पड़ोसी का बेटा जतिन उनके साथ त्यौहार मनाता है। वह यह भी जानकारी देता है कि इंजीनियरिंग पास होने के बाद उसे भी विदेश में नौकरी मिली थी। लेनिक मां और पिता को अकेले में छोड़ कर जाने के पक्ष में वह नहीं था। वह उनके वृद्धावस्था में साथ रहना जरूरी समझता है। 

‘‘उपहार’’ कहानी भी रोचक है मानवीय गुणों की किस तरह प्रशंसा होती है और सद्गुणों को पुरूस्कृत किया जाता है। यह उस कहानी का कथानक है। मिस्टर वर्मा अपने कार्यकाल में सबकी सहायता करते हैं। सब लोगों पर उनकी सदाशयता का बड़ा प्रभाव है। वे काफी धनराशि सहायता के रूप में खर्च कर दिया करते थे। इसीलिए जब वे सेवानिवृत्त हुए तब उनके पास आने-जाने के लिए स्कूटर भी नहीं था। सेवानिवृत्त होने के बाद बिदाई के समय कार्यालय के सहयोगी उन्हें स्कूटर भेंट करते हैं यह कहते हुए कि भविष्य में उनके लिए यह जरूरी है। 

‘‘एक बटवारा ऐसा भी’’ याद रह जाने वाली कहानी है। मुकेश और देवेश दोनों भाई के मध्य बंटवारा होता है। मुकेश खेत ले लेते हैं। देवेश को मकान मिलता है। देवेश अपने अध्यापक पिता की स्मृति में मकान स्कूल को दान कर देते हैं। उनके पिताजी उस स्कूल में ही अध्यापन करते रहे। बेटे का पिता के प्रति यह प्रेम समाज के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण बन जाता है। 

इस संग्रह की महत्वपूर्ण कहानी है अमनपुरा। हिन्दू और मुसलमान सद्भावना पूर्वक साथ-साथ रहते हैं लेकिन पड़ोस में दंगा होने के बाद समाचार सुनकर अमनपुरा में भी दंगा भड़क उठता है। अमनपुरा के डाॅ. सलीम सबको समझाने की कोशिश में स्वयं जख्मी हो जाते हैं उन्हें मरहम पट्टी के बाद कुर्सीं में बिठाल दिया जाता है। तभी सीवन अपने छः माह की बच्ची को लेकर भागता हुआ डाॅ. सलीम के पास आता है बच्ची की हालत गंभीर देखकर डाॅ. जख्मी होने के बाद भी उन्हें लेकर अस्पताल जाते हैं बच्ची ईलाज के बाद ठीक हो जाती है। सिर के सांघातिक चोंट के कारण डाॅ. सलीम की मृत्यु हो जाती है। सब शोक में डूब जाते हैं। मृत डाॅ. की एक प्रतिमा गांव के चैराहे में लगाई जाती है। सब उनकी शहादत को याद करते हैं। 

‘‘कहानी एक शुद्ध विधा’’ नामक निबंध में निर्मल वर्मा ने लिखा है ’’कहानी जैसी संक्षिप्त और सुकुमार विधा ने व्यक्ति की घोर पीड़ा और अंतरद्वंद को व्यक्त किया है।’’ जयंत कुमार थोरात की इन कहानियों को पढ़ते हुए निर्मल वर्मा का निष्कर्ष सटीक जान पड़ता है।

-त्रिभुवन पांडेय
सोरिद नगर धमतरी

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *