श्रृंगार गीत:सजनी तेरे प्‍यार का-रमेश चौहान

श्रृंगार गीत:सजनी तेरे प्‍यार का मोल नहीं संसार में

-रमेश चौहान

श्रृंगार गीत:सजनी तेरे प्‍यार का-रमेश चौहान
श्रृंगार गीत:सजनी तेरे प्‍यार का-रमेश चौहान

श्रृंगार गीत:सजनी तेरे प्‍यार का मोल नहीं संसार में

सजनी तेरे प्यार का मोल नहीं संसार में (उल्‍लाला छंद)-

आज करवा चौथ पर अपनी अर्धांगिनी के प्रति उद्गार-

सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।
जिनगी तेरी खप गई, केवल मेरे प्यार में ।।

जब से आई ब्याह कर, मुझ पर मरती रह गई।
जीवन कष्टों को प्रिये, हॅंसते -हॅंसते सह गई ।।
शक्कर जैसे घुल गई, तू मेरे परिवार में ।
सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।।

भोर भये से रात तक, कारज तेरा एक है ।
घर यह मेरा घर रहे, चाहत तेरी नेक है ।।
सास-ससुर भी तृप्त हो, मेरे इस घर-द्वार में ।
सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।।

देवर तेरे बंधु सम, और देवरानी बहन ।
हिलमिल रहती साथ में, ज्यों माला की हो सुमन ।।
टूटे बिखरे तुम नहीं, नाहक के तकरार में ।
सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।।

बच्चों का पालन किए, ज्यों जीवन का खेल हो ।
काम किए ऐसे प्रिये, नातों का खुद मेल हो ।।
तेरे सोच विचार से, सभी गुॅंथे संस्कार में ।
सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।।

अपनी बातें क्या कहूॅं, मैं तो तेरा प्राण हूॅं ।
जीवन के दुष्कर डगर, हँसी खुशी का तान हूॅं ।।
ऐसा कहती मौन हो, अँखियों के सत्कार में ।
सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।।

मेरे प्रति उपवास है, श्रद्धा और विश्वास से ।
करे कामना एक ही, जीवन भरे उजास से ।।
प्रेम छोड़ कर कुछ नहीं, देने को उपहार में ।
सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।।

सजनी तेरे प्यार का, मोल नहीं संसार में ।
जिनगी तेरी खप गई, केवल मेरे प्यार में ।।

प्राण सम सजनी (चोका)

.चारू चरण
चारण बनकर
श्रृंगार रस
छेड़ती पद चाप
नुुपूर बोल
वह लाजवंती है
संदेश देती
पैर की लाली
पथ चिन्ह गढ़ती
उन्मुक्त ध्वनि
कमरबंध बोले
लचके होले
होले सुघ्घड़ चाल
रति लजावे
चुड़ी कंगन हाथ,
हथेली लाली
मेहंदी मुखरित
स्वर्ण माणिक
ग्रीवा करे चुम्बन
धड़की छाती
झुमती बाला कान
उभरी लट
मांगमोती ललाट
भौहे मध्य टिकली
झपकती पलके
नथुली नाक
हँसी उभरे गाल
ओष्ठ गुलाबी
चंचल चितवन
गोरा बदन
श्वेत निर्मल मन
मेरे अंतस
छेड़ती है रागनी
प्राण सम सजनी ।।

-रमेश चौहान

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3 thoughts on “श्रृंगार गीत:सजनी तेरे प्‍यार का-रमेश चौहान

  1. इससे बेहतर ना लिखा जा सकता है ना कहा जा सकता है…..
    मन के कोमल उद्गार ऐसे लग रहे हैं जैसे सुवासित शब्द माल अवगुंठित हुए हैं प्रेमातिरेक हो ….
    भाव अभिव्यक्ति की सुंदरता और प्रेमाभिव्यत्ति का इससे सशक्त माध्यम भला और क्या हो सकते हैं ।

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