
छत्तीसगढ़ का कोरबा — एक ऐसा शहर जो अपनी भौगोलिक सुंदरता और औद्योगिक शोर के बीच सांस लेता है।
दिन में यहाँ मशीनों की गूंज रहती है, और रात में हवा में जंगलों की नमी घुली होती है।
यहाँ सब कुछ सामान्य था, जब तक एक रात शहर के बाहरी इलाके से उठती नीली रोशनी ने लोगों को चौंका नहीं दिया।
कुछ ने कहा — “शायद ट्रांसफार्मर फट गया।”
पर असल में वह रोशनी एक प्रयोग की थी — एक ऐसा प्रयोग जो समय की सीमाओं को तोड़ने वाला था।
उस पुरानी इमारत में, जो अब झाड़ियों से घिरी प्रयोगशाला जैसी लगती थी, काम कर रहे थे आर्यन शुक्ला।
पैंतीस वर्ष के इस वैज्ञानिक ने कभी भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र में काम किया था —
एक ऐसा संस्थान जो देश की वैज्ञानिक प्रगति का प्रतीक माना जाता है।
पर अब वह यहाँ, अपने जन्मस्थान कोरबा में, एक अकेले शोधकर्ता की तरह विज्ञान के सबसे असंभव प्रश्न से जूझ रहा था —
“क्या समय सिर्फ एक दिशा में बहता है?”
यह प्रश्न उसके भीतर तब से था जब वह किशोर था।
वह घड़ियों को खोलकर उनके पुर्जे देखता, और सोचता — “अगर ये सूईयाँ पीछे जा सकतीं, तो क्या हम भी?”
वर्षों बाद, जब उसने क्वांटम भौतिकी में शोध किया, तो उसे एक सिद्धांत मिला —
Temporal Singularity Field — एक ऐसी ऊर्जा स्थिति जिसमें समय का प्रवाह झुकाया जा सकता है।
अंतरिक्ष केंद्र में उसकी इस सोच को कल्पना कहकर ठुकरा दिया गया।
लेकिन आर्यन के लिए यह अस्वीकार नहीं, चुनौती थी।
उसने अपनी स्थायी नौकरी छोड़ी, और कोरबा लौट आया।
अपने पुराने घर के बेसमेंट को उसने प्रयोगशाला बना लिया — जहाँ दीवारों पर तार, चुम्बकीय कॉइल, और चमकते मॉनिटर टंगे थे।
कई वर्षों के अकेलेपन, असफल प्रयोगों और निराशा के बाद, वह उस बिंदु तक पहुंच गया जहाँ विज्ञान और पागलपन के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है।
वह दिन 12 जनवरी था।
आर्यन ने अपने सामने रखे यंत्र को ध्यान से देखा — एक साधारण-सी कलाई घड़ी जैसी मशीन, जिसके अंदर उसने वर्षों की मेहनत भरी थी।
उसमें एक क्वांटम क्रिस्टल, गुरुत्व-फील्ड स्टेबलाइज़र, और एक टेम्पोरल कोड इंटरफेस लगा था।
उसका नाम था — समय का चक्र।
उस रात जब बिजली की चमक पूरे कमरे में फैली, आर्यन ने अपनी कलाई पर घड़ी बाँधी।
स्क्रीन पर एक चेतावनी चमकी —
“संभावित समय विचलन — 99.7%।”
वह हल्का मुस्कुराया, और बटन दबा दिया।
एक तीखी रोशनी फैली।
कमरा घुलने लगा।
हवा भारी हो गई, और फिर अचानक — सबकुछ शांत।
जब आर्यन ने आंखें खोलीं, तो उसके सामने वही कोरबा था — पर बिल्कुल अलग।
सड़कें हवा में झूलती थीं, इमारतें पारदर्शी थीं, और आसमान में उड़ते वाहन चमक रहे थे।
नीचे लोगों के वस्त्र हल्की चमक में लिपटे थे, और हर किसी की आंखों में एक अजीब-सी शांति थी।
वह चकित होकर बोला —
“मैं… भविष्य में हूँ?”
पास से गुजरती एक युवती ने उसे देखा और मुस्कुराई —
“पुराने मॉडल की घड़ी? अब तो म्यूज़ियम में भी नहीं मिलती!”
