सद्चरित्र की कुण्डलियां
-हरिश पटेल ‘हर’
सद्चरित्र की कुण्डलियां

सद्चरित्र की कुण्डलियां
सद्चरित्र की कुण्डलियां
1. मन में
मन में हो छल -छिद्र तो, हो गुणहीन शरीर ।
छेद घड़े में हो अगर, तो बह जाता नीर।।
तो बह जाता नीर , भला उसका न होता।
जो भी उसके हाथ, उसे वह जल्दी खोता।।
”हरिहर” करे गुहार, कभी भी निज जीवन में
कपट पाप का पुंज, इसे मत रखना मन में ।।
2. श्रम
जिसने पाया फूल है, उसने झेला खार ।
किसे मुफ्त में है मिला, खुशियों का संसार।।
खुशियों का संसार, बसे हो कड़ा परिश्रम,
तब चमकेगी बन्धु,यहाँ किस्मत यह हरदम ।।
कहता सत्य हरीश, यहाँ सब पाया उसने,
कड़ा बड़ा श्रमदान , किया है जग में जिसने।।
3. गुरू
जैसे सीढ़ी के बिना, छत जा पाए कौन ।
वैसे गुरुवर के बिना, ईश दिखाए कौन ।।
ईश दिखाए कौन, कौन रस्ता बतलाए।
कौन करे उद्धार, पार नैया ले जाए ।।
उत्तर एक हरीश, बताता सुन लो ऐसे,
नहीं करे भवपार, कोउ गुरुवर के जैसे।।
4. कठिन परिश्रम
कठिन परिश्रम के बिना,क्या पाओगे पार।
चढ़ा कौन नभ में यहाँ, पकड़े वर्षा धार ।।
पकड़े वर्षा धार, नहीं नभ में पहुँचोगे ।
बह जाओगे मीत, स्वयं को धोखा दोगे।।
कहता सत्य हरीश , लगा दो पूरा दम खम।
सहज मिले तब लक्ष्य, करो तुम कठिन परिश्रम।।
5. मानव
मानव ! “हरिहर” कह रहा, सुनो लगाकर कान।
जैसा माँ का आचरण, वैसी ही संतान ।।
वैसी ही संतान , राम थे कौशल्या के।
मुरलीधर – गोपाल, देवकी सी मैय्या के ।।
पले कैकसी गर्भ, दशाशन जैसा दानव ।
जैसा जननी – कर्म, हुआ वैसा ही मानव ।।
6. उपवास
बतलाते हैं आपको,क्या है यह उपवास।
मन को रखना एक दिन, हरि चरणों के पास।।
हरि चरणों के पास, न भटके इधर – उधर मन,
सारे झंझट भूल, लगा हो भजनों मे तन ।
रखे हरीश परहेज, एक दिन जो न खाते ।
लोग उसे उपवास, आजकल हैं बतलाते ।।
7. सज्जन
सज्जन गण ऐसे रहे, आसपास जब नीच।
सुरभित होता जिस तरह, कमल कीच के बीच।।
कमल कीच के बीच, रहे पर, रहे अछूता ।
संगति दुर्जन – संग, रही है पाप – प्रसूता ।
कहता सत्य हरीश, हुआ उसका ही पूजन,
जो प्रह्लाद समान, असुर होकर भी सज्जन।।
8. पावन कर्म
सब बन जाएँ आपके, सहज हितैषी मीत।
मनसा,वाचा, कर्मणा, करें सभी से प्रीत।।
करें सभी से प्रीत, मीत, हो या हो दुश्मन ,
छोड़े सभी प्रपंच, तभी यह स्वच्छ रहे मन।।
कहता सत्य हरीश, परम सुख मिला हमें तब,
जब पावन हो कर्म, टली विपदाएँ हैं सब ।।
9. अभिमान तज
हरिहर ये अभिमान है, महापाप का अंश।
इसने देखो खा लिया, रावण-कौरव-कंस।।
रावण-कौरव- कंस, प्रतापी थे ये भारी ।
मगर हुआ था गर्व, बने थे अत्याचारी ।।
हरि ने कर संहार, दिया था दंड -भयंकर ।
अतः कभी अभिमान, नहीं करना है “हरिहर”।।
10. मानव धर्म
मन में एक सवाल जो, चुभता कील समान।
इंसानों के देश में, हैं कितने इंसान ?
हैं कितने इंसान, निभाते निज कर्मों को।
माने मानव धर्म, करे जो सत्कर्मों को ।।
कहता सत्य हरीश, नहीं बाकी अब सज्जन।
तन से दिखे मनुष्य, मगर कुछ और कहे मन ।।
11. भज रघुवीर
जैसे प्रियतम के बिना, होती विरहा पीर ।
उतनी पीड़ा में यहाँ, मिल जाए रघुवीर।।
मिल जाए रघुवीर, मिले जैसे तुलसी को ,
माँ मीरा, रसखान, मिले जैसे नरसी को।।
भजते चलो हरीश, छोड़कर सबकुछ ऐसे,
कानन में ध्रुव लाल, चले थे पाने जैसे ।।
12. चलें राम की राह
हो जाता जीवन सफल, मिट जाती हर चाह।
एक प्रतिशत भी अगर, चलें राम की राह।।
चलें राम की राह, कठिन तो होगा चलना,
लेकिन प्रभु को याद, सदा ही करते रहना।
प्रभु लीला में ध्यान, करे वह सबकुछ पाता।
छोड़ जगत की चाह, अलौकिक वो हो जाता।।
13. निज दोष पहचानों
दोष पराया खोजने, मत निकलो तुम रोज।
अपने अंदर की कमीं, और स्वयं को खोज।।
और स्वयं को खोज, कौन हो तुम यह जानों,
क्या तेरा अस्तित्व, धरा में तुम पहिचानो।।
कहता सत्य हरीश, कहो उसने क्या पाया।
जिसने खोजा खूब, सदा ही दोष पराया।।
14. राजनीति के रंग
होते विविध प्रकार के, राजनीति के रंग।
पतिव्रता ना हो सकी, कभी किसी के संग।।
कभी किसी के संग, रहे तो उसे उठाए ।
कुर्सी से क्या लाभ, जगत को यह दिखलाए ।।
इसमें लिप्त हरीश, सदा ही अपयश ढोते ।
राजनीति में कौन, कहो जो निर्मल होते।।
15. जीवन संघर्ष
करता जो जितना यहाँ, जीवन में संघर्ष ।
होता है उसका सदा, उतना ही उत्कर्ष।।
उतना ही उत्कर्ष, हर्ष – मय जीवन जीता।
वरना हो संसार, सदा खुशियों से रीता ।।
कहता सत्य हरीश, सजग वह हरदम रहता,
रहता मल – मल हाथ, अगोरा जो है करता ।।
16. सुजान
पाकर जीवन लक्ष्य को, रहता सरल सुजान।
सही मायने में सफल, होता वह इंसान ।।
होता वह इंसान, मान जो सबका रखता।
नहीं करे जो गर्व, मधुर फल वह ही चखता।।
‘हर’ साधन, हर चीज, हमें देते हैं ईश्वर ।
फिर क्यों है अभिमान, मान थोड़ा – सा पाकर ।।
17. मेरी मातृभूमि
बसता हूँ जिस भूमि पर, पावन है वो ठौर,
सभ्य,पुरातन,संस्कृति, चलें वेद की ओर।।
चलें वेद की ओर, नहीं है और ठिकाना,
प्राची है समृद्ध, कहीं फिर क्यों है जाना
अपनी धरती जान, यहीं तो मन है रमता
अपना तो “हर” श्वास, हिन्द में ही है बसता ।।
18. संघर्ष
संघर्षों का तेज ले, चमकें सूर्य स्वरूप ।
यश भी फैले आपका, जैसे फैली धूप ।।
जैसे फैली धूप, भरे ऊर्जा से तन को ।
उसी तरह से ज्ञान, करे ऊर्जायुत मन को ।।
कहता सत्य हरीश, यशस्वी उत्कर्षो का,
जीवन में हो योग, मिले फल संघर्षों का ।।
19. पठन-चिंतन
पढ़ लें पहले हम यहाँ, जीवन का अध्याय।
लेखन करना बाद में, पहले हो स्वाध्याय ।।
पहले हो स्वाध्याय, मनन हो,उसका चिंतन।
अनुभव का ले सार, विचारों का हो मंथन।।
कहता सत्य हरीश, सभी यह आदत गढ़ लें।
लेखन का दायित्व, बड़ा है, पहले पढ़ लें ।
20. अर्जुन जैसा ध्यान
अर्जुन जैसी सोच हो, अर्जुन जैसा ध्यान ।
जीवन रथ के सारथी, बन जाते भगवान।।
बन जाते भगवान, ध्यान भक्तों का रखते,
जीवन रथ की डोर, छोर को पकड़े रहते ।।
कृष्ण सारथी साथ, कृपा हम पर हो ऐसी,
बन जाए यह सोच, हमारी अर्जुन जैसी ।।
सद्चरित्र की कुण्डलियां
21. साहित्य
