चम्पू काव्य:रोक दो रक्त ताण्डव
-डॉ. अशोक आकाश
‘रोक दो रक्त ताण्डव’ डॉ. अशोक आकाश की एक चम्पू काव्य है ।चम्पू काव्य एक प्राचिन साहित्यिक विधा है इस विधा में मैथलीशरण गुप्त ने यशोधर लिखी है । डॉ; आकाश के इस कृति में प्रदेश, देश और विश्व में बढ़ रहे आतंकवादी, हिंसा के घटनाओं के विरुद्ध आवाज बुलंद किया गया है । इस कृति को कडि़यों के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है । प्रस्तुत है आज इसकी तीसरी कड़ी आशा ही नहीं विश्वास हैै सुरता के पाठकों को यह निश्चित ही पसंद आयेगा ।
भाग-3
(4)
मैं सफर में हूं,
चल रहा हूं
लंगड़ा कर,
पहाड़ों की
भटकती पगडंडियों में ।
नहीं दिखा सकता,
पैरों की बिवाईयां!
निर्मम ठूंठ
कांटों से
लहूलुहान पैर,
प्राण बचाते
भागते
पत्थर
पेड़
खोह में सोते,
सपने हो गए
स्वतंत्रता।
डर,
खौफ के साए में
व्यतीत होता
पल पल।
कभी सोचता
ऐसा कर्म करूं,
सारी धरती के लोग
मुझसे प्रेरणा ले।
मेरा हर कर्म
अनुकरणीय हो,
मुझे जन्म देने वाली
जननी
धन्य हो जाए।
मातृभूमि की
कीर्ति
मुझसे और उज्जवल हो।
मित्र,
मेरा सानिध्य पाकर
धन्यता ज्ञापित करें।
गुरुजन,
गौरव अनुभूति करें।
पिता,
पितृत्व के
अहम् एहसास से
मदमस्त हो जाए।
खुशियों से
छलछलाता,
अमित प्रेम का
सफर,
चिरकाल तक
चलता रहे।
सामान्य जन से
हटकर,
कुछ अलग
करने की
तड़प में,
कुछ गलती
कर बैठने का
डर,
सहमा देता था।
आज
वक्त के
निर्मम थपेड़ों ने,
बना दिया मुझे,
बेरहम नाथूराम।
जो लील गया,
सैकड़ों
अहिंसक बापू की
जिंदगी।
टूट कर
चूर-चूर हो,
अपने अस्तित्व को
रो रही
उसकी लाठी।
दुष्कर्म को
प्रेरित कर रहे,
दिशाहीन,
पथभ्रष्ट
बापू के
तीनों बंदर।
लोहा से लोहा काटने,
कील से कील निकालने,
हिंसा से,
हिंसा कुचलने,
मजबूर हो गया
गांधी जी के
देश के
वीर सिपाही।
अपनी
प्राण रक्षा
के लिए
आतुर,
डरे,
सहमे
यह लोग,
हो गए हैं
इतने निर्मम,
कि कुचल देना चाहते हैं,
बेकसूर लोगों की
जिंदगी।
और
हिंसा के दम पर,
प्राप्त कर लेना
चाहते हैं।
जनता को,
मूक कर देने का
सामर्थ।
सीधे सादे
लोगों पर,
अपनी शक्ति के
साम्राज्य की,
नींव
रख देना
चाहते हैं।
अहिंसक लोगों पर,
हिंसक लोगों का,
हिंसा के दम पर,
शासन करना चाहते हैं।
बापू की लाठी
टूट कर
बिखर न जाए,
बापू की टोपी
चिथड़े होकर
छितर न जाए,
बापू के आदर्शो की
कोई उपहास ना उड़ाए,
चौक में खड़ा पुतला,
चित्कार चित्कार कर
कह रहा है,
बापू की लाठी
किसी पर
बरसाने के लिए नहीं है।
चौराहे पर खड़ा
अस्थि पंजर युक्त
बापू का पुतला,
किसी दिन विशेष पर
सिर्फ
फूल माला
चढ़ाने के लिए ही
नहीं है।
उनके आदर्श पथ,
रोज कुछ पग
चलने का
संकल्प लेने के लिए है।
बापू के
हाथों की गीता
सिर्फ
बेगुनाही साबित करने
शपथ लेने
या किसी को
गुनहगार
ठहरा देने के लिए ही
नहीं है।
राष्ट्रपिता के
अनमोल वचन
दीवार पर सजाने वालों,
बापू के
अनमोल सिद्धांतों की
हंसी उड़ाने वालों,
जरा कुछ दिन
इन सिद्धांतों पर
चलकर देखो।
मुफ्त में मिले
स्वराज का,
स्वछतापूर्वक
उपभोग करने वालों,
जरा कुछ दिन
सुखों का
परित्याग करके देखो।
आधुनिकता की
चकाचौंध में
जीने वाले,
सुविधाभोगी लोगों,
एक दिन,
सिर्फ एक दिन,
इन बीहड़ों में
आकर देखो।
प्रभु श्री राम
और माता सीता की
तपःस्थली में,
पावन वनःस्थली में,
दुखों के अंबार हैं ।
शहरों के
वातानुकूलित कक्ष में
निवासरत संतों,
इन बीहड़ों में
तुम्हें
सुख रुपी भगवान
कहां प्राप्त होंगे ।
तुम तो वहीं रहो,
और
हमारे बीहड़ को
बीहड़ ही रहने दो!
—©—
-अशोक आकाश
कोहंगाटोला,बालोद
छत्तीसगढ़ ४९१२२६
मोबाइल नंबर ९७५५८८९१९९
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