चंपू काव्य -रोक दो रक्त तांडव
डॉ अशोक अकाश
रोक दो रक्त ताण्डव’ डॉ. अशोक आकाश की एक चम्पू काव्य है ।चम्पू काव्य एक प्राचिन साहित्यिक विधा है इस विधा में मैथलीशरण गुप्त ने यशोधरा लिखी है । डॉ; आकाश के इस कृति में प्रदेश, देश और विश्व में बढ़ रहे आतंकवादी, हिंसा के घटनाओं के विरुद्ध आवाज बुलंद किया गया है । इस कृति को कडि़यों के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है । प्रस्तुत है आज इसकी 5वीं कड़ी आशा ही नहीं विश्वास हैै सुरता के पाठकों को यह निश्चित ही पसंद आयेगा ।
(6)
मैं सफर में हूँ,
किसी भी तरह
निकलना चाहता हूं,
इस जानलेवा
मकड़जाल से ।
लेकिन
किसी मदमस्त
नशेड़ी की तरह,
चाह कर भी
नहीं निकल पाता।
और इस विवशता से उठी
खीझ
किसी
निर्दोष पर गिर जाती,
बिजली की तरह,
तब
फिर से
ढह जाती,
एक और
उठती हुई इमारत…
बिखर उजड़ जाता,
निर्दोष परिवार।
अस्तित्व को तरस जाती,
सँवरती मंजिल ।
आतंकी हरकत से
लोगों में
फैल जाती
दहशत,
डर,
खौफ…!
देखते ही
मच जाती हलचल,
पहचानते ही
चीख उठते लोग ।
बचाव के लिए
चित्कार कर
पुकारते उठ जाते,
दोनो हाथ,
दूर क्षितीज तक,
दौड़ जाती
एक बारगी नजर,
मदद की चाह में।
कोई नहीं जानता,
कभी
हमदर्द बनकर आया
यह अजनबी,
हो जाएगा
इतना जानलेवा,
निर्मम
बेरहम …..!
मासूम चेहरे के अंदर
छिपे
हिंसक जानवर के
पहचान की क्षमता
नहीं होती
हर किसी में !
(7)
मैं सफर में हूं …
मुझे भोला भाला,
सीधा सादा मत समझो,
मैं हिंसक भी हूं,
तो मुझे
नानक
कबीर
महावीर
बुद्ध के आदर्श पथ,
अब भी याद है,
लेकिन
मेरे उसूल
अलग सर्वथा भिन्न
मैं
किसी अहिंसा के
पुजारी की
हत्या क्यों करूं ।
किसी अंधे की
लाठी क्यों छीनूं।
लेकिन
बर्दाश्त नहीं होता ,
कोई मुझ पर
उंगली उठाए ।
कोई
मेरे चीथड़े बदन से,
परदा खींचकर
दुनिया को दिखा दे,
या
कोई
मेरे एक गाल पर मारे
तब
चुप नहीं बैठ सकता
कतई नहीं
फिर
मैं भूल जाता हूं
महापुरुषों के आदर्श पथ,
फिर तो
सिर्फ
एक ही रास्ता
याद रह जाता है
चाहे
मेरा खून बहे
या बहाना पड़े …।
उबलता रक्त
नशों में फट पड़ने
बेताब हो जाता
मन में चढ़ी
आदर्श की परत
उतरती जाती
प्याज के छिलकों की तरह
फिर
मैं
मैं नहीं रह जाता,
पूरी तरह
मन की भड़ास निकाल,
शुन्यता से संतप्त हो
अस्तित्वहीन हो जाता हूं
और
खो जाता हूं
पूरी तरह
किसी राहों में नहीं,
विचारों सिद्धान्तों पर नहीं !
हीनताबोध की गहरी खाई में….!
जहां से निकल भी आऊँ
तो
टाल नहीं सकता
अपने जीवन की सच्चाई,
हादसों का सफर कहकर….. ।
कोई माफ नहीं कर सकता,
हजारों जिन्दगी
दहका देने वाले लावों को..।
हवा देने वाले
अफवाहों को …!
हल्की हवा की झोंकों से,
इठलाने वाले,
इधर से उधर
उड़ जाने वाले,
विचारहीन,
अस्तित्वहीन,
अपनी क्षमता
गुण से
अनजान,
घास फूस
कचड़ों पर
आग लगा देने वाले,
सहज सरल
सौम्य दिखने वाले,
कुटिल
चालाक
धूर्त लोगों से
सतर्क रहने की
जरूरत है ।
मैं तो
तथाकथित सत्यवादी
ढोल बजाकर
प्रचार करने वाले
बनावटी अहिंसावादी
सेे ही सतर्क रहता हूँ ।
मुझे
अफवाहों को हवा देने वाले, किसी की जिंदगी
दहका देने वाले ,
बुझते लावों पर
घी डालने वाले,
नासूर जख्मों पर
नमक रगड़ने वालों से
सख्त नफरत है।
जो ठहरा देते हैं
बेकसूर लोगों को
कसूरवार ।
शक जागृत कर
उसे
सत्य साबित करने की
हद तक
प्रचारित कर
मजा लेते रहते हैं ।
ऐसी आग में जले
गुमराह नौजवानों के प्रति
मुझे
गहन सहानुभूति होती है
ना जाने क्यों ?
जब से
इस राह पर आया हूं
ऐसे लोगों से
मेरा रिश्ता हो गया है
वास्ता हो गया है
आखिर हमराह जो हैं
और फिर
मिलकर लड़ने में
हर्ज ही क्या है ?
सुशासन के लिए
कुशासन के खिलाफ
व्यवस्था की नाक पर, अव्यवस्थित जिंदगी,
करेगी तो क्या ?
खाली पीली बैठे रहने से,
बेहतर सोचते हैं,
कुछ तो कर रहे हैं।
…©…
अशोक आकाश
ग्राम कोहंगाटोला, तह. जिला बालोद छ. ग.
मोबाइल नंबर 9755889199
ईमेल ashokakash1967@gmail.com