पुस्‍तक समीक्षा-हिन्‍दी का सम्पूर्ण व्याकरण

पुस्‍तक समीक्षा-हिन्‍दी का सम्पूर्ण व्याकरण-

पुस्‍तक समीक्षा-हिन्‍दी का सम्पूर्ण व्याकरण
पुस्‍तक समीक्षा-हिन्‍दी का सम्पूर्ण व्याकरण
कृति का नाम‘‘हिन्‍दी का सम्पूर्ण व्याकरण’’
कृतिकारलेखकद्वय डाॅ. विनय कुमार पाठक
एवं डाॅ. विनोद कुमार वर्मा
प्रकाशकवदान्या पब्लिकेशन, बिलासपुर
प्रकाशन वर्ष2021
सामान्य मूल्यरू. 495.00
विधागद्य
शिल्‍पआलेखात्मक, वर्णात्मक
भाषाहिन्दी
समीक्षकश्री रमेशकुमार सिंह चैहान, नवागढ़
पुस्‍तक समीक्षा-हिन्‍दी का सम्पूर्ण व्याकरण

हिन्‍दी का सम्पूर्ण व्याकरण के लेखक-

छत्तीसगढ़ का बिलासपुर नगर हिन्दी साहित्य के लिये कोई अपरिचित नगर नहीं है । यह वहीं नगर है जो हिन्दी साहित्य को छंद प्रभाकर का उपहार दिया है । आचार्य जगननाथ प्रसाद ‘भानु’ की हिन्दी साहित्य में उपादेयता सर्वविदित है । आचार्य ‘भानु’ इसी नगर से थे । इसी मिट्टी के दो लाल डाॅ. विनय पाठक एवं डाॅ विनोद कुमार वर्मा ने ‘हिन्दी का सम्पूर्ण व्याकरण’’ देकर हिन्दी साहित्य में इस मिट्टी को एक फिर गौरवांवित किया है ।

‘‘छत्तीसगढ़ी का सम्पूर्ण व्याकरण’’ 2018 में प्रकाशित हुआ जो छत्तीसगढ़ी के पाठकों, परीथाथियों व शोधार्थियों लिये अत्यंत उपयोगी रहा । इसके बाद लेखकद्वय डाॅ. विनय पाठक एवं डाॅ विनोद कुमार की संयुक्त कृति ‘‘हिन्दी का सम्पूर्ण व्याकरण’’ पाकर मन प्रफुल्लित है । कृति के लेखक डाॅ. विनय कुमार पाठक छत्तीसगढ़ के ही नही अपितु राष्ट्रीयस्तर के एक ख्यातिलब्ध नाम है । आप हिन्दी एवं भाषा विज्ञान दो-दो विषय पर डाॅक्टोरेट हैं, आप छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं । डाॅ. विनोद कुमार वर्मा एक ख्यातिनाम सम्पादक, समीक्षक एवं कहानीकार हैं ।

हिन्‍दी का सम्पूर्ण व्याकरण-कृति से परिचय-

‘‘हिन्दी का सम्पूर्ण व्याकरण’’ 438 पृष्ठीय एक विशाल ग्रंथ है, जो अपने नाम के अनुरूप हिन्दी भाषा के व्याकरण को सचमुच में समग्रता के साथ अपने आप में समेटी हुई है । संपूर्ण ग्रंथ 49 अध्याय एवं 9 खण्ड़ों में विभाजित है । अंत में संदर्भ ग्रंथों की सूची का परिशिष्‍ट दिया गया है । ग्रंथ की विशालता में ही विषय की गहनता का भान स्वाभाविक रूप हो जाता है । प्रथम दृष्टि में ही यह ग्रंथ हिन्दी साहित्य के विद्यार्थियों के लिये एक उपहार जैसे ही है ।

