दीपोत्सव छंदमाला
-रमेश चौहान
दीपोत्सवस छंदमाला -छंद कविता
(छंद और रमेश – रमेश चौहान का छंद)
दीपोत्सव छंदमाला गीतिका छंद- दीपावली की असीम शुभकामना आपको
दीप ऐसे हम जलायें, जो सभी तम को हरे ।
पाप सारे दूर करके, पुण्य केवल मन भरे ।।
वक्ष उर निर्मल करे जो, सद्विचारी ही गढ़े ।
लीन कर मन ध्येय पथ पर, नित्य नव यश शिश मढ़े ।
कीजिये कुछ काज ऐसा, देश का अभिमान हो ।
अश्रु ना छलके किसी का, आज नव अभियान हो ।
सीख दीपक से सिखें हम, दर्द दुख को मेटना ।
मन पुनित आनंद भर कर, निज बुराई फेेेकना ।।
शुभ विचारी लोग होंवे, मानवी गुण से भरे ।
भद्र होवे हर सदन अब, मान महिला का करे ।
काम सबके हाथ में हो, भाग्य का उपकार हो ।
मद रहे ना मन किसी के, एकता संस्कार हो ।।
नाम होवे देश का अब, देशप्रेमी लोग हो ।
आपको अब सब खुशी दे, देश हित सब भोग हो ।
पर्व यह दीपावली का, हर्ष सबके मन भरे ।
कोप तज कर मोह तज कर, प्रीत सबसे सब करे ।।
दीपोत्सव छंदमाला दोहा -दीप पर्व पर आपको, ढेरों ढेर दुलार
आज खुशी का पर्व है, मेटो मन संताप ।
अगर खुशी दे ना सको, देना ना परिताप ।।
एक दीप तुम द्वार पर, रख आये हो आज ।
अंतस का तम भी हरें, छेड़ प्रीत का साज ।।
चाहे तम गहरा रहे, दीपक लेती चीर ।
सौ असत्य के मध्य में, एक सत्य बलबीर ।।
दीपों की माला सजी, अभिनंदन सत्कार ।
दीप पर्व पर आपको, ढेरों ढेर दुलार ।।
दीपोत्सव छंदमाला रूपमाला छंद- दीप की शुभ ज्योति पावन
दीप की शुभ ज्योति पावन, पाप तम को मेट ।
अंधियारा को हरे है, ज्यों करे आखेट ।
ज्ञान लौ से दीप्त होकर, ही करे आलोक ।
आत्म आत्मा प्राण प्राणी, एक सम भूलोक ।।
दीपोत्सव छंदमाला त्रिभंगी छंद-सुख नूतन लाये
दीप पर्व पावन, लगे सुहावन, तन मन में यह, खुशी भरे ।
दीपक तम हर्ता, आभा कर्ता, दीन दुखी के, ताप हरे ।।
जन-जन को भाये, मन हर्षाये, जगमग-जगमग, दीप करे ।
सुख नूतन लाये, तन-मन भाये, दीप पर्व जब, धरा भरे ।।
दीपोत्सव छंदमाला रोला छंद- चलो जलायें दीप-
चलो जलायें दीप, हृदय आलोकित करने ।
छोड़े सकल विषाद, हर्ष मन में हैं भरने ।।
घृत पुनित विचार, पुनित कर्मो की बाती ।
प्रीत रीत की दीप, बनेगी चौड़ी छाती ।।
दीपोत्सव छंदमाला सार छंद- बोल रहे हैं दीये
जलचर थलचर नभचर सारे,, शांति सुकुन से जीये ।
प्रेमभाव का आभा दमके, बोल रहे हैं दीये ।।
राग-द्वेश का घूप अंधेरा, अब ना टिकने पाये ।
हँसी-खुशी से लोग सभी अब, सबको गले लगाये ।।
ज्ञानी विज्ञानी मानव हित, दीप ज्ञान लौ बाँटें ।
निज संस्कृति में सार्थक देखें, कमियाँ ही ना छाँटें ।
धर्म विज्ञान सह अनुगामी, एक ध्येय ही पाले ।
विश्व कल्याण होवे कैसे, कारज अपना ढाले ।।
नहीं शत्रु विज्ञान धर्म का, यह निश्चित ही जानें ।
रखें ज्ञान संस्कार साथ में, ज्ञानी तभी न मानें ।।
भान नहीं यदि देश धर्म का, ज्ञानी भी अज्ञानी ।
सकल ज्ञान है थोथा उनके, वह केवल अभिमानी ।।
छंदकार-रमेश चौहान
वाह वाह अति सुन्दर भैया जी। शुभ दीपोत्सव
सादर धन्यवाद सुखदेव भाई, आपको एक बार फिर शुभ दीपावली