Ramkumar-singh-chauhan-ke-bhajan ठा. रामकुमार सिंह चौहान के कुछ भजन

परिचय-

ramkumar-singh-chauhan-ke-bhajan
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Ramkumar-singh-chauhan-ke-bhajan भजन-

1. गणेश वंदना (रूपक ताल में)

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मुखड़ा-
गणराज रखो लाज
देवों के सरताज
पद 1-
मन के हि माला से पूरा करूंगी मैं
चरणों की रज से ही माघे भरूंगी मैं
कर दे मेरी आष पूरा हे भगवान
बचा लेना लज्जा ए तेरा ही है साज ।।
गणराज रखो लाज ।
पद 2-
श्रद्धा सुमन तेरो चरणें अर्पण
तन मन से मैं हॅ तुझ में समर्पण ।
कर दे उजाला हृदय में प्रभुजी,
अपना बना ले बचा ले मेरी लाज ।।
गणराज रखो लाज
पद 3-
करूणा हरो मेरे हे जग के नायक
बृद्धि के दाता हो हे गणनायक
तेरी कृपा बिन सुना हृदय है
पड़ा हूँ शरण में कुमार तेरे पास ।।
गणराज रखो लाज

2.सरस्वती वंदना (ताल-दादरा)

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चलो सखियां सब आरती सजाएं
मां शारदा की पूजा करें
फूल माला नौ वेद चढ़ाएं
मां शारदा की पूजा करें

पद-1
रतन सिंहासन राजत मइयां,
राग रागनी चंवर डोलइया
वाके वीणा के तार झनकाय
मां शारदा की पूजा करें
पद-2
आसन तोर कमल दल ऊपर
करहूं कृपा अब मइया मो पर
खड़े द्वारे पर आस लगाए
मां शारदा की पूजा करें
पद-3
गुण गावत सारे जगत आपके
ध्यान धरो तेरे सुबह शाम के
तेरे चरणों में शीश नवाए
मां शारदा की पूजा करें

3.भजन-सोइ देश सैय्यां हमार हो सजनी (ताल दादरा )

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सोइ देश सैय्यां हमार हो सजनी
सोई देश सैय्यां हमार हो सजनी
पद-1
परम प्रकाश देश है उनके
मन बुद्धि के पार हो सजनी
सोई देश सैय्यां हमार हो सजनी
पद -2
शोक मोह भय हर्ष दिवस नहीं
जहं नहीं द्वेष ना प्यार ।।
हो सजनी सोई देश सैय्यां हमार
पद- 3
जहं नहीं चंद्र सूर्य नहीं उगत
जहं नही देश न काल हो सजनी ।।
सोई देश सैय्यां हमार हो सजनी
पद 4
मोरे सैय्यां कोई नाम न जानत
जाके रूप अपार हो सजनी
सोइ देश सैय्यां हमार हो सजनी
पद-5
शून्य महल बीच सेज बिछौ है
सोवत नंद “कुमार“ हो सजनी
सोइ देश सैय्या हमार

4.भजन-मन नेह कर हरी नाम से (ताल रूपक)

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मन नेह कर हरी नाम से
यह जग से नाता तोड़ दे
संसार स्वार्थ से सना
श्रीराम से चित जोड़ दे
पद 1
मद काम क्रोध में फंस गये ।
सब लोभ मोह में ढक गये ।।
नहि जानते निहसार है
दलदल में आकर धस गये ।
अब बंद मोक्ष है तुझे में ही,
पकड़ो या चाहे छोड़ दे
पद-2
क्षण भर का तुमसे प्यार है ।
आखिर ना कोई आधार है ।।
सब देखते रह जाएंग,
जलकर हो जाएगा छार है ।
रो लेंगे कुछ दिन के लिये,
कच्चे हैं नाता तोड़ दे
पद-3
यह जग का आर न पार है
नहि दिखता भव धार है ।।
सब जीव बहते जा रहे
कोई न खेवनहार है
सद्गुरु चरण में लिपट जा
ए “कुमार“ से मुख मोड़ दे

5.मन कर ले रे जतन कुछ

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तेरे श्वास चल रहा है, अनमोल रतन का
मन कर ले रे जतन कुछ, हरि नाम के भजन का
पद-1
इस तन का क्या ठिकाना,
किस क्षण ऐ छूट जाए ।
नर तन मिला कृपा से
आए ना फिर न आए
मौका मिला है तुमको छोड़ो, ए जग सपन का
मन कर ले रे जतन कुछ,……
पद-2
दुनिया है रंग बिरंगी
पतझड़ कभी बाहरें
छूट जाएगा यही सब नहीं कोई सहारें
जितने हैं तेरे नाते साथी, है कुछ ही क्षण का
मन कर ले रे जतन कुछ,…..
पद 3
मिट्टी का है यह काया, गुरु के चरण में दे दे
उद्धार का सहारा उसको ही मन को दे दे
भव पार करने वाले, नैया जो तेरे तन का
मन कर ले रे जतन कुछ, .. ….
पद 4
गुरु की कृपा ही धन है,
गुरु की कृपा ही बल है
गुरु की कृपा न कोई पाता, नहीं चयन है
तेरे “कुमार“ तुझ पर कुर्बान है चरण का
गीतकार-ठा.रामकुमार सिंह चौहान

 

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