त्रिभुवन को जैसे करे, आलोकित आदित्य ।
वैसे करे समाज को, आलोकित साहित्य ।।
आलोकित साहित्य, मिटाए तमस अंधेरा ।
जड़ता औ अज्ञान, हटा कर करे सवेरा ।।
कहता सत्य हरीश, ज्ञान से तन – मन- पावन,
पढ़कर के साहित्य, जानिए क्या है त्रिभुवन ।।
22. करें सभी से प्रीत
बन जाएँ सब आपके, सहज हितैषी मीत।
मनसा,वाचा, कर्मणा, करें सभी से प्रीत।।
करें सभी से प्रीत, न किंचित छल कर भाई,
मन विचार हो शुद्ध, सत्य से रखें मिताई ।
कहता यही हरीश, असीमित सुख तब पाएँ,
जब हो सबसे प्रेम, सभी अपने बन जाएँ ।।
23. माया
माया मय संसार में, माया मय इंसान ।
माया को ही पूजता, जैसे हो भगवान।।
जैसे हो भगवान, आचरण करता अब नर,
पाकर- विद्या- धान्य, गर्व से चले उचककर ।
कहता यही हरीश, प्रभो को है बिसराया,
जो है सबका मूल, भूल नर रटता माया ।।
24. हे गिरधर गोपाल
मेरी ओर निहारिए, हे गिरधर गोपाल।
जग के बंधन में फँसा, मेंटो यह जंजाल।।
मेंटों यह जंजाल, हाल है मेरा कैसा,
पकड़ा मूषक – व्याल, काल ने पकड़ा वैसा।।
विनती करे हरीश, ईश इक आशा तेरी ।
मुरलीधर गोपाल, हरो हर बाधा मेरी ।।
25. राम चरण पर प्रीत
मन में दुविधा क्यों रखें, क्यों बहकाएं माथ।
नाम सिया पति का रटें, रहे साथ रघुनाथ ।
रहे साथ रघुनाथ, हाथ सिर पर रखते हैं।
महामंत्र यह नाम, राम का सब कहते हैं।
समझा यही हरीश, व्यर्थ है तब तक जीवन ।
जब तक के श्री राम, चरण में लगा न हो मन।।
26. क्षमाशील रघुवीर
शरणागत वत्सल प्रभो, क्षमाशील रघुवीर ।
जो प्राणी सब भूल कर, आया इनके तीर ।
आया इनके तीर, कृपा की दृष्टि दिखाई ।
उनका सारा कष्ट, हरेंगे बस रघुराई ।।
शबरी-जलधि- सुग्रीव, विभीषण से सब अवगत।
अंगद- नल-हनुमान, हुए जिनके शरणागत ।।
27. सबके अपने राम
आ जाते हैं प्रेम में, करिए बस आह्वान।
जैसी जिसकी भावना, वैसे ही भगवान ।।
वैसे ही भगवान, बने बेटा दशरथ के,
वो विपिनों के हेतु, हुए राही वन पथ के ।।
समझो तथ्य हरीश, सभी किरदार निभाते,
सबके अपने राम, बुलाओ तो आ जाते ।।
28. मन में रखो राम
बसते हैं सबके हृदय, रावण औ श्री राम।
जिसकी सेवा जो करे,वैसा उसका काम।।
वैसा उसका काम, विचारों की है महिमा,
जैसे रहे विचार, वही जीवन की प्रतिमा।
कहता सत्य हरीश, कभी भव में न फँसते।
जिनके अन्दर राम, विचारों में हैं बसते ।।
29. जन-जन के प्रिय राम
जिनके भीतर त्याग की, प्रतिमा है प्रत्यक्ष ।
चक्रव्रती का राज भी, छोड़ा वचन समक्ष ।।
छोड़ा वचन समक्ष, पक्ष वे सच का लेते ।
जन-जन के प्रिय राम, आसरा सबको देते।।
वे ही सत्य हरीश, ईश हैं वो इस जग के ।
धर्म – धनुष का तीर, सजा है कर में जिनके।।
30. मानव का आदर्श-राम
आदर्शों का मेल है, एक शब्द यह राम ।
पर कैसे कुछ हो गए, इसी राम से वाम ।।
इसी राम से वाम, हुए और भटक रहे हैं ।
माँगे ठोस प्रमाण, राम को झूठ कहे हैं।।
कहता तथ्य हरीश, सत्य के स्पर्शों का,
त्रिभुवन में श्री राम, बिम्ब है आदर्शों का ।।
31. गुरू कृपा
गुरुवर दिनकर ज्ञान के, माप न सकते ताप।
घोर निराशा का तिमिर, मिट जाए चुपचाप।।
मिट जाए चुपचाप, आप हैं क्या बतलाते ।
निज स्वरूप का ज्ञान, सदा गुरुवर करवाते।।
गुरू कृपा से आज, अकिंचन लिखता हरिहर।
