पुस्‍तक समीक्षा- कृति-जुड़वाँ बेटी, कृतिकार-चोवाराम बादल, समीक्षक-रमेश चौहान

पुस्‍तक ले परिचय

कृति का नाम‘‘जुड़वाँ बेटी’’
कृतिकारश्री चोवाराम ‘बादल’
प्रकाशकवैभव प्रकाशन, रायपुर
कृति स्वामित्वकृतिकार
प्रकाशन वर्ष2019
सामान्य मूल्यरू. 100.00
विधागद्य
शिल्‍पकहानी, आलेख, व्यंग्य
भाषाछत्तीसगढ़ी
पुस्तक की उपलब्धताकृतिस्वामी के पास, surta.in
समीक्षकश्री रमेशकुमार सिंह चौहान, नवागढ़
पुस्‍तक समीक्षा-जुड़वा बेटी

पुस्‍तक समीक्षा-जुड़वा बेटी

कृतिकार ले परिचय-

जुड़वाँ बेटी’, श्री चोवाराम वर्मा ‘बादल’ के एक किताब आय जेमा 12 कहिनी, 2 बियंग अउ 4 ठन आलेख हे । ये किताब म कहिनी के प्रमुखता हे येखर सेती येला ‘कहानी संग्रह’ कहिना जादा अच्छा होही । चोवा राम वर्मा बादल के येखर ले पहिली छपे किताब ‘रउनिया जड़काला के’, एक काव्य संग्रह आय जेमा तुकांत कविता के संग्रह हे, दूसर किताब ‘छंद बिरवा’ घला एक काव्य संग्रह ही हे जेमा छंद मा छंदाय कविता हे, जेन हा वर्माजी के पहचान एक छंदकार के रूप मा कराये हे । ये प्रकार ले बादलजी के पहिचान एक कवि के रूप मा बने रहिस ये बीच मा ‘जुड़वाँ बेटी’ के आना ओखर दूसर रूप ला हमर बीच रखत हें, ये किताब मा कहानी, व्यंग्य अउ आलेख घला हे ये प्रकार ले लेखक के कलम के विविधता के दर्शन होत हे ।

कृति ले परिचय-

‘जुड़वा बेटी’ एक रोचक अउ पढ़े के लइक कहानी संग्रह हे। ये कहानी संग्रह मा समाज के छुए-अनछुए पहलु ला बहुते गहनता अउ मार्मिकता के संग लिखे गे हे । संवाद शैली अइसन हे, के कहानी ला एक बार पढ़े ला शुरू करे जाए, त पूरा पढ़े बिना नई रहे जाये। समाज के विभिन्न पहलु ऊपर लिख गे कहिनीमन दिल ला छू जाथे अउ ये सोचे बर मजबूर कर देथे, के अतका समृद्ध कहे जाने वाले समाज मा कुछ चीज आज भी ज्यों के त्यों हें।

संग्रह म सम्मिलित कहानी-

इंसानियत के लाश-

‘जुड़वाँ बेटी’ के शुरूवात ‘इंसानियत के लाश’ नामक कहिनी ले होय हे जेमा ड्राइवर के इंसानियत अउ भीड़ तंत्र के अमानवीयता ला देखत भीड़ द्वारा ड्राइवर ला पीट-पीट के मार डरथें जेला कहानीकार ‘इंसानियत के लाष’ कहिके आजकल के चर्चित षब्द ‘मॉब लिचिंग’ के घटना ल जीवंत करके समाज ला झकझोरे के सफल प्रयास करें हें ।

अति के अंत-

‘अति के अंत’ कहिनी मा जमींदार परिवार के दू पीढ़ी के अंतर ल देखात अत्याचारी के अंत एक साधारण व्यक्ति के द्वारा करके ये सिद्ध करे के कोशिश करे गे हे के अति के अंत होबे करथे । कहिनी के कथा शैली अउ भाषा शैली दूनों छत्तीगढ़ियापन ले छलकत हे ।

बुधवारो-

‘बुधवारो’ समाज के संवेदनहिनता ले देखात एक ऐसे कहिनी हे जेमा बुधवारो कं बुठरी-काठी होय के सेती लाख गुण होय के बाद, अउ ददा के लाख कोशिश के बाद घला बिहाव नई होइस अउ भाई-भौजी घला ओला ददा-दाई के मरे के बाद अलगिया देइस । ये कहिनी नारी विवषता ला परोसे म सफल हे । ठेठ भाषा अउ सपाट बयानी कहानी पाठक के करेजा तक समा जाथे ।

दुलार के दवा-

‘दुलार के दवा’ लइका मन के जिद्ध ला बट-बट ले देखाय हे के कइसे लइका मन जिद्ध म खाये-पीये तक छोड़ देथे फेर जिद्ध पूरा होत्ते, दुलार के दवा पाके खुश्‍ हो जथें । येखर संगे-संग नषा-पानी ले दुरिहा रहे के संदेशा देब ये कहिनी सार्थक पहल हे ।

जुड़वाँ बेटी-

‘जुड़वाँ बेटी’ शीर्षक कहानी एक मार्मिक कथा हे जेमा एक अवैध संतान ल बचा के अपन नवजात बेटी संग राख के ओला जुड़वाँ बेटी कहिना कहानीकार के अभिव्यक्ति कथन के बेजोड़ नमूना हे । नारी के ममत्व ल तो दुनिया जानथें फेर ये कहानी म एक पुरूश के वात्सल्य हा देखथे बनथे । अतेक मार्मिक चित्रण करत घला कहानीकार येला दारू-मंद के परिणाम बतात दू-दू ठन लक्ष्य ला भेद ले हे । कहानी के प्रस्तुतिकरण अतका सुग्घर होय के येला छोड़ते नई बनय । कथाषैली, संप्रेशण षक्ति, संवेदना परक होय के बल मा ये कहानी शीर्षक कहानी बने के अधिकार रखथे ।

जात बाहिर-

‘जात बाहिर’ कहिनी एक महिला के लाचारी के किस्सा हे जउन अपन आदमी के अत्याचार ले अपन दू लइका ला धर के भाग जथे । ओखर ना मइके ना ससुरे हे त बस पीरा अउ पीरा । ये भाव ला जेन शैली मा कथाकार कहे ओ हा अद्भूत हे । आजकल के समाजिक बैठक के हू-ब-हू चित्रण करत समाज हा गंगा होथे ये बात ला सिद्ध करत मानवीय पक्ष ला जाहिर करे मा ये सफल हे ।

किरिया-

‘किरिया’ कहिनी देश्‍ा-राज के शिक्षा व्यवस्था ऊपर करारा कटाक्ष करे गे हे । शिक्षक अउ शिक्षाकर्मी मा भेद, शिक्षक मन के गैरि‍शिक्षकिय कार्य के जादा होना, पढ़ई कम होना, लइकामन ऊपर परीक्षा के बोझ नई होय ले उलंबा होना, पालक मन के घर मा लइका मन ऊपर ध्यान नई देना चिंता के बात आय । षिक्षक, पालक, बालक तीनों ला बराबर के दोशी बतात तीनों ला षिक्षा व्यवस्था सुधारे के किरिया लेवत कहानी के अंत करना कहानीकार के शिक्षानीति पर ऊपर चिंता ला रेखांकित करथे ।

गौरव-

‘गौरव’ नाम के कहिनी मा एक निःसंतान साहब के द्वारा एक गरीब लइका ला गोद लेके ओला पढ़ा लिखे के काबिल मनाये के कहिनी हे जउन हा हा एक मानवीय संवेदना ले भरे हे ।

माथा चकरागे-

‘माथा चकरागे’ कहिनी पढ़के सही-सही मा माथा चकरागे । सही-सही मा घला अइसन घटना समाज म बढ़त जात हे । एक पढ़े-लिखे लड़की के बिहाव करे के बाद अपन पति संग अउ ससुरार मा नई रहव कहिना । बिहाव के बाद ये कहिना मैं दूसर संग मया करथँव दाई-ददा के दबाव मा बिहाव करे हँव, ओ लडका भर बर का समाज बर घला कतका बड़े चिंता के बात हे । कहिनी के अंत मैं ये नोनी संग मया करथँव येखर संग बिहाव कर डरे हँव कहिनी समलैंगिंता ला देखाथ माथा ला चकारा देथे ।

चलनी के छेदा-

‘चलनी के छेदा’ एक दरूहा के कहिनी आय । जेन दारू के लत मा कंगला होगे । बाई संग झगरा होके फाँसी लगाके मरे के कोषिष करिस ओला कहानीकार के समझात कहिना-‘चलनी मा छेदा रहिथे ओमा कतको पानी भर ले तभो ले पानी नई भरय अउ कहूँ जम्मो छेदा ल मूँद देबे त चलनी मा घला पानी भर जही । ओइसने बुराई मन, दारूपीना जुआ चित्ती हा मनखे के छेदा आय ।’ कहानी के शीर्षक ला सार्थक करत हे ।

पतरेंगी हायर सेकेण्डरी स्कूल सायबाँधा-

‘पतरेंगी हायर सेकेण्डरी स्कूल सायबाँधा’ एक सुि‍शिक्षित, सुसंस्कारित अउ विकास परख एक महिला सरपंच के कहिनी हे जेमा । महिला सरपंच के सहृदयता के चित्रण हे, जेन अपन लगन अउ मेहनत ले गाँव ला गाँव बना डरे हें । जिहां आज समाज के नेता-सरपंच मन सुख्खा गारी खाथें ऊँहे पतरेंगी सरपंच के चित्रण समजा ल संबल देथे ।