प्रथम खण्ड़-

प्रथम खण्ड़ में विश्व की भाषााओं का वर्गीकरण, भारोपीय/प्राक् आर्य भाषा परिवार, हिन्दी भाषा का विकासक्रम एवं उसकी प्रमुख बोलियाँ, राष्‍ट्रभाषा, राजभाषा, संवैधानिक प्रावधान व संस्थाएँ, राष्‍ट्रीय पुरस्कार एवं विश्‍व हिन्दी सम्मेलन, आठवीं अनुसूची में शामिल भारत की भाषाएं एवं भारत की शास्त्रीय भाषाएं, वैदिककालीन प्राचीन भारतीय ग्रंथ, भारत में लिपियों का विकासक्रम एवं ब्राह्मी लिपि, वर्ण व्यवस्था एवं भाषा बोध एवं हिन्दी में विराम चिह्नों का प्रयोग सम्मिलित है ।

इस खण्ड़ में एक भाषा वैज्ञानिक की दृष्टि दृष्टिगोचर होती है । भाषा के उद्भव से विकास तक की यात्रा को ऐताहासिकता के साथ-साथ वैज्ञानिकता के साथ भी प्रस्तुत किया गया है । 2900 ई.पू. से भाषा की उत्पत्ति से प्रारंभ कर हिन्दी भाषा के विकासक्रम के अनेक सोपानों को सारगर्भित संजोया गया है । हिन्दी भाषा को समृद्ध करने वाली अनुशांगिक बोलियों का क्षेत्रात्मक एवं संख्यात्मक विवरण प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत किया गया है । हिन्दी की संवैधनिक स्थिति को अनुच्छेदों एवं धाराओं के भँवर से निकालते हुये जनसुलभ किया गया है । हिन्दी के विकास में सहभागी रहे एवं क्रियाशील संस्थाओं का चित्रण पूरी दक्षता के साथ किया गया है । हिन्दी वर्णमाला, लिपि आदि की ऐसी व्याख्या एक भाषा वैज्ञानिक ही कर सकता है । इन दुरूह विषयों को भी सहजता के साथ प्रस्तुत करना लेखकों की बौद्धिकता का सहज परिचय है ।

द्वितीय खण्‍ड-

दूसरे खण्ड़ में हिन्दी साहित्य का इतिहास एवं काल विभाजन तथा छत्तीसगढ़ के विशेष संदर्भ में हिन्दी साहित्य की प्रमुख विधाएँ एवं हिन्दी के विकास में पत्र-पत्रिकाओं के योगदान पर चर्चा की गई है । हिन्दी साहित्य के इतिहास को गार्सा-द-तासी से लेकर मिश्रबन्धु, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, डाॅ. रामकुमार वर्मा, से होते हुये आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी तक विस्तारित किया गया है । आवश्‍यकतानुसार सारणी और सूची इस पक्ष को और अधिक मजबूत करती है । हिन्दी साहित्य की प्रमुख विधाएँ विषय पर लगभग सभी विधाओं को सोदाहरण सहजता से समझाया गया है । छत्तीसगढ़ के हिन्दी रचनाकारों का यहां सारणीयन विशेष उल्लेखनीय है । यह प्रयास छत्तीसगढ़ के हिन्दी रचनाकारों को हिन्दी साहित्य लेखन के प्रति प्रेरित करेगी ।

तृतीय खण्‍ड़-

तीसरे खण्ड़ में शब्द साधन को साधा गया है । इसमें शब्दों के भेद तथा उनके प्रयोग, रूपांतर और व्युतपत्ति का निरूपण किया गया है । इस खण्ड में कुल 11 अध्याय है जिसमें क्रमश: संज्ञा सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, वाच्य, क्रिया विशेषण, कारक, काल, लिंग और वचन को सम्मिलित किया गया है । प्रत्येक अध्याय को भाषा विज्ञान की कसौटी में कसा गया है । आजकल हमारे हिन्दी लेखन में वर्तनी और लिंग का अधिकाधिक दोष उभर कर सामने आता है, ऐसे में यह खण्ड़ हिन्दी में श्‍द्ध लेखन के प्रति एक जागृति पैदा करेगी ।

