राष्ट्र, जीवन और मूल्यों पर कवितायेँ-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

राष्ट्र , जीवन और मूल्यों पर कवितायेँ
(आज़ादी के अमृत महोत्सव के सन्दर्भ में )

प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

आजादी के अमृत महोत्‍सव के संदर्भ में प्रस्‍तुत है प्रो रवीन्‍द्र प्रताप सिंह रचित कविताएं राष्‍ट्र, जीवन और मूल्‍य । इन कविताओं में जीवन मूल्‍यों को , राष्‍ट्र के प्रति चिंतन और चिंता को शब्‍द दिया गया है ।

राष्ट्र, जीवन और मूल्यों पर कवितायेँ-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
राष्ट्र, जीवन और मूल्यों पर कवितायेँ-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

1.जीवन उदधि भरा मूल्यों से

जीवन उदधि भरा मूल्यों से
उन्नति के प्रतिपल विचार
प्रेरित कर्मों की लिये श्रृंखला
मन की गति में भी सद्विचार।
भारत का हर उर्जित कण
जाने कब से कर मूल्य सृजन
दिखा रहा है दृष्टि प्रबल ,
इस धरती पर जड़ भी चेतन।
हम राष्ट्र मूल्य ले कर निकलें
अपनी जीवन यात्रा क्रम में ,
हर लक्ष्य सरल , हर पथ स्थिर
और हमारी जीत प्रबल।

2.राष्ट्र तुम्हारा खड़ा वहाँ

है कहीं तिमिर जो फैल रहा
तू बन प्रकाश के पुंज प्रबल
बो यहाँ रश्मियों की फसलें
अन्धकार को दूर भगा।
जीवन में हर पल घोल स्वाद ,
जो मिले तुझे उसको महका
संस्कृति कोशों से चुन चुन कर
अपनी आभा को प्रबल बना।
है राष्ट्र तुम्हारा खड़ा वहाँ ,
बस देख हृदय से इसको तू ,
फेर देख उधर जीवन की गति ,
इसकी धारा प्रांजल निर्मल।

4.पथ पर चल स्थिर हो मन

निष्ठुर सा विपरीत बहुत
पथ है दुर्गम दुष्कर सा कुछ ,
तू काट सभी यह बाधायें
पथ पर चल स्थिर हो मन
तू चल !
नाहक इन पर हे तू रुक
लक्ष्य दिख रहा,
बस रख स्थिर।
चल मन शास्वत तू विजय खोज
तू चल स्थिर हे मन
तू चल !

है शत्रु कई विधि रूप धरे
अंदर भी सक्रिय , बाहर भी ,
तू मन कर स्थिर , विजय सोच
तू चल स्थिर हे मन ,
तू चल !

5.युद्ध

और फिर थम जायेगा अचानक युद्ध
राख बन कर उड़ चुका होगा विश्वास
हांफती महत्वाकांक्षाओं पर क्षणिक विराम
चल उठेगा फिर नया अभियान
मिलेंगे फिर कूटनीतिक हाथ
उबलता ले अंदर फौलाद।
किन्तु उसका क्या ,ह्रदय की किरणें सूखी
सूखा मानवता का स्नेहिल द्रव्य ,
सूखी जीवन नाल।
हो सकेगा कुछ कहीं करार-
नहीं हो मानवता कभी अनाथ
दिखे न कहीं करुण वैधव्य
युद्ध की बासी गन्दी फुफकार।

6.स्नेह रंग

स्नेह रंग
हर तरफ रंग
हर तरफ गुलाल
जिंदगी की व्याख्या
और संस्कार।
दूर क्षितिज भी रंगा
निकट दृष्टि भी रंगी
रँगे भाव रंग विचार
चलो चलें यार।
यही स्नेह रंग
यही जीव द्रव्य।
जिंदगी की दौड़ में जादुई पहाड़
यही रहा रंगोत्सव
हर्ष का त्यौहार।

प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
डॉ रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्केट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें (2015) , अंतर्द्वंद (2016), तीन पहर (2018 )चौदह फरवरी (2019),चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018) उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017),पथिक और प्रवाह (2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑव फनी एंड बना (2018),माटी (2018 )द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) प्रोजेक्ट पेनल्टीमेट (2021),कोरोना और आम आदमी की कविता (2021), एक अनंत फैला आकाश (2022) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, डॉ राम कुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान 2020 ,एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सत्रह पुरस्कार प्राप्त हैं ।
संपर्क : अंग्रेजी एवं आधुनिक यूरोपीय भाषा विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ 226007
ईमेल : rpsingh.lu@gmail.com
फ़ोन : 9415159137

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