आजादी के इतने दिनो बाद भी राज भाषा हिन्दी राष्ट्र भाषा न बन सकी, क्यो ?
रवींद्र – रतन
आजादी के इतने वर्षो बाद भी हिन्दी राज भाषा नहीं बनी । बाट जोह रही है कौन सरकार आयेगी, जो इसे राष्ट्रभाषा के
सिंघासन पर आरूढ़ करेगी ? सच पूछिये तो अंग्रेजी विचार धारा के लोग इसे राष्ट्रभाषा बनाने के प्रति गम्भीर नही है। जरुरत है आज हिन्दी को सौतन होने से बचाने की ।
राष्ट्र की अस्मिता के प्रश्न पर सब एक होकर दिखलाईये । सोचिये, विचारिये शीघ्र अब हिन्दी को सौतन होने से बचाइए ।। अंग्रेज चले गए मगर अंग्रेजियत छोड़ गए । हम आज भी हीन भावना से ग्रस्त हैं।
बस में चलें,ट्रेन में चले तो धोती- कुरता पहने कोई विद्वान भी सामने आजाये तो कोई उसे जगह नहीं देगा, मगर वहीं पर कोई सूट -बूट ,टाई लगाए कोई अन्ग्रेज टाईप का अज्ञानी आदमी भीआजाये तो लोग तुरत उसे अपनी जगह देकर खड़े हो जाते हैं। इससे लगता है आज की हिन्दी तो अपनो से ही हारी है ।
हम सभी भाषा को सिखे , जानें समझें मगर हिन्दी को ही अपनाएं और इसे ही राष्ट्र भाषा अब बनाएँ। राजभाषा हिन्दी को ही राष्ट्र
भाषा अब बनाएँ। और हिन्दी दिवस को हम सब राष्ट्रीय उत्सव सा मनाएं ।
विवेकानंद ने हिन्दी में बोल कर विदेश में भारत और भारत की भाषा हिन्दी का झन्डा लहरा दिए थे । अटल बिहारी वाजपेयी जी ने विदेश में हिन्दी में भाषण देकर भारत के भाल पर हिन्दी की विन्दी लगा कर भारत माँ का शृंगार किया।
आज हिन्दुस्तान की युवा पीढी आइटी सेक्टर और मेडिकल की पढाई के कारण भी हिन्दी से बिमुख हो रहे हैं।जबकि ऐसी बात नही है ।ऐसे अब तो प्राद्दोगीकि के पढाई की व्यवस्था भी हिन्दी मे भी हो रही है।
14 सितम्बर 1949 को भारत की संविधान सभाने हिन्दी को राजभाषा के रुप मे स्वीकार किया। उसी समय से हमलोग इस तिथि को ‘हिन्दी-दिवस ‘ के रुप में मनाते आ रहे है।
हिन्दी एक जीवन्त भाषा है देश काल और परिस्थिति के अनुसार इसने अपने आप को बदला है,यही कारण है कि आज हिन्दी विश्व व्यापी भाषा के रुप में प्रचारित और प्रसारित हो रहा है। हम जानते हैं कि किसी भी भाषा का विकास या उसकी उन्नति उस देश के नेतृत्व की इच्छा शक्ति परनिर्भर करती है । हिन्दी दिवस को छोड़ कर अन्य दिन सरकार द्वारा हिन्दी के विकास प्रचार और प्रसार से लोग इतना ज्यादा निरास हो चुके प्रतीत होते है । ऐसे लोगो के कारण यह भाषा राष्ट्र भाषा के पद पर आरूढ़ नही हो पाती देश अपने आजादी का अमृत महोत्सव मना चुकी है इसके बाबजूद भी आज हिन्दी राष्ट्र भाषा के सिंघासन पर बईठ नहीं पाई। देश है आजाद जब तो क्यों वहाँ परतंत्र हिन्दी ? राष्ट्र भाषा के सिंघासन ‘क्यों नहीं आसीन हिन्दी?
जब कि आज विश्व में सब से ज्यादा बोली जाने वाली भाषा का गौरव हिन्दी को ही प्रप्त है। समाज में यह भ्रम फैला है कि रोजगार और प्रतिष्ठा की भाषा अन्ग्रेजी ही है, इसका परिणाम यह हुआ कि भारत में एक भाषाई आभिजात्य वर्ग पैदा हुआ जो अन्ग्रेजी के माध्यम से अपने हितों का दोहनकर शेषभाषा समाज का शोषण करतारहा।इस प्रवृत्ति ने हमारी मानसिक्ता को बीमार बना दिया है। जाने अनजाने में हम इस भावना के शिकार होने से उवर नहीं पा रहे है । हिन्दी हमारी जान-माल,मान सम्मान और शान ही नही अपितु
अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर यह हमारी पहचान तथा परिभाषा भी है।
भारत की आत्मा में हिन्दी का निवास है, इसके विकास और विस्तार के बिना भारत का विकास विस्तार सम्भव नहीं है।
हिन्दी दिवस मना लेने से, कविता-कहानी पढ़ लेने से। अगर समझते हो ये हिन्दी तो न होगी यह माथे की विन्दी ।