सबक-

सबक’ कहिनी मा ये बात के सबक दे गे हे धरम-करम के नाम ढोंगी मन चक्कर मा परे ला छोड़ के सही-सही मा दीन-दुखियारी मन के मदद करना चाही ।

‘जुड़वाँ बेटी’ कहानी संग्रह के कथावस्तु-

‘जुड़वा बेटी’ कहानी संग्रह के कथावस्तु छत्तीसगढ़ के कल अउ आज के बदलत बेरा के बदलाव ला पिरोये हे । सबो कहिनी के शुरूआत बने रोचक ढंग ले होय हे जेखर पढ़ईया मन के मन कहिनी ला अउ पढ़े के करथे । कहिनी के विस्तार अइसे ढंग ले करे गे हे कहिनी कल्पना के ना होके हकिकत कस लगे लगथे । चरम मा पहुँचत-पहुँचत पठईया मन के दिल-दिगाग मा छा जथे । अउ एक संदेष के संग कहिनी के अंत करना कहानीकार के सफल प्रयास हे ।

जुड़वाँ बेटी कहानी संग्रह के पात्रमन के चरित्र-चित्रण-

जुड़वा बेटी कहानी संग्रह के पात्रमन के चरित्र-चित्रण मा कहानीकार प्रत्यक्ष चरित्र-चित्रण करत जादा दिखथें जइसे ‘अति के अंत’ मा ठाकुर राणा सिंह के चित्रण करत लिखथें- ‘‘दयालू हिरदे के ठाकुरजी ह गाँव के किसान मन ला दू तीन बोरा एकड़ पीछू धान मा जम्मों जमीन ला रेगहा दे देथे ।’ ‘जुड़वा बेटी‘ मा मनराखन के चरित्र-चित्रण करत लिखथें – ‘ओकर दारू पिये के आदत ह बाई अउ बेटी ल कइसे दाना-दाना बर मोहताज करके अतका अभागिन बना दिच ।’ अइसने सबो कहिनी मा जादातर प्रत्यक्ष चरित्र-चित्रण देखे ला मिलथे । एकाक जगह अप्रत्यक्ष चरित्र-चित्रण के स्वाद घला दे गे हे जइसे -‘माथा चकरागे’ कहिनी ता नाइका नलिनी के कथन-‘मैं अपन सहेली षिल्पा जेन ए दे बइठे हे ओला जान से जादा प्यार करथवँ । हम दूनों कोई एक संग रहिबो ।’’

जुड़वाँ बेटी म देशकाल वातावरण-

जुड़वाँ बेटी म देशकाल वातावरण म ये कहानी संग्रह सफल दिखथें कहिनी के अनुसार जउन परिवेष के चित्रण करे गे हे ओ हा कहिनी संग न्याय करत दिखथे ।

जुड़वाँ बेटी म भाषा शैली-

कहानीकार के भाषा शैली बोल-चाल के छत्तीसगढ़ी हे । जेमा कोनो मेर निमगा छत्तीसगढ़ी षब्द, कहावत के उपयोग करे हे त ओही मेरा कहानी के मांग के अनुरूप हिन्दी का अंग्रेजी के शब्‍द मन ला घला जगा दे गे हे । फेर रूढ़ छत्तीसगढ़ी के जादा उपयोग देखे ला मिलथे । कुलमिलाके कहानीकार के भाषा हा एक छत्तीसगढ़ी के पाठक के अनुरूप बन पड़े हे ।

जुड़वाँ बेटी म उद्देश्‍य –

द्देश्‍य के दृष्टिकोण ले ये काहनी संग्रह समाज के आंगा-भारू चाल-चलन ऊँपर चिंता करत दिखथें । जादातर कहिनी दारू-मंद नषा के खिलाफ जागरूरकता लाये के उदिम करत हे । माथा चकरागे कहिनी बदलत समाज मा लड़का मन ऊँपर अब लड़कीमन ला भारी परे के आषंका ले छलकत हे । ‘सबक’ कहिनी परम्परा मा चलत परम्परा के खिलाफ खड़े होके धरम-करम के सही मतलब बतात हे । पतरेंगी ला नेता मन बर एक आदर्ष के रूप मा देखाय गे हे । सबो कहिनी ल पढ़ के ये कहे जा सकत हे के-ये कहानी संग्रह वर्तमान के वांछित उद्देश्‍य ला पूरा करत हें ।

समीक्षक-रमेश चौहान

श्री चोवाराम ‘बादल के छत्‍तीसगढ़ी कहानी- ‘जुड़वाँ बेटी’

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