मेरा दृष्टिकोण: सनातन मुझे क्यों भावे
-डॉं. अर्जुन दूबे
हिंदू-सनातन एक दूसरे के पर्याय जाने जाते हैं; सनातन तो शास्वत है जिसे हिंदू धरोहर के रूप मे सजोये हुए हैं । सनातन जीवन दर्शन है, यह माध्यम है ‘उसे’ जानने का, समझने का और यहां तक उसी में समाविष्ट हो जाने का ।
सनातन में ज्ञानमार्ग है,भक्तिमार्ग है, कर्ममार्ग भी है; ज्ञान से अनंत, अनादि की खोज करते रहिये कोई रूकावट नहीं, कर्म करते हुए आगे बढें, थक गये तो समर्पण कर भक्ति मार्ग पर चले आवें ।
जानने की जिज्ञासा हुई कि अनंत क्या है, ब्रह्यदेव और विष्णुजी जानने की कर्मयात्रा पर निकल पड़े । ब्रह्मा जी जल्दी में थे, वापस आ गये किंतु विष्णु जी चलते रहे पर उस अनंत का पार कैसे पायें! थक कर स्वीकार किया कि हे अनंत आप अपरंपार हैं । मैं आप का भक्त हूं । सृष्टि की रचना, पालन और विनाश कार्य को अनंत- अनादि ने ब्रह्मा, विष्णु महेश को दे दिया है । मानव में इन तीनों का गुण होता है और वह वह भी उस अनादि को ज्ञान मार्ग, भक्ति मार्ग और कर्म मार्ग से जानने में अहर्निश तत्पर रहता है चाहे वह ‘उसे ‘निराकार समझे अथवा साकार!
सनातन प्रतिबंध से परे है. इसकी अनगिनत शाखायें हैं । यह ट्रांसफरमेशन को स्वीकार करते हुए आगे बढता ही रहा हैं । वास्तव में इसका कोई मेंडेट (अधिदेश) नही है, यह स्वयं में प्रजातांत्रिक प्रकृति का है, तभी तो अनादि काल से शाश्वत है । सनातन में लिंग भेद-भाव नहीं है; अर्धनारीश्वर का विलक्षण सौंदर्य कहां मिलेगा! गजब की समानता है । वाणी और अर्थ के समान प्रकृति-पुरूष/शिव और पार्वती सदृश इसकी जो संबध है वह अविभाज्य है ।
ईसाई धर्म के अनुसार ईश्वर ने मानव