रंधनी खोली के डिवटी म
-डॉ अशोक आकाश
लाकडाउन मा सबे काम आनलाईन होगे रीहिस | घर मा धंधाय बेरा कुबेरा रंग रंगके रंधई गढ़ई खवई सुतई दिन रात चलत राहय | सबे मनखे मन अपन घर मा खुसरे टीवी मन मा समाचार सुन सुनके घुरघुरात राहय | टीवी एंकर मनके मेछरा मेछराके, फेंक फेंक के आनी बानी के गोठ सुन सुनके लइका सियान सबके पोटा पोट पोट करत राहय | ऊंकर मनके डरडरावन बोली सुन-सुन के अइसे लागे जइसे हमू मनला अभीच कोरोना हो जही अउ मरिच जबो |
दिन रात हप्ता महीना दू महीना ऐसे तइसे दूसरा लहर तक आगे, फेर लइका सियान मनके फरमइस अउ बाई के रंधई पोरसई नई रुकीस | एती लाकडाउन बाढ़त जाय | मास्क सेनेटाइजर हेंडवास बेचैया मनके पौ बारा होगे राहय | साग भाजी बेचैया मन औने पौने बेचके ले देके अपनी जीवन चलात रीहिन |
लाकडाउन के सही फायदा डॉक्टर मेडिकल वाले मनके बाद किराना बैपारी मन उठइन, बीड़ी, गुड़ाखू , तंबाखू , पाउच अउ दारू बेचैया मन निझमहा के बेरा कलेचुप बेच बेचके नंगते पइसा झोरत रीहिन | जतका बड़का साहित्यकार, ओतका खवई पीयई मा चिक्कन, एक से एक चीज रंधवाके खावथे अउ रॉय रॉय एक से एक कविता ढीलत राहय | ऊंकर फेंक फेंक के आनी बानी के कविता लिखई ला देखके बाई अउ लइका मन खिसायावथे, जॉगर चले नहीं दुनिया भरके बात करथे, आले आल पहाड़ के टीपिंग मा चढ़थे | घर के माईं लोगिन के तो बातेच झन पूछ, सबके तियारा मानई मा बिचारी मन अधियागेहे | त एती स्कूल जवैया लइका मनके छुट्टी लमियात जावथे, सॉझ मुंधियार ले खेलैया लइका मन घर मा खुसरे बिचारी बिचारा मन रात दिन गारी खावत हे | लेपटाप मा कुछू करत रही त ईंकर तो रात दिन इहीच बुता ये, कहीं काम नइ दिखे ये मनला, मोबाइल मा कुछू करत रही त कही रात दिन मोबाइल , ईंकर मन करा कहीं काम बुता नइ हे दिन भर मोबाइल अउ गेम मा गड़े रहिथे | जठना मा सुते रहिबे त रात दिन सुते रहिथे वो एमनला कत्तिक सुते ला भाथे ते | अब बिचारा ये पढ़ैया लइका मन करे त का करे | ये लाकडाउन मा सबके जीव हदास होगे हे | पढ़ैया मनके स्कूल बंद, पियैया मनके भट्ठी बंद, नौकरी वाला मनके आफिस बंद, सरी काम घर मा खुसरे आनलाईन होवथे | शादी शुदा मैनखे दिनभर बाईच के नजर मा रहिके रहिके असकटागेहे, काबर कि ओकर बहुत अकन मनोरंजन के साधन घर के बाहिर मा होथे | ओकर चौंक चौराहा के रखवारी करई घुसड़गेहे | छेल्ला गोल्लर मन असन गिंजरैया मनखे मन अब घर मा बछरू बरोबर बंधाय लइका अउ माईलोगन मन ऊपर घेरी बेरी बोमियावत रहिथे | शेर असन गुर्रैया नेता अउ मंत्री मन तको घर मा खुसरे बेरा बुलके के अगोरा करथे |
हमर असन सिधवा मनखे मन तो कुकुरगत के होगेहन | लइका पिचका बाई सबके सब कई ठन बुता तियारत रहिथे | कतको संगवारी मनके मोरेच असन हाल हवे, कतको काम करही तभोले ओकर काम कभू पूरा होबेच नई करे | सबके अनुभो ला सुनके कभू कभू अपन मन मा गुनथव, हमन कतिक किस्मत के धनी हन, कम से कम हमर पूछैया गोंछैय्या तो हवे | कतको झन के किस्मत तो पटपर भॉठा बरोबर रहिथे, कोनो पूछे न गोंछे |
मोर घर मा बाई अउ लइका मन मोला कई ठन काम बुता बर रोज दिन तियारत रहिथे | कोनो दिन पापड़ बनायके, कोनो दिन बरी बनायबर पोंगा रोखे के, कोनो दिन चटनी डारेके, झाड़ू , पोंछा, बरतन कपड़ा धोवई, सबे काम करायके घरवाली के उदिम ला में है जानत रेहेंव, एमाके कोनहो एकठन बुता ला कहूं एकबेर बने ढंगले कर परेंव, ते जिनगी भर के टोंटा फॉसी हो जही, इही जान के कोनो बुता ला बाई के मुताबिक करबे नइ करेंव एकर सेती पूरा लाकडाउन भर मोर डिवटी बदलत रीहिस |
एक दिन बाई ला बुखार चढ़गे, कोरोना काल मा बुखार अउ संग मा सर्दी, लीम के डारा मा करेला , बाई मोर डिवटी ला बिहने-बिहने रंधनी खोली में लगादिस | लइका मनके आनलाईन क्लास, सरी जिनिस ला बना बनाके ऊंकर मन करा लेगे के डिवटी सुनके थर्रागेंव | बिहनिया ले चाहा पानी, नाश्ता, खाना, दिनभर कॉटई, पोइलई, पिसई, भुंजई , बघारई, आगी बारई अइसन बूता के खियाल आतेसाठ महूं ला बुखार धरलीस, जिनगी भर कथरी ओढ़के घिंव खवइया मैनखे | बाई ला उही दिन तुरते कोरोना जॉच करायला सॉकरा के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र लेगेंव, ओकर संग मा महूं लगे हाथ कोरोना जॉच करा लेंव | मूसर कूटे ते चॉउंरे चॉउंर , ओला छोंड़के कोरोना बिचारी मुंही ला पाजीटिव होगे | ओला मेंहा डर्रावत रेहेंव अब सब उलटा होगे | घरके सबे मनखे मन अब मोर ले दुर्हिया रेहे ला धरलिन |
एक ठन खोली मा खुसरे बढ़िया टीवी देखत मोबाइल में गेम खेलत वाट्सएप फेसबुक चलावत मा एके झन धंधाय एक से एक जिनिस छनन छनन होम कोरेंटाइन रेहे खायेंव | बुखार नइ आतिस ते मोला रंधनी खोली के डिवटी बजाय ला पड़े रहितिस, जय हो कोरोना महारानी |
लेखक
अशोक आकाश
ग्राम कोहंगाटोला
पोष्ट ज. सॉकरा
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