रमेश कुमार सोनी की 4 कवितायें

रमेश कुमार सोनी की 4 कवितायें

रमेश कुमार सोनी की 4 कवितायें अतुकांत विधा में लिखी गई यह श्रृंगारिक कवितायें एक नये कथ्‍य-कथन में गुँथी हुई हैं । संस्‍मरणात्‍मक शैली में प्रेम भरी यादों को ऐसे शब्‍दों से संजायो गया है कि कविता मुखरित होकर आपके यादों को सहलाने लगती हैं –

रमेश कुमार सोनी की 4 कवितायें
रमेश कुमार सोनी की 4 कवितायें

1. भुट्टा खाते हुए (अतुकांत कविता)

भुट्टा खाते हुए
मैंने पेड़ों पर अपना नाम लिखा
तुमने उसे
अपने दिल पे उकेर लिया,
तुमने दुम्बे को दुलारा
मेरा मन चारागाह हो गया;
 
मैंने पतंग उड़ाई
तुम आकाश हो गयीं
मैं माँझे का धागा जो हुआ
तुम चकरी बन गयी|
 
ऐसा क्यों होता रहा?
मैं कई दिनों तक समझ ना सका
एक दिन दोस्तों ने कहा–
ये तो गया काम से,
और तुम तालाबंदी कर दी गयी
 
मेरे जीवन के कोरे पन्ने पर
बारातों के कई दृश्य बनते रहे और
गलियों का भूगोल बदल गया|
तुम्हारी पायल , बिंदी और महावर
वाली निशानियाँ
 
आज भी मेरे मन में अंकित है
किसी शिलालेख की तरह,
किसी नए मकान पर
शुभ हथेली की
पीले छाप के जैसी  
 
मैं देखना चाह रहा था बसंतोत्सव और
मेरा बसंत उनके बाड़े में कैद थी|
मैं फटी बिवाई जैसी किस्मत लिए
कोस रहा था आसमान को
तभी तरस कर
मेघ मुझे भिगोने लगी
 
इस भरे सावन में
मेरा प्यार अँखुआने लगा
हम भीगते हुए भुट्टा खा रहे हैं और
उसने अपने दांतों में दुपट्टा दबाते हुए
धीरे से कहा–बधाई हो तुम….
और झेंपते हुए उसने
गोलगप्पे की ओर इशारा किया…..|

2. जूड़े का गुलाब

स्त्री और धरती दोनों में से
बहुत लोगों ने सिर्फ
स्त्रियों को चुना और   
प्रेम के नाम पर  
उनके पल्लू और जूड़ों में बँध गए;
 
प्रदूषणों का श्रृंगार किए
विधवा वेश सी
विरहणी वसुधा कराहती रही
तुम्हारी बेवफाई पर|
उसकी गोद में कभी जाओ तो पाओगे
 
लाखों स्त्रियों के रिश्तों का
प्यार एक साथ,
प्यार जब भी होता है तब–
बहारें खिलनी चाहिए,
संगीत के सोते फूटने चाहिए….;
कोई कभी भी नहीं चाहता कि–
 
कोई उसे बेवफा कहे
मजबूरियाँ आते–जाते रहती हैं|
प्यार जो एक बार लौटा तो
दुबारा नहीं लौटता,
ना ही मोल ले सकते और
ना ही बदल सकते;
 
इसलिए सँवारतें रहें
अपनी धरती को
अपने प्रेयसी की तरह|
कहीं कोई तो होगी जो
आपके खिलाए हुए गुलाब को
 
अपने जूड़े में खोंचने को कहेगी
उस दिन गमक उठेगी धरती और
आपका बागीचा सुवासित हो जाएगा
गुलाब,स्त्रियाँ और वसुधा अलग कहाँ हैं?

3. आखिरी दिन

ज़माना भूल चुका उन्हें
जिन्होंने कभी प्यार को खरीदना चाहा,
मिटाना चाहा,
बर्बाद करना चाहा-
प्रेमी युगलों को सदा से
 
लेकिन वे आज भी जिन्दा हैं–
कुछ कथाओं में एवं
कहीं बंजारों के कबीलों के
गीतों में ठुमकते हुए|
प्यार ऐसे ही जिन्दा रहता है
 
जैसे- वृद्धाश्रम में यादें,
आज सहला रहे थे अपने
अंतिम पलों को हम दोनों
वो कह रही थी–
तुम्हारे पहले चुम्बन की उर्जा
अब तक कायम है वर्ना….
 
और मैं भी उसी दिन मर गया था–
जिस दिन तुम्हें पहली बार देखा था
जिन्दा तो मुझे
तुम्हारी नज़रों ने रखा है|
वृद्धाश्रम में केक काटते हुए
प्यार आज अपनी
हीरक जयंती मना रही है
 
मानो आज उनका ये आखिरी दिन हो!
वैसे बता दूँ आपको
प्यार के लिए
कोई आखिरी दिन नहीं होता और
प्यार कभी मरता नहीं
यह सिर्फ देह बदलता है
ज़माने बदलते हैं |

4. मुस्कुराता हुआ प्रेम

प्रेम नहीं कहता कि–
कोई मुझसे प्रेम करे
प्रेम तो खुद बावरा है
घुमते–फिरते रहता है
 
अपने इन लंगोटिया यारों के साथ–
सुख–दुःख,घृणा,बैर,यादें और
हिंसक भीड़ में;
प्रेम सिर्फ पाने का ही नहीं
मिट जाने का दूसरा नाम भी है|
 
प्रेम कब,किसे,कैसे होगा?
कोई नहीं जान पाता है
ज़माने को इसकी पहली खबर मिलती है,
यह मुस्कुराते हुए
मलंग के जैसे फिरते रहता है;
 
कभी पछताता भी नहीं 
कहते हैं लोग कि–
प्रेम की कश्तियाँ
डूबकर ही पार उतरती हैं|  
मरकर भी अमर होती हैं लेकिन
 
कुछ लोगों में यह प्रेम
श्मशान की तरह दफ़न होते हैं
वैसे भी यह प्रेम
कहाँ मानता है–
सरहदों को, जाति–धर्म को
ऊँच–नीच को
 
दीवारों में चुनवा देने के बाद भी
हॉनर किलिंग के बाद भी
यह दिख ही जाता है
मुस्कुराता हुआ प्रेम मुझे अच्छा लगता है….|

-रमेश कुमार सोनी 
LIG 24 कबीर नगर रायपुर 
छत्तीसगढ़ 
7049355476

पुस्‍तक समीक्षा-प्रवासी मन, हाइकु संग्रह-डॉ.जेन्नी शबनम, समीक्षक-रमेश कुमार सोनी

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