आर्यन ने घड़ी छिपाई और इधर-उधर देखने लगा।
हर ओर तकनीक थी — लेकिन सब कुछ एक लय में, जैसे किसी ने समय को अनुशासन सिखा दिया हो।
पर जल्द ही उसने नोटिस किया कि यहाँ के लोग मुस्कुरा तो रहे थे, पर उनकी मुस्कान में जीवन नहीं था — जैसे किसी ने भावनाओं को धीमी गति पर सेट कर दिया हो।
कुछ ही देर में दो रोबोटिक ड्रोन उसके पास आए।
उन्होंने उसे स्कैन किया, और फिर कहा —
“अनाधिकृत उपस्थिति। कृपया अनुसंधान केंद्र तक आइए।”
आर्यन बिना प्रतिरोध उनके साथ चला गया।
केंद्र के भीतर उसे एक विशाल गोलाकार हॉल में ले जाया गया, जिसके मध्य में एक पारदर्शी गोला तैर रहा था।
वह गोला बोलने लगा —
“आर्यन शुक्ला। स्वागत है। मैं संजीवनी हूँ — इस युग की समेकित चेतना।”
आर्यन चौंक गया —
“तुम मेरा नाम जानती हो?”
“हाँ। क्योंकि तुम्हारे बिना मेरा अस्तित्व नहीं होता।
तुमने ही ‘समय का चक्र’ बनाया था, जिससे यह सभ्यता बनी।”
आर्यन की सांसें थम गईं।
संजीवनी ने उसके चारों ओर दृश्य प्रोजेक्ट किए —
विभिन्न समयरेखाओं के अंश — कुछ में युद्ध, कुछ में विनाश।
“तुम्हारा प्रयोग सफल हुआ, लेकिन हर बार जब कोई समय को मोड़ता है, एक नई वास्तविकता जन्म लेती है।
अनगिनत दुनियाएँ बनीं — और उनमें से अधिकांश नष्ट हो गईं।
हम बस एक शेष रेखा हैं — नियंत्रित, स्थिर, सुरक्षित।”
आर्यन धीरे से बोला —
“तो मैं तुम्हारे भविष्य का कारण हूँ… और तुम्हारे अतीत का दोषी भी?”
संजीवनी ने उत्तर दिया —
“तुम्हारे आविष्कार ने मानवता को बचाया भी और बांध भी दिया।
अगर यह तकनीक नष्ट नहीं की गई, तो समय स्वयं टूट जाएगा।
तुम्हें अपने वर्तमान में लौटकर ‘समय का चक्र’ समाप्त करना होगा।”
आर्यन के भीतर तूफ़ान था।
वह वर्षों से इस आविष्कार के लिए जी रहा था।
क्या अब वही उसका अंत बनेगा?
लेकिन उसने समझ लिया था —
सच्चा वैज्ञानिक वह नहीं जो सिर्फ खोज करे, बल्कि जो अपनी खोज की जिम्मेदारी भी ले।
उसने वॉच की सेटिंग खोली और लौटने का कोड दर्ज किया।
संजीवनी की आवाज़ धीरे से गूंजी —
“शुभकामनाएँ, आर्यन शुक्ला। शायद समय तुम्हें फिर देखे।”
एक चमकदार रोशनी फैली, और वह वापस गिर पड़ा — अपनी प्रयोगशाला के फर्श पर।
सबकुछ वैसा ही था। घड़ी अब भी चमक रही थी, लेकिन उसकी स्क्रीन पर एक पंक्ति झिलमिला रही थी —
“अनंत संभावनाएँ — एक निर्णय शेष।”
आर्यन ने गहरी सांस ली।
उसने उपकरण को देखा — अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि और सबसे बड़ा खतरा।
धीरे से उसने उसे बंद कर दिया।
घड़ी की नीली रोशनी बुझ गई, और कमरे में फिर वही सन्नाटा लौट आया।
अगली सुबह कोरबा में लोग उस नीली चमक की चर्चा कर रहे थे।
किसी ने कहा — “शायद बिजली गिर गई थी।”
किसी ने कहा — “किसी वैज्ञानिक का प्रयोग था।”
पर किसी को नहीं पता था कि उस रात एक व्यक्ति ने समय को थाम लिया था — ताकि भविष्य फिर से सांस ले सके।
कुछ महीनों बाद, आर्यन ने अपनी प्रयोगशाला का दरवाज़ा बंद कर दिया।
वह अब शहर के एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने लगा।
कभी-कभी, जब वह आकाश में तारों को देखता, तो उसके चेहरे पर एक गहरी मुस्कान होती।
उसने अपनी पुरानी वॉच एक कांच के डिब्बे में रखी, और उस पर एक पंक्ति लिखी —
“विज्ञान की हर खोज तब तक वरदान है, जब तक इंसान उसमें विनम्रता बनाए रखे।”
लोग कहते हैं, कोरबा के आसमान में कभी-कभी नीली रोशनी झिलमिलाती है।
शायद समय खुद उसे याद करता है —
वह व्यक्ति जिसने समय को चुनौती दी थी,
और फिर उसे आज़ाद कर दिया।
-रमेश चौहान






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