बालोद के विश्व विख्यात अजीमोशान शायर- सलीम अहमद जख्मी बालोदवी

मोम जैसा दिल नहीं ,पत्थर कलेजा भी नहीं।
आदमी हूँ आदमी जैसा फरिश्ता भी नहीं।।
देख कर तस्वीर मेरी ,तू मेरी सूरत ना देख,
अब कहाँ पहले सा मैं ,पहले सा वो चेहरा नहीं।।

      वनों और तालाबों से आच्छादित बालोद में पहले पहल शायरी और शेरो सुखन की बुनियाद उर्दू अदब के मशहूर शायर जनाब सलीम अहमद जख्मी बालोदवी  ने डाली है। इतिहास के जानकार अरमान अश्क के अनुसार हिंदुस्तान के मशहूर शायर मौलाना खुदा बख्श के बेटे सलीम अहमद जख्मी की पैदाइश सन 1918 में नागपुर (महाराष्ट्र ) में हुई थी। ये शौकिया तौर पे शायरी के मुरीद थे जो इन्हें अपने अब्बा से विरासत में मिली थी । नागपुर में छठवीं जमात पढ़ने के साथ-साथ उर्दू ,अरबी ,फारसी की तालीम हासिल कर 18 बरस की उम्र में आप बालोद आकर यही रच बस गए । आज का बालोद तब तो एक छोटा सा कस्बा ही था । शेरो शायरी, साहित्य सृजन का वातावरण लगभग शून्य ही था । जख्मी साहब ने छत्तीसगढ़ के इस अनजान क्षेत्र को अपनाया और साहित्य की शून्यता को शायरी के पेचो खम से भरने लगे । अपने उस्ताद सैयद अबुल हसन नातिक गुलावटी जो कि दाग देहलवी के शागिर्द और भारत के नामवर शायर थे उनसे शायरी सीखते और लोगों को सिखाते भी थे । यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के अलावा पूरे भारत में आपके कई शागिर्द  उर्दू ,अरबी ,फारसी में नज़्म ,नात,शेरो शायरी की खिदमत कर रहे हैं। 

    बालोद जैसे छोटे शहर में ऐसे महान सख्शियत का होना हम सबके लिये गर्व की बात है और उससे भी बड़ी बात यह है कि मुझे उनका सानिध्य मिला। सन् 1991 में बालोद के गॉंधी भवन में सलीम अहमद जख्मी सम्मान समारोह में शामिल होने का मुझे सुअवसर मिला यह आयोजन जन नाट्य संघ इप्टा द्वारा आयोजित था जिसका मकसद सलीम अहमद जख्मी का सम्मान, उनकी गजलों का गायन एवं काव्य पाठ था। मुझे उनके साथ मंच में बैठने का सुअवसर मिला था। इस मंच में विसम्भर यादव मरहा, लोकेन्द्र यादव,  बाबूलाल टॉंक,  हामिद सिद्दिकी, नेतराम निषादराज, अरमान अश्क, गणेश यदु, हेमलाल साहू निर्मोही, बंशीलाल भरद्वाज, भगवताचार्य नारायण प्रसाद पाण्डेय, गुरूजी अमृत दास दास, डॉ.कीर्ति कुमार चन्द्राकर, जगेन्द्र भारती, बंशीलाल जैन, मोहन लाल साहू, उबेद पटेल, शोभित राम ध्रुवे, सुबोध शर्मा, प्रदीप पाण्डेय ललकार आदि उपस्थित थे। यह कार्यक्रम सलीम अहमद जख्मी जी को समर्पित था। जगेन्द्र भारती और डॉ.कीर्तिकुमार देशमुख ने उनकी गजल से माहौल ही बना दिया था। भगवताचार्य नारायण प्रसाद पाण्डेय एवं समाजसेवी गुरूजी अमृत दास दास, बंशीलाल भरद्वाज का सम्मान भी इसी मंच  में किया गया था। खुद जख्मी साहब ने नज्म से कार्यक्रम का शुभारंभ किया था और लोकेन्द्र यादव पर लिखित गजल पढ़कर समापन करते लोकेन्द्र यादव के विधायक बनने की भविष्यवाणी की थी जो सात साल बाद सही साबित हुई। कार्यक्रम के द्वितीय सत्र कविसम्मेलन में उपस्थित  सभी कवियों का काव्यपाठ हुआ जिसमें मैने अपनी कविता पाठ किया था। वैसे उस्ताद शायर जख्मी साहब महज उर्दू अरबी और फारसी में ही नहीं लिखते थे उनकी कुछ गजलें हिंदी में भी आई हैं। 

सुख का गोरी नाम ना लेना ,दुख ही दुख है गाँव में।
प्रीत का काँटा मन में चुभेगा खेत का काँटा पाँव में।।

कब से जटा बिखेरे एक पॉंव पे खड़ा है,
गॉंव का बूढ़ा बरगद साधू नहीं तो क्या

1991 में ही मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य समिति के साहित्यकारों द्वारा सलीम अहमद जख्मी को सम्मानित करने कार्यक्रम का आयोजन करने बालोद आगमन हुआ। उस समय बालोद का गॉंधी भवन ही विभिन्न कार्यक्रमों का केन्द्रबिन्दु रहता था। उक्त कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार ललित सुरजन के हाथों “जख्मी” जी का सम्मान हुआ। मुकीम भारती, त्रिभवन पाण्डेय, लोक बाबू, लोकेन्द्र यादव, अरमान अश्क,सहित स्थानीय साहित्यकार एवं नागरिक उपस्थित रहे। यह गरिमामय आयोजन चर्चा का केन्द्र बिन्दु रहा।

     जख्मी जी की जिन्दगी पर लिखते मुझे बड़े दुःख सके साथ यह लिखना पड़ रहा है कि जख्मी साहब की एक भी किताब उनके जीते जी छप नहीं पाई। अरमान अश्क, लोकबाबू और लोकेन्द्र यादव के प्रयास से उनकी गजलों को बहुत छोटे आकार में प्रकाशित किया जा सका। सलीम अहमद जख्मी जी के निवास गॉंधी भवन के पास स्थित घर में मैं उनसे मिलने कई बार गया। तब जख्मी साहब इशारे से मुझे दिखाते थे कि कैसे उसकी पूरी जिन्दगी भर लिखी गई नज्में गजलें सीढ़ी के नीचे पड़ी हुई हैं। मैने देखा उसकी भाषा मेरेे समझ से बाहर की थी। उर्दू फारसी अरबी भाषा में लिखी कापियाँ और पन्ने बेतरतीब पड़े थे। उसको उसके ही परिवार से इतनी साहित्यिक अवहेलना मिली जो शायद ही किसी साहित्यकार को मिली होगी। सम्मान तो भरपूर करते थे लेकिन उनके साहित्य की कभी कद्र नहीं की गई। 
     उर्दू अदब अरबी और फारसी भाषा साहित्य लेखन करने वाले इस उम्दा शायर की मौत पर साहित्य जगत में खलबली मच गई लेकिन उसके परिवार में इतने बड़े शायर के ताउम्र लिखी गई साहित्य की कोई कद्र नहीं की गई इसका मुझे ताउम्र अफसोस रहेगा। 
      गॉंधी भवन के पास जमजम कार्नर नाम से उनके द्वारा प्रारम्भ की गई मनिहारी सामान एवं चूड़ी कंगन की दुकान बहुमंजिली इमारत के रूप में आज भी बालोद के नजीम शायर जनाब सलीम अहमद 'जख्मी' की कहानी बयॉं करता है। 

डॉ.अशोक आकाश
कोहंगाटोला बालोद
9755889199

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