चतुर्थ खण्‍ड़-

चौथे खण्ड़ में शब्द रचना की विधियों को 5 अध्यायों में प्रस्तुत किया गया है । इसके अंतर्गत उपसर्ग, प्रत्यय, संधि और समास को सविस्तार समझाया गया है । इन अध्यायों में प्रचलित श्‍ब्दों का समावेश आम पाठको को बांधे रखने में सफल है । यद्यपि विषय कुछ कठिन प्रकृति का है किन्तु इसे रूचिकर बनाने का पूरा उद्यम किया गया है ।

पंचम खण्‍ड़-

पाँचवें खण्ड़ में रस, छंद, अलंकार के तीन अध्याय हैं । प्रत्येक को सविस्तार उदाहरण सहित प्रस्तुत किया गया है । भक्तिकालिन कवियों से लेकर आज तक के कवियों काव्यांश इनके उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किये गये हैं । इन उदाहरणों से रस, छंद, अलंकार की अभिधारण अधिक सहजता के साथ समझा जा सकता है ।

षष्‍ठम खण्‍ड़-

छठवें खण्ड़ में कहावत एवं मुहावरा के दो अध्याय हैं । इनमें सर्वाधिक प्रचलित 270 कहावतों एवं 836 मुहावरों को हिन्दी वर्णाक्रमानुसार में अर्थ सहित संयोजित किया गया है । यह एक प्रकार से यह कहावतों एवं मुहावरों का अनुपम संग्रह बन पड़ा है ।

सप्‍तम खण्‍ड़-

सातवें खण्ड़ में कुल 6 अध्याय हैं । इस खण्ड़ में पर्यायवाची, विलोम, अनेक शब्दों के लिए एक शब्द, समोच्चारित भिन्नार्थक शब्द, अनेकार्थ शब्द और संख्यावाची गूढ़ अर्थ वाले शब्दों को शामिल किया गया है । हिन्दी वर्णमाला के क्रम में इनके शब्‍दों को इस प्रकार सारणीबद्ध किया गया है, जिससे पाठक और विद्यार्थी सहजता से इन शब्‍दों से परिचत हो सके। 157 बहूपयोगी शासकीय टिप्पणियों को अंग्रेज़ी अनुवाद सहित प्रस्तुत किया गया है । जो व्‍यवहारिक है ।

अष्‍टम खण्‍ड़-

आठवें खण्ड़ में तत्सम एवं तद्भव, वर्तनी, वाक्य संरचना, और वाक्य शुद्धि के चार अध्याय हैं । इस खण्ड में जहाँ तत्सव एवं तद्भव शब्दों को वर्णक्रमानुसार संयोजित किया गया है वहीं वर्तनी के लिये गलत वर्तनी के सही वर्तनी स्पष्‍ट करते हुये सारणी प्रस्तुत की गई है । वाक्य संरचना और वाक्य शुद्धि किसी भाषा का रीढ़ होता है । इसे इसी महत्व के साथ प्रतिपादित किया गया है ।

नवम खण्‍ड़-

नौवें खण्ड़ में पत्र-लेखन, पाद टिप्पणी, अनुवाद, पल्लवन, सार-लेखन एवं अपठित गद्यांश शीर्षक से 6 अध्याय दिये गये हैं । इस खण्ड़ में सामान्य शासकीय पत्र, अर्धशासकीय पत्र, परिपत्र, अधिसूचना, पृष्‍ठांकन, प्रतिवेदन एवं प्रपत्र की विस्तृत चर्चा की गई है । सभी के उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं । ये उदाहरण मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के संदर्भ में लिये गये हैं । अनुवाद के अध्याय में जो उदाहरण लिये गये हैं इनसे सार सार में सारा छत्तीसगढ़ समाहित हो गया है । इन उदाहरणों के माध्यम से छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक, धार्मिक एवं राष्‍ट्रीय महत्व के स्थनों का उल्लेख किया गया है । यह एक तीर से दो निशाना करने जैसा है । जहाँ एक ओर इससे अनुवाद को समझाया गया तो वहीं दूसरी और इससे छत्तीसगढ़ का परिचय भी कराया गया है ।

परिशिष्‍ठ-

अंतिम खण्ड़ परिशिष्‍ठ के रूप में लिया गया है जहाँ संदर्भ ग्रथों की सूची एवं लेखक द्वय का परिचय दिया गया है । संदर्भ ग्रंथों की सूची 87 ग्रंथों का विवरण दिया गया है सबसे अंत लेखक द्वय का संक्षिप्‍त में साहित्यिक परिचय दिया गया है ।

विषय की समग्रता एवं सहजता-

अभी तक हिन्दी भाषा के व्याकरण संबंधी कई किताबे प्रकाशित हो चुकी है । संदर्भ ग्रंथों की सूची स्वयं में इस बात की गवाही दे रही है । किन्तु ये सभी किसी न किसी एक विषय पर आधारित रहीं हैं । सम्पूर्ण विषय वस्तु को लेकर लिखी गई यह संभवतः ऐसी पहली कृति है, जो हिन्दी व्याकरण के अंग-प्रत्यंग को विस्तृत किन्तु सहजता के साथ प्रस्तुत किया है । निश्चित रूप से यह कृति भूतकाल के नींव पर वर्तमान को प्रवाहमान एवं भविष्य को वेगवान करने का एक सफल उद्यम है ।

ग्रन्‍थ की उपादेयता-

कृति के संपूर्ण अध्ययन से कृति के शब्द शब्द में लेखकों के स्वेद की गंध को स्पष्‍ट रूप से महसूस किया जा सकता है । लेखकों के गहन अध्ययन, विश्‍लेषण और शोध की के फलस्वरूप इस ग्रंथ रसास्वादन का हमें अवसर उपलब्ध हुआ है । लेखकों का यह कार्य सराहनीय ही नहीं वंदनीय भी है ।

आजकल भाषाई संक्रमण के कारण हिन्दी की आत्मा लगातार आहत हो रही है । हिन्दी लेखन वाचन में जहाँ वर्तनीय दोष सहजता से दिख जाते हैं वहाँ व्याकरण के मानकों का पालन की आशा करना स्वप्न जैसे लगने लगा हैं। इस कठीन दौर में हिन्दी का सम्पूर्ण व्याकरण का आना भाषा अशुद्धता के निराशा के बादलों को छांटने में एक अहम प्रकाश पुंज सिद्ध होगा ।

यह ग्रंथ हिन्दी साहित्य के प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों से लेकर शोर्धािर्थयों तक के लिये समान रूप से उपयोगी है । प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिये तो यह ग्रन्थ रामबाण सिद्ध होगा । इस ग्रंथ की अकादमिक उपयोगिता तो स्वयं सिद्ध है इसके अतिरिक्त समाज में हिन्दी भाषा के प्रति जागृति उत्पन्न भी करेगी ।

छत्तीसगढ़ के विशेष संदर्भ में लिखी गई यह कृति छत्तीसगढ़ी के नवोदित साहित्यकारों के लिये विशेष रूप से उपयोगी है । इससे वे अपनी भाषा शैली को व्याकरण सम्मत रख सकेंगे जिससे आने वाली पीढ़ी उनकी कृतियों का सम्मान कर करेगी ।

यह कृति भाषा के शोधर्थियों के लिये एक अमूल्य स्रोत सिद्ध होगा । इस कृति में निश्चित रूप से व्याकरण की समग्रता है । यह व्याकरण के अबोधता को सहज बनाने में उपयोगी है । अंत में यही कहना चाहूँगा यह ग्रंथ समग्र रूप से पठनीय एवं संग्रहणीय है ।

-रमेश चौहान

पुस्‍तक समीक्षा : हिन्‍दी का सम्‍पूर्ण व्‍याकरण -मेरे विचार – प्रो.(डाॅ.) अनुसुइया अग्रवाल

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2 thoughts on “पुस्‍तक समीक्षा-हिन्‍दी का सम्पूर्ण व्याकरण

  1. ग्रंथ पढ़ा सच में बहुत मेहनत लगन परिश्रम से इस ग्रंथ का लेखन हुआ है, मैं लेखक द्वय डॉ. विनय कुमार पाठक जी एवं डॉ विनोद कुमार वर्मा के हार्दिक बधाई शुभकामनाएं

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