सदा दया की छाँव, बनाए रखना गुरुवर ।।
32. बने सीता हर नारी
नारी– भूषण जो सती,सीता जिनका नाम ।
जिनको कहते हैं यहाँ, प्राणों से प्रिय राम।।
प्राणों से प्रिय राम, रमा वह लक्ष्मी माता ।
जिनकी महिमा शास्त्र, वेद अउ जग है गाता।।
जाने सत्य हरीश, शक्ति की महिमा भारी ।
जग बन जाए स्वर्ग, बने सीता हर नारी ।।
33. अहं भयंकर काल
रावण से कुछ सीखिए, जो हैं चतुर सुजान ।
कैसे बना विनाश का,कारण बल- अभिमान।।
कारण बल- अभिमान, हुआ संहारक उसका,
हुई भयानक मौत, काल था सेवक जिसका।।
समझो मूढ़ हरीश, दर्प का करो निवारण ।
अहं भयंकर काल, यही बतलाता रावण ।।
34. भरत-सा भाई चारा
सारा जग है जानता, दशरथ सुत थे चार ।
उन सबमें था भरत का, बहुत बड़ा किरदार।।
बहुत बड़ा किरदार, धर्म के बड़े धुरंधर ।।
सदा बसे हो आप, राम के हिय के अंदर।।
देखा नहीं हरीश, भरत-सा भाई चारा ।
भाई के हित बैर, रखे यह जग तो सारा ।।
35. लक्ष्मण-सा भाई बनें
जब भी उठता प्रश्न यह, भाई कौन महान।
तब लक्ष्मण के नाम को, लेता सदा जहान।।
लेता सदा जहान, राम की छाया बनकर।
चले संग श्री राम, राम ही सबसे बढ़कर ।।
मातु-पिता सिय राम, हरिश लक्ष्मण के थे सब।
बने सदा वे ढाल, भ्रात थे विपदा में जब ।।
36. दशरथ की राम प्रीति
दशरथ पद की वंदना, करता बारम्बार ।
नारायण जिनके यहाँ, लिए मनुज अवतार।।
लिए मनुज अवतार, तपस्या की थी भारी।
और किया था यज्ञ, तभी आए भयहारी ।।
पृथक हुए जब राम, रुका तब जीवन का रथ।
इतना प्रभु से प्रेम, किया करते थे दशरथ ।।
37. माँ कौशल्या
कौशल्या पद पूजिए, थीं हरिभक्त महान ।
जिनके पलने में झूले, लक्ष्मी के श्रीमान ।।
लक्ष्मी के श्रीमान, मानते माता जिनको ।
अति ममत्व वात्सल्य, राम जी से था उनको।।
वंदन करे हरीश, अवध की भी थी मइया ।
किया तपोव्रत खूब, बनी फिर माँ कौशल्या ।।
38. मातु सुमित्रा
मातु सुमित्रा की तरह, नहीं यहाँ पर नार ।
जिसने लक्ष्मण से कहा,राम तेरा संसार ।।
राम तेरा संसार , काम तुम इनके आओ ।
पुत्र ! पिता हैं राम, सिया को मातु बुलाओ ।।
वंदन करे हरीश, प्रेम की छवि पवित्रा ।
लखन बनायो पूज्य, जगत में मातु सुमित्रा ।।
39. माता कैकयी
जिनको माता मानते, सदा सदा रघुनाथ ।
परम् पूज्य माँ कैकयी, तुम्हें नवाऊँ माथ।।
तुम्हें नवाऊँ माथ, प्रेम की पावन प्रतिमा ।
जिसे कहे रघुनाथ, तुम्हीं असली मेरी माँ।।
नाहक विश्व हरीश, कलंकित कहता उनको,
बड़े प्रेम से मातु !, राम कहते थे जिनको ।।
40. रिपुदमन
छोटे सबसे थे मगर, परम प्रतापी वीर ।
सबके प्यारे रिपुदमन, जो रघुवर के बीर ।।
जो रघुवर के बीर, लवण दानव को मारा ।
किए संत भय मुक्त, सभी का बने सहारा।।
वंदन करे हरीश,प्रीत थी अधिक भरत से।
भरत-लखन-प्रभु राम, आप हैं छोटे सबसे।।
41. भक्त राज हनुमान
भाई भरत सम जानकर, किए प्रेम भगवान ।
बलशाली , विद्वान हैं, भक्त राज हनुमान ।।
भक्त राज हनुमान, मिलाते हैं राघव से ।
मंगल करते आप, कह रहा हूँ अनुभव से ।।
जग में कितने देव, हरीश तुम सा न सहाई,
संकट मोचक आप, तभी प्रभु कहते भाई ।।
सद्चरित्र की कुण्डलियां-
– हरीश पटेल “हर”
ग्राम – तोरन, (थान खम्हरिया)
बेमेतरा।।,