रोक दो रक्त ताण्डव भाग-6

चम्‍पू काव्‍य:रोक दो रक्त ताण्डव

-डॉ. अशोक आकाश

रोक दो रक्‍त ताण्‍डव’ डॉ. अशोक आकाश की एक चम्‍पू काव्‍य है ।चम्‍पू काव्‍य एक प्राचिन साहित्यिक विधा है इस विधा में मैथलीशरण गुप्‍त ने यशोधरा लिखी है । डॉ; आकाश के इस कृति में प्रदेश, देश और विश्‍व में बढ़ रहे आतंकवादी, हिंसा के घटनाओं के विरुद्ध आवाज बुलंद किया गया है । इस कृति को कडि़यों के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है । प्रस्‍तुत है आज इसकी छठवी कड़ी आशा ही नहीं विश्‍वास हैै सुरता के पाठकों को यह निश्चित ही पसंद आयेगा ।

rok do rakt tandaw
rok do rakt tandaw

(7 )

मैं सफ़र में हूँ,
मुझे रोको मत !
मेरे जलते हुए जख्मों पर
मरहम लगाने के बजाय,
उस पर
अपनी रोटी सेंको मत ,

तुम्हें नहीं मालूम
मैं कब से
बजबजाती नाली में
सड़ रहा हूँ,
यहीं जी रहा हूँ,
यही मर रहा हूंँ।
मेरी तरफ देखने वाला
कोई भी नहीं ।
कई पीढ़ी से
इस्तेमाल कर रहे हैं लोग,
मुझे
कूड़ेदान की तरह ।
कोई भी आता है,
कचड़ा
मुझ पर ही
फेक जाता है
कोई देखता नहीं है,
मुझे इंसान की तरह,
आजाद देश के
नागरिक की तरह,
आम जनता की तरह।
कोई भी नहीं सोचता,
मेरे अधिकार की बात।
मैं डटा रहता हूंँ,
सदैव कर्म पथ पर
कर्तव्य निष्ठ हो,
ईमानदारी के साथ।

जब मेरी उपयोगिता होती,
खास लोगों द्वारा
आम की तरह
चूस लिया जाता
और फेंक दिया जाता हूँ,
गुठलुओं की तरह ।

मैं कठिन परिश्रम कर
उगाता फसल,
बहता अनवरत पसीना,
करता
एक-एक पौधे की सेवा,
सुरक्षा,
बटोरता एक-एक दाना,
करता उसकी पूजा,
क्योंकि
मैं समझता हूंँ,
एक-एक दाने की कीमत।
मैं उगाकर अन्न,
पालता पूरी दुनिया के
सारे प्राणियों को।
अन्नदाता होकर भी,
सोता हूंँ भूखा,
रहता हूँ
एक -एक दाना
एक-एक रुपये के लिये
मोहताज ।

नहीं पहन पाता
अच्छे कपड़े
नहीं दे पाता
बच्चों को चॉकलेट
नहीं सिला पाता ,
पत्नी के लिए ब्लाउज ,
नहीं खा पाता ,
घी-रोटी,
पूरी नहीं कर पाता,
बच्चों की ख्वाहिशें।

अच्छे कपड़े
अच्छे घर
ऊँची पढ़ाई,
अच्छा भोजन,
नहीं देख पाता,
मखमली गद्दों का
दिवा-स्वप्न।

जो खरीदते हैं,
अपनी जूते से रगड़ कर,
मेरी अन्न माता को ,
वह बन जाता धन कुबेर,
कुछ ही दिनों में,
कैसे ..?
जो उगाते अन्न,
कर्ज तले आजीवन
दबा कुचला जाता ,
जीते पशुवत् जीवन,
क्यों ?
कोई सोचता है
इनकी
बदतर जिन्दगी पर,
कोई उठा सकता है
इस राज से पर्दा ।

दलालों के निर्देश पर
सरकार बनाती नई योजना,
ज्यादा से ज्यादा कर्ज देकर,
उच्चतम लाभ की
नई फसल का
दिवास्वप्न दिखा,
लक्ष्य पूरा करने
अधिकारियों के लिए
रख देते ईनाम ।
सीधे सादे किसान
फँस जाते चक्रव्यूह में ।
साधनहीन,
नई फसल के प्रति
अनुभव हीन,
उच्च अधिकारियों द्वारा दिखाये
स्वर्णिम भविष्य के
सपनों के झांसे में आ
कर्ज के भँवर में
डूब जाते ।

अधिकारी कर्मचारियों को
मिल जाता
लक्ष्य पूरा करने का ईनाम, बहुराष्ट्रीय कंपनियों की
बिक जाती रासायनिक खाद, बीज,
उपकरण,
रासायनिक दवाइयाँ,
बैंकों का
ज्यादा से ज्यादा कर्ज
वितरण का लक्ष्य
हो जाता पूरा
और बिक जाती
किसानों की जमीन ।

नहीं मिल पता
नयी फसल पर
अनुभवहीनता के कारण
उचित पैदावार,
नहीं मिल पाता बाजार,
उचित मूल्य,
टूट जाते स्वर्णिम सपने,
और बिक जाती
किसानों की जमीनें।
मजबूर हो जाता
खून का आँसू पीने,
घुट घुट कर रह जाती
उसकी आहें।
कड़े परिश्रम कर
उगी फसल से
लागत तक
वापस नहीं होती
और कर्ज में
आकंठ डूबे किसान,
पुरखों की कडी़ मेहनत से
बनायी धरती बेच
करता ऋण की भरपाई।

कोई समझ सकता है
उस किसान की
नम आँखों में तैर रही पीड़ा
टूट कर चूर-चूर हुए
उनके सपनों को,
गाड़ी कमाई से बनी
जमीन से
बिछड़ने के दुख को।

अंधों की लाठी की तरह
होती है
किसानों के लिए
उसकी जमीन।
——*——
डॉ.अशोक आकाश
9755889199

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *