पुस्तक समीक्षा :
हिन्दी का सम्पूर्ण व्याकरण -मेरे विचार
पुस्तक समीक्षा : हिन्दी का सम्पूर्ण व्याकरण
-प्रो.(डाॅ.) अनुसुइया अग्रवाल
डाॅ. विनय कुमार पाठक और डाॅ. विनोद वर्मा द्वय द्वारा संपादित ‘हिन्दी का संपूर्ण व्याकरण (छत्तीसगढ़ के विशेष संदर्भ में)’ प्राप्त हुआ। पूज्य श्री भवानी लाल वर्मा जी को समर्पित ग्रंथ ने इस समर्पण से अपना मूल्य बढ़ा लिया। भीतर भले ही बात व्याकरणों पर की गई हो, सिद्वांत पालन की हो किंतु श्रेष्ठ संस्कारों से कोई समझौता नहीं।
बहरहाल भूमिका में व्याकरण शब्द की व्याख्या और व्याकरण लेखन की परंपरा के साथ गतिमान लेखनी; स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अब तक प्रकाशित वैयाकरणों के ग्रंथों की जानकारी देती हुई आगे बढ़ती है। और इस ग्रंथ लेखन के उद्देश्यों पर प्रकाश डालती हुई पाठकों की प्रतिक्रिया की अपेक्षा के साथ विषय सूची प्रस्तुत करती है।
कुल नौ खण्डों में विभाजित यह ग्रंथ प्रथम दृष्टया ही बहुत उपयोगी और संकलन योग्य लगती है। वर्तमान समय में आज के साहित्यकार बड़े बड़े ग्रंथ लिखकर साहित्य जगत को समृद्ध कर रहे हैं, शोधार्थी साहित्य पर लगातार शोध कर रहे हैं, मंच पर गद्य और पद्य पर काफी कुछ कह- सुना जा रहा है किंतु सर्वत्र एक बात में एकरूपता है- कहीं भी व्याकरण की सूक्ष्मताओं का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। जिसकी आज महती आवश्यकता है। यह ग्रंथ इस कमी को दूर करने में बहुत मददगाार साबित होगी। क्योंकि इस ग्रंथ में शब्द साधन, संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, वाच्य, अव्यय, विकारी/ अविकारी शब्द, कारक, काल, लिंग, वचन, शब्द रचना की विधियाँ, रस, छंद, अलंकार, पर्यायवाची, विलोम, अनेकार्थी, एकार्थी, समोच्चरित, गूढ़, तत्सम, तद्भव, वाक्य संरचना, वाक्य शुद्धि सहिंत टिप्पणी, अनुवाद, सारलेखन, अपठित गद्यांश आदि विषय पर आवश्यकतानुसार बात की गई है। दूसरी बात इस ग्रंथ में कहावतों, मुहावरों, पत्र लेखन आदि को भी शामिल करने के कारण छत्तीसगढ़ पी.एस.सी. एवं एस. एस. सी. जैसी परीक्षाओं के परीक्षार्थियों के लिए यह ग्रंथ अत्यंत उपयोगी बन पड़ा है।
चूंकि पुस्तक छत्तीसगढ़ के विशेष संदर्भ में है अतः अपने प्रांत की भाषा की हर बारीकी को विद्यार्थी समझ सकेंगे। तीसरी बात साहित्य और भाषा की प्रोफेसर होने के नाते मैं यह मानती हूं कि भाषा से जुड़े हर व्यक्ति को व्याकरण का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। तथा व्याकरण पर स्तरीय प्रमाणिक पुस्तक सहज उपलब्ध होना चाहिए। पाठक जी और वर्मा जी ने न केवल साहित्यकार, विद्यार्थी, शोधार्थी……. अपितु हर व्यक्ति के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर यह पुस्तक तैयार की है। चौथी बात लेखक द्वय ने एक ओर अनावश्यक विस्तार और गहराई से जहां किसी भी अध्याय को बोझिल नहीं होने दिया है वहीं दूसरी ओर सतही और कामचलाऊ प्रस्तुति न हो इस बात का भी विशेष ध्यान रखा है। पांचवी और अंतिम बात पुस्तक की भाषा शैली पाठक समूह के अनुरूप है। किसी को भी पाठ्य सामग्री को आत्मसात् करने में कोई असुविधा नहीं होगी। यहां तक कि यद्यपि गलत बाइडिंग की वजह पृष्ठ 175 से 190 तक का पेज उल्टा लग गया है तथापि पढ़ने के प्रवाह में सहज बाधा के रूप में उसे सीधा करके पढ़ लिया जा रहा है। यानि यह गलती भी दृश्टव्य नहीं लगती।
निष्कर्षतः पुस्तक की गुणवत्ता, सफलता और सार्थकता के लिए मैं लेखक द्वय को बधाई देती हूं और साधुवाद देती हूं कि उन्होंने हर हिन्दी भाषी की आवश्यकता के अनुरूप यह ग्रंथ लिखा है।
प्रो.(डाॅ.) अनुसुइया अग्रवाल, डी. लिट्. प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी शा. म. व. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महासमुंद (छत्तीसगढ़) मो. नं. 9425515019 (पत्रव्यवहार का पता- क्लब वार्ड, पो. एवं जिला- महासमुंद (छत्तीसगढ़) पिन- 493445 ) ईमेल-ंagrawaldransuya@gmail.com पुस्तक समीक्षा-हिन्दी का सम्पूर्ण व्याकरण-रमेश चौहान