भगवान राम पर कविताएं: राममय छंदमाला
-रमेश चौहान
(छंद और रमेश – रमेश चौहान का छंद)
राममय छंदमाला (छंद कविता)
राममय छंद माला में भगवान राम की मर्यादा कर्म एवं धर्म की स्थापना की अभिव्यक्ति विभिन्न छंदों के माध्यम से काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत की गई है ।
राममय छंदमाला छंद दोहे-
राम कर्म का नाम है, कर्म धर्म पहिचान ।
राम पूजने से भला, राम कर्म को मान ।।
राम सत्य शाश्वत सदा, कर्म डगर का नाम ।
पुत्र बंधु पति मित्र की, कर्म दिखाये राम ।।
त्याग तपस्या धर्म है, मात-पिता भगवान ।
जग को दिये संदेश हैं, देकर स्वयं प्रमाण।
बंधु-बंधु में प्रेम हो, सुखमय हो परिवार ।
प्रेम पुनित पति-पत्नि का, जीवन का आधार ।
पहले माता अरू पिता, फिर गुरू अरू बंधु ।
पत्नि सखा फिर बाद में, कहे राम रवि चंदु ।।
संघर्षो से जूझना, भरत वंश पहचान ।
संघर्षो से जूझते, राम बने भगवान ।।
राममय छंदमाला छंद रूपमाला -राम जैसा राम जग में, दूसरा ना और
राम जैसा राम जग में, दूसरा ना और ।
देश भारत देश जैसा, दूसरा ना ठौर ।।
राम जन्मे धाम पावन, देष भारत देश ।
कर्म परिचय नाम जिनका, राम वह अवधेश ।।
धर्म जिसका कर्म करना, कर्म ही पहचान ।
कर्म करके धर्म गढ़ना, कर्म पर अभिमान ।।
पुत्र बनकर बंधु बनकर, मित्र बनकर राम ।
राह जग को दिखाये, होय कैसा काम ।।
राममय छंदमाला छंद कुण्डलियां-
कैसे हों संबंध सब, हमें दिखाये राम ।
तन की सीमा बंधकर, किये सभी हैं काम ।।
किये सभी हैं काम, मनुज जो तो कर पाये।
बेटा भाई मित्र, सभी संबंध निभाये ।
सुन लें कहे ‘रमेश‘, मनुज हो इनके जैसे ।
केवल पढ़कर राम, राम को जानें कैसे ।
नश्वर इस संसार में, राम नाम है सत्य ।
हर जीवन के अंत का, होत एक ही गत्य ।
होत एक ही गत्य, प्राण जब तन को छोड़े ।
आत्म मुग्ध हो आत्म, जगत से नाता तोड़े ।।
सुन लो कहे ‘रमेश‘, रामसीता भज सस्वर ।
कर लो निज पहचान, दृश्य दुनिया है नश्वर ।।
ऐसा कैसे हो रहा, जो मन रहे उदास ।
धर्म सनातन सत्य है, नहीं अंधविष्वास ।।
नहीं अंधविष्वास, राम का जग में होना ।
मुगल आंग्ल का खेल, किये जो जादू-टोना ।।
खड़ा किये जो प्रश्न, धर्म आस्था है कैसा ।
ज्यों काया में प्राण, धर्म आस्था है ऐसा ।।
राममय छंदमाला छंद उड़ियाना – ‘जपत रटत राम नाम, तरना है दुनिया’
जपत रटत राम नाम, तरना है दुनिया
जपत रटत राम नाम, तरना है दुनिया
कर्म करत एक घ्येय, एक लक्ष्य एक गेह,
भक्ति शक्ति रखे, भक्त बड़ा गुनिया ।।
स्वार्थ मोह राग द्वेश, जगत देह भरे क्लेष,
तजे द्वन्द देह मान, तजे मन मलनिया ।।
अंत काल साथ नहीं, जिसे कहे यही सहीं,
एक राम साथ रहे, बाकी चरदिनिया ।।
राम चरण ‘रमेश‘ धर, कहे बात विनती कर,
राम नाम मन में भर, आत्म देह ऋणिया ।।
राममय छंदमाला छंद हरिगीतिका -दशहरा पर्व में करे शपथ
दशहरा पर्व में करे शपथ, बुराई जड़ से मिटे ।
अंतरमन के सारे मल अब, निश्चित विश्व से मिटे ।
दुर्गुण सद्गुण का अमरबेल, सारा रक्त जो पिये ।
सब दुर्गुण मार गिराये हम, जैसे रामजी किये ।
राममय छंदमाला श्रीरामजी की आरती – तर्ज ओम जय जगदीश हरे
जयजय प्रभु श्रीरामा, स्वामी जय श्रीरामा ।
अखिल सृष्टि के स्वामी, परम शांति के धामा ।।
भूमि भार उद्धारक, भक्तों के प्रिय कंता ।
दयावंत जन पालक, दीन सखा भगवंता ।।
मानव तन धारण कर, मर्यादा सीखाये।
तन मन पर अनुशासन, करके आप दिखाये ।।
उपल अहिल्या पग दे, अबला नार तारे ।
गौतम के श्राप मेट, उनके भाग सवारे ।।
पुनित प्रेम से पुलकित, केवट को सखा किये ।
चरण नीर अति दुर्लभ, सहर्ष ही दान दिये ।।
प्रेम बेर शवरी के, रूचि रूचि भोग लगाये ।
नवधा भक्ति दया कर, शवरी को समझाये ।।
तुम्हरे सेवा करने, हनुमान गुणी आये ।
पाय दया वह तेरे, तुझको हृदय बिठाये ।।
सुग्रीव दीनता लख, उनसे मित्रता किये ।
शरण लिये विभिषण को, लंका के राज दिये ।।
शरणागत वत्सल प्रभु, आरती सुन लीजिये
आय शरण हम तुहरे, निज भक्ति दीजिये ।।
जयजय प्रभु श्रीरामा, स्वामी जय श्रीरामा ।
अखिल सृष्टि के स्वामी, परम शांति के धामा ।।
-रमेश चौहान
इसे भी देखें-श्रीरामरक्षा चालीसा
जय श्री राम।
बेहतरीन राममय छंद सृजन।
हार्दिक बधाई।