पुस्‍तक समीक्षा:गम्‍मत

पुस्‍तक परिचय

पुस्‍तक समीक्षा:गम्‍मत
पुस्‍तक समीक्षा:गम्‍मत
कृति का नाम-‘‘गम्मत’’
कृतिकार-श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव
प्रकाशक-वैभव प्रकाशन, रायपुर
ISBN81-89244-x
कृति स्वामित्व-कृतिकार
प्रकाशन वर्ष-2011
सामान्य मूल्य-रू. 100.00
विधा –पद्य
शिल्प –हास्य, व्यंग्य की कवितायें
भाषा –हिन्दी-छत्तीसगढ़ी (छत्तीसगढ़ी प्रधान)
पुस्तक की उपलब्धताकृतिस्वामी के पास
समीक्षक-श्री रमेशकुमार सिंह चैहान, नवागढ़
पुस्‍तक समीक्षा:गम्‍मत

पुस्‍तक समीक्षा-गम्‍मत

पुस्‍तक समीक्षा:गम्‍मत

पुस्‍तक समीक्षा:गम्‍मत
पुस्‍तक समीक्षा:गम्‍मत

छत्‍तीसगढ़ी पुस्‍तक समीक्षा:गम्‍मत-

‘गम्मत’ शीर्षक ही हा अपन आप मा छत्तीसगढ़ के संस्कृति, भोलापन, हास्य ला अपन आप मा समेंटे हे । गम्मत छत्तीसगढ़ के एक स्वतंत्र सांस्कृतिक विधा हे, जेमा नाचा के जोकड़ अपन बात दर्शक मन से हास्य ढंग ले रखथें ।

छत्‍तीसगढ़ी पुस्‍तक ‘गम्मत’, श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव के हास्य-व्यंग्य के कविता संग्रह आय, जेमा 75 पेज मा हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी के कुल 51 कविता संग्रहित हे । मनोज कुमार श्रीवास्तव छत्तीसगढ़ के हास्य-व्यंग्य के एक सशक्त हस्ताक्षर हें । इंखर हास्य-व्यंग्य के ये बानगी ‘गम्मत’ मा कई-कई रूप मा अपने-अपन छलकत हे ।

संग्रह के शुरूवात ‘नारी के महिमा’ कविता ले होय हे जेमा नारी के महिमा तो हई हे फेर कहें के ढंग मा नोकदार व्यंग देखते बनथे-

मोर देश के नारी का कहंव मैं,
 अड़बड़ हवय महान रे,
 अँचरा म राखे दूध ओहर,
 अउ आँखी मा पानी,
 अइसने करत तो बीत गे भइया,
 नारी तन जिंदगानी ।

हिन्दी कविता ‘चीर का मोल’ पुरूष प्रधान समाज के पौरूष ला ललकारत नारी समाज के इज्जत बचाये बर कहिथें-

कब तलक यूं ही रहेंगी,
 हर तरफ खामोशियाँ,
 मूंद आँख अंधे बने,
 कायरों की मदहोशियां

‘नारियाँ’ अउ ‘माँ’ शीर्षक के तीन-तीन कविता रचनाकार के नारी समाज के चिंता जा जाहिर करत हे ।

जिहां छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया के भाव ‘मोर छत्तीसगढ़ अलबेला’ कविता मा छत्तीसगढ़ी संस्कृति ले भिंगे दूध के धार कस बोहावत हे, त ऊंहे ‘हैप्पी बर्थ डे छत्तीसगढ़’ मा व्यंग के माध्यम ले छत्तीसगढ़िया के कमजोरी ला घला देखावत हे ।

‘गोहार सुनही साहूकार’ एक बेरोजगार के दर्द ला जुबान देत कविता हे जेमा बेरोजगारी अउ भ्रष्टाचार के समस्या एक संग देखात कहंत हें-

‘सरकारी विकेन्सी हो गे हे फेन्सी,
 तहूं ल मिलही नौकर गनबे त करेन्सी।’

‘पीठ के लदना’ बाढ़े-बाढ़े लइका के निठल्लापन अउ बिगडेल के दर्द ले दाई-ददा के पीरा कलरत हे-

‘आ बेटा, चुरगे खाबे,
 खा ले, तहां डिलवा डहर मेछराबे ।’’

‘राजनीतिक मच्छर’ हास्य ले शुरू होत व्यंग मा घुसर के संदेश बाटत कविता हे जेन देश मा बाढ़त राजनीति के प्रभाव ले लहू-लुहान हे । कवि एक साधारण मच्छर के गोहार सुनात कहंत हें-

हमर चाबे म तो मनखे
 आराम से फर्राथे,
 राजनीतिक मच्छर ल तो,
 यमराज घलो डर्राथे,
 बता, सही कहत हंव के गलत मोर भइया,
 राजनीतिक मच्छर ल मारव, मोला मरइया ।

शीर्षक कविता ‘गम्मत’ सबले आखरी मा हे जेमा जिनगी ला नश्वर बतात मिल-जुल के रहे मा जिनगी गम्मत बने के जीवन हँसी-खश्षी भरे के संदेश दे गे हे ।

‘गम्मत’ के छत्तीसगढ़ी कविता संग हिन्दी कविता-

‘गम्मत’ के छत्तीसगढ़ी कविता संग हिन्दी कवितामन घला पोठ हें जेमा ‘वंदे मातरम-, ‘इतिहास का गौरव, ‘अखण्ड़ भारत’, ‘संस्कार’ जइसे कविता मन देशभक्ति के राग सुनावत हें ।

कविता के भाव ला शब्द देना अउ पूरा कविता पढ़ के मजा लेना दूनों अलग-अलग बात हे । जब ‘गम्मत’ के कोनो कविता ला पढ़बे ता हाँस-हाँस के तोर पेट धर लेही । लगभग सबो कविता बहुत हल्का अंदाज मा गोठ-बात कस शुरू होथे, शुरू होत्ते हँसाये लगथे, फेर बियंग बाण ले गुदगुदाये लगथे अउ आखिर मा सोचे बर मजबूर करके चुप करा देथे ।

‘गम्मत’ के कहन शक्ति अद्भूत हे, संप्रेषण क्षमता अतका हे जइसे डाइरेक्ट निशाना मा लगना । एक साधारण पाठक ला तो ये पढ़े-सुने मा मजा देहिस-देही, साहित्यिक पाठक ला घला ये निराश नई करय ।

-रमेश चौहान

मनोज श्रीवास्‍तव की छत्‍तीसगढ़ी हास्‍य कवितायें

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