राष्ट्र चेतना के स्वर
(आज़ादी के अमृत महोत्सव के सन्दर्भ में कविताएं)
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
रष्ट्रीय भावनाओं को जागृत करती हुयी यहाँ कुछ कवितायेँ प्रस्तुत हैं :
1.राष्ट्र चेतना के स्वर
अप्रतिम उज्जवल भाव लिये
राष्ट्र चेतना के गुंजित स्वर
भारत के उर्जित स्वर हैं ,
भारत के समूह स्वर हैं।
जहाँ कहीं भी लेशमात्र है ,
राष्ट्र केंद्रित स्वर से विचलन ,
उन्हें मुख्य धारा में लाकर
प्रेरित सम्यक हों आयोजन।
कलुषित विचार अरि पक्ष हमेशा ,
इन उन कितने माध्यम लेकर
राष्ट्र क्षति कि सोच जागकर
करता रहता इधर उधर से।
राष्ट्र प्रेम कि सोच सर्वदा ,
जागृत हो , स्थिर हो , स्थापित हो,
अप्रतिम उज्जवल भाव लिये
राष्ट्र चेतना , गुंजित रक्षित हो।
2.संस्कृति के उन्नत महाकोश से
संस्कृति के उन्नत महाकोश से ,
प्रतिपल प्रत्यावर्तित जीवन
संस्कृत के स्वर से चर्चित हो ,
झंकृत हो हर पग पर जीवन।
ऋषियों, मुनियों की ये धरती ,
कण- कण में भगवत दर्शन ,
ऊर्जा से प्रेरित हर कण ,
सेवा भाव समर्पण दर्शन।
इस तप भूमि , इस शौर्य केंद्र से
प्रेरित है विश्व पटल।
मेरे जीवन के सम्बल,
संस्कार और सिद्धांत यहाँ के ,
हों उन्नत हर पल , ये है प्रण,
इस श्रेष्ठ भूमि को सदा नमन ।
3.फैली है हर तरफ वल्लरी
फैली है हर तरफ वल्लरी
बना सुगन्धित विश्व मलय ,
होगीं आह्लादित आकांक्षायें,
इनसे जाने कहाँ कहाँ।
कितने होंगे पोषित इनसे
संपूर्ण विश्व में क्षेत्र हर तरफ ,
हर तरफ शीर्ष पर किसी रूप में
विद्या, कौशल और कथानक।
किन्तु मूल है निहित राष्ट्र में
और राष्ट्र की संस्कृति में ,
राष्ट्र संस्कृति के स्वर की जय
राष्ट्र भावना झंकृत स्वर जय।
4.हम भरें उड़ान , प्राप्त करें ध्येय
हम भरें उड़ान , प्राप्त करें ध्येय ,
मूल में रखें भाव ,
राष्ट्र भाव , राष्ट्र भाव।
तरल भाव बह रहा संस्कृति प्रवाह
प्रफुल्लित सभी जीव , विश्व हित भाव।
तरल भाव , गीत मृदुल ,
सभी राज्यों , गुणों युक्त ,
हैं प्रणीत ग्रन्थ सभी
सम्पूर्णता भरे भाव।
हम भरें उड़ान , प्राप्त हो ध्येय ,
मूल में रखें भाव ,
राष्ट्र भाव , राष्ट्र भाव।
5.गुंजित सभी दिशायें
गुंजित सभी दिशायें
उर्जित सम्यक स्वर।
हर्षित मन से चहक रहे हैं
विहग यहाँ बेहिचक , बिना भय।
शायद उन्हें हिमालय सा
प्रहरी दिखता हो ,
घाटी में फैले फूलों की
दिखती मोहक मृदुल श्रृंखला।
यही भूमि है जहाँ मनीषी ,
ऋषियों ने है किया तपस्या ।
आदिकाल से जागृत धरती ,
संस्कृति पोषक उसकी रक्षक।
6.नदियां ममतामयी यहाँ पर
नदियां ममतामयी यहाँ पर
संस्कृति की लिये निशानी ,
तट पर कितने पुरालेख ,
कितनी जीवंत कहानी।
कितने मेले आयोजन होते हैं ,
समय समय पर यहाँ निरंतर ।
कितनी यादें और कथानक
वंशों साम्राज्यों की ,
कितने दर्शन चिंतन की
ये नदियां जीवंत निशानी।
नदियां ममतामयी यहाँ पर
संस्कृति की लिये निशानी ,
तट पर कितने पुरालेख ,
कितनी जीवंत कहानी।
7.गाथायें सब करें समन्वित
गाथायें सब करें समन्वित ,
महाकाव्य बन जाये।
इधर उधर जो स्वर बिखरे हैं
जब हों योजित एक साथ ,
महानाद बन जाये।
जाने कितने बीज पड़े हैं ,
मिटटी के बाहर।
मिले यथेष्ट उन्हें जलवायु
सुन्दर कानन बन जाये।
बस एक समन्वय की आवश्यकता ,
एक सोच बन जाये अमर
इधर इकाई , उधर इकाई
महाशक्ति बन जाये।
8.जन गण के गौरव का प्रतीक
जन गण के गौरव का प्रतीक ,
राष्ट्र संस्कृति के का मूर्त रूप ,
भारत के जन गण का प्रतीक ,
भारत माँ का ध्वजा रूप,
लहराता नीले नभ में गर्वित ,
भारत का अपना गर्व तिरंगा ,
भारत का अपना गर्व तिरंगा।
व्यवहारों में कर स्थापित
सोच इसी से हो प्रेरित ,
है धर्म हमारा , भाव हमारा
राष्ट्र भाव का रूप तिरंगा।
प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
(डॉ रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। वे अंग्रेजी और हिंदी लेखन में समान रूप से सक्रिय हैं । फ़्ली मार्केट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग(2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें (2015) , अंतर्द्वंद (2016), तीन पहर (2018 )चौदह फरवरी (2019),चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018) उनके प्रसिद्ध नाटक हैं। बंजारन द म्यूज(2008) , क्लाउड मून एंड अ लिटल गर्ल (2017),पथिक और प्रवाह (2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑव फनी एंड बना (2018),माटी (2018 )द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) प्रोजेक्ट पेनल्टीमेट (2021),कोरोना और आम आदमी की कविता (2021), एक अनंत फैला आकाश (2022) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने विभिन्न मीडिया माध्यमों के लिये सैकड़ों नाटक , कवितायेँ , समीक्षा एवं लेख लिखे हैं। लगभग दो दर्जन संकलनों में भी उनकी कवितायेँ प्रकाशित हुयी हैं। उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, डॉ राम कुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान 2020 ,एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सत्रह पुरस्कार प्राप्त हैं ।)
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