पुस्तक समीक्षा: पुस्तक परिचय-हीरा सोना खान के
हीरा सोना खान के
कृति का नाम- | ‘‘हीरा सोनाखान के’’ |
कृतिकार | श्री मनीराम साहू ‘मितान’ |
प्रकाशक | वैभव प्रकाशन, रायपुर |
कृति स्वामित्व | कृतिकार |
प्रकाशन वर्ष | 2018 |
सामान्य मूल्य | रू. 100.00 |
विधा | पद्य |
शिल्प | छंद |
भाषा | छत्तीसगढ़ी |
पुस्तक की उपलब्धता | कृतिस्वामी के पास |
समीक्षक | श्री रमेशकुमार सिंह चौहान, नवागढ़ |
हीरा सोना खान के
कृति अउ कृतिकार ले परचिय-
‘हीरा सोनाखान के’ श्री मनीराम साहू ‘मितान’ के लिखे एक खण्ड़ काव्य आय । शहीद वीर नारायण सिंह ला सोनाखन के हीरा कहिके, ‘हीरा सोनाखान के ’ के रचना करे गे हे ये पायके ये कृति अपन आप मा जनमानस मा अपन जगह अइसने बनावत हे । कृतिकार घला पूरा छत्तीसगढ़ मा एक छंदकार के रूप मा अपन पहिचान रखथें ।
कृति के कथ्य अउ शिल्प-
शहीद वीर नारायण सिंह गाथा वीरता ले भरे हे, ये गाथा बर कृतिकार हा जउन आल्हा छंद ला मुख्य छंद के रूप में ले हे ये हा न्याय संगत हे काबर के आल्हा छंद के दूसर नाम बीर छंद घला हे । बीर छंद मा बीरता के बखान करेच जाही । ये किताब मा आल्हा छंद के अलावा अउ दूसर 20 किसिम के छंद प्रयोग करे गे हे जउन हा कृतिकार के छंद के प्रति लगाव ला देखाथे । अइसे नई हे येमा केवल छंद गिनती देखाये बर येला लिखे गे हे, येमेरा छंद मा छंदाके अपन पूरा भाव ला प्रकट करे हे । सबो छंद हा छंद के कसौटी मा खरा सोना हे ।
वंदना प्रकरण-
हीरा सोनाखान के‘ के शुरूवात वंदना ले होय हे जेन हा छत्तीसगढ़ का पूरा देश के परम्परा हे । तुलसीदास के ‘रामचरित मानस’ ले कृतिकार मन ला अपन इष्ट के वंदना करे के प्रेरणा मिले हे । येही मा कवि महोदय हा दोहा मा गणेशजी के, रोला अउ कुंडलियां मा भोलेनाथ के, अमृतध्वनि मा माता सरस्वती के, सुमुखि सवैया मा श्रीरामजी के, रूपमाला मा हनुमानजी के अउ अंत मा गीतिका छंद मा छत्तीसगढ़ के वंदना करें हें-
सुमिरवँ गौरी पूत हो, लम्बोदर महराज । मूँड़ी मोर बिराज के, सफल करव हो काज ।।
क्षेत्रवाद, भाषावाद ले ऊपर राष्ट्रवाद हे –
वंदना प्रकरण के बाद प्रमुख छंद आल्हा के शुरूवात करत गुरूवंदन, दाई-ददा के वंदना, जनम भूमि के वंदना करत छत्तीसगढ़ के जम्मों प्रमुख तीर्थ के वंदना, जम्मो प्रमुख नदियां के प्रणाम करना कवि के छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ के मया ला छलकावत हे । 28 ठन आल्हा छंद मा केवल छत्तीसगढ़ ला प्रणाम करे गे हे ।
छत्तीसगढ़ ला प्रणाम करे के बाद कवि हा त्रिभंगी छंद मा भारत माता के स्तुति करे हे । ये बात हा गौर करे के हे क्षेत्रवाद, भाषावाद ले ऊपर राष्ट्रवाद हे । कवि अपन ये उदिम ले येही बात सिद्ध करत हे ।
शुरूवात खण्डकाव्य के अनुकूल हे-
कवि अपन कथा के शुरूवात मुख्य कथानक से ना करके भारत माता के वैभव गान, संस्कृति के गान करे के बाद इहां विदेशी आक्रमण के दौर ला सिलसिलावार रखें हे, ये बात हा एक खण्डकाव्य के अनुकूल हे । यूरोपी, पुर्तगाली, अंग्रेज सबके भारत मा आये के कारण बतात कहिन-
आइँन भइया अबड़ बिदेशी, लेगिन लूट-लूट भंडार । कतको मन हा इँहचे बस गिन, कर लिन राजपाट अधिकार ।।
सजीव चित्रण-
अंग्रेज मन के देश मा बाढ़त प्रभाव, अंगेज मन के पूरा देश मा करे गे अत्याचार के बखान अइसे ढंग ले करे गे जानोमानो आँखी मा देखत हन का । अत्याचारी मन के अत्याचार ले आदमी मन के दशा के दुखदाई बखान करे गे हे-
करे लगिन अब शोशन गोरा, अउ बढ़गे गा अत्याचार । हाथ बात सब उँकरे होगे, मचे लगिस गा हाहाकार ।। हस्त कला उद्योग नँगागे, अउ छिनगे देसी बैपार । रिबि रिब सब होगे शिल्पी, एके लाँघन दू फरहार ।। धरम घलो ला बदले लागिन, बरपेली सब ला मनवायँ। मन मरजी सब बुता करयाँ जी, ककरो बरजे नइ बरजायँ ।।
अति के अंत-
अति के अंत निश्चित होथे, जब अत्याचार बाढ़ही त आज नहीं काल ओखर विरोध तो शुरू होबे करथे –
शोशन अत्याचार दमन ले, होगे लोगन जब परसान । धीरे धीरे जुरे लगनि गा, बैपारी मजदूर किसान ।।
‘हीरा सोनाखान के’ के नायक वीर नारायण सिंह के कथानक-
येही पंक्ति के संग कवि हा आजादी के आगी ला सुलगाईस । अउ पूरा भारत देश मा कइसे अंग्रेज मन के खिलाफ लोगनमन इक्कठ्ठा होय लगीन तेखर बखान करें हें । मंगल पांड़े, नाना साहब, तात्या टोपे, बख्त खन, झाँसी के रानी, बीर कुँवर सिंह जइसे वीर सपूत मन के अंग्रेज मन के खिलाफ करे गे विद्रोह के आगी धधकावत छत्तीसगढ़ मा घुसरे गे हे ।
येही मेर ले ‘हीरा सोनाखान के’ के नायक वीर नारायण सिंह के कथानक शुरू होथे । वीर नारायण सिंह के परिचय, ओखर रूप-रंग, बीरता के जीवंत बखान करे गे हे-
डेढ़ हाथ के चाकर छाती, राहय तने भुजा गा रोंठ । रखदय ककरो खाँध हाथ तव, नइ निकलय मुँह ओकर गोठ ।।
दुकाल हा वीर नारायण सिंह ला वीर बना दिस-
सन् 1856 के दुकाल के बखान ला दुखदाई ढंग ले करे गे हे , येही दुकाल हा वीर नारायण सिंह ला वीर बना दिस । जब सब जनता मन ला खाय-पीये क तकलीफ हो लगीस, मनखे मन मेरा खाये बर कुछुच नई रहिगे त नारायण सिंग व्यपारी मन के गोदाम ला लूट के अनाज ला सबो भूख मरत आदमीमन मा बाँट दिस । येही मेर ले नारायण सिंह दानी अउ बहादुर के रूप मा पूरा एतराब भर मा जाने जाने लगीन । येखर बाद वीर नारायण सिंह अउ अंग्रेज मन के बीच क संघर्श के बखान करे गे हे । गोदाम लुटे के जुर्म मा अंग्रेज मन लेह-देह पकड़ के ओला जेल मा डारिस । जेल मा रहत घला ओला देश के चिंता आगे रहय-
रहय बीर ला सबो भान गा, का होवत हे मोरे देश । सोचय रहिके जेल भीतरी, भारत माँ के हरवँ क्लेश ।।
हीरा सोना खान के -वीरनारायण सिंह के सेना अउ अंग्रेल मन के लड़ाई के बखान-
सोनाखान के रइयत मन अपन नेता बीर नारायण सिंह ला जेल ले भगाये के उदिम करिन । जेल ले भागे के बाद नारायण सिंह अंग्रेजमन के खिलाफ पाँच-सात सौ के सेना तइयार कर डारिन । वीरनारायण सिंह के सेना अउ अंग्रेल मन के लड़ाई के बखान अइसे ढंग ले करे गे हे मानो आँखी के आघू लड़ई चलत हे बीर नारायण सिंह के बीरता के बखान देखथे बनथे-
एक दुसर ला काटयँ-भोगयँ, होय घलो गोली बउछार । दउँड़-दउँड़ उन वार करयँ गा, छनछन छन बाजय तलवार ।। सिंह के खाड़ा लहरत देखयँ, बइरी सिर मन कट जयँ आप । लादा पोटा बारि आ जयँ, लहू निथर जय गा चुपचाप ।।
नारायण के बीरता भरे जीवन अमर होगे-
ये लड़ई मा गद्दार मन के गद्दारी ले वीर नारायण सिंह पकड़े गय ओखर ऊपर देश द्रोह के मुकदमा चला के फाँसी के सजा सुना दे गीस । ये प्रकार बीर नारायण के बीरता भरे जीवन अमर होगे ।
हीरा सोना खान के -काव्य प्रबंधन मा खण्ड़ काव्य के गुणधर्म-
‘हीरा सोना खान के’ काव्य प्रबंधन मा खण्ड़ काव्य के गुणधर्म ला बनाये रखे हें । काव्य अलंकरण घला देखथे बनथे । कुछ बानगी अइसन हे-
अनुप्रास अलंकार-
खाँड़ा मास हाड़ा काटै, मूँड़ गाड़ा-गाड़ा काटै, खार खाये खच-खच, चलै हो के चाँड़ गा ।
उपमा अलंकार-
आग बरन गा ओकर आँखी, टक्क लगाके देखय घूर । बइरी तुरते भँग ले बर जय, हाड़ा गोड़ा जावय चूर ।
रूपक अलंकार-
आय रहिस गा कमल चपाती, नाना साहब रहिस पठोय । क्रान्ति करे के रहिस निसानी, इहों रायपुर मा कुछहोय ।
अतिशियोक्ति अलंकार-
सुनयँ बीर के बात सबो गा, तन उँनकर भुर्री बर जाय । कटकिट कटकिट दाँत करयँ गा देहीं जइसे तुरत चबाय ।।
हीरा सोना खान के उपसंहार
कई-कई प्रकार के अलंकार अउ रस ले सरोबर ये काव्यकृति अपन आप मा विशेष हे । भाषा वर्तनी के दृष्टिकोण ले कोनो-कोनों मेरा छंद मात्रा मा छंदाये बर विकृत होय हे फेर ये छंद के मांग हे, अइसन करे के बेरा अर्थ अउ भाव मा कोनो अंतर नई आय हे । छत्तीसगढ़ी के पारंपरिक शब्द मन ला बने धो-मांज के उपयोग करे गे हे । अंग्रेजमन के नाम सन् के गिनती ला छंद बांधत देख के मन खुश हो जथे । ओ समय के पूरा इतिहास ला अपन आप मा समेटे गे हे । कुल मिलाके ये किताब हा छत्तीसगढ़ी साहित्य के धरोहर बने बर तइयार हे ।
-रमेश चौहान पुस्तक समीक्षा
वाह चौहान भाई बहुतेच सुग्घर समीक्षा बहुत बहुत धन्यवाद आभार आपला
प्रति आभार आदरणीय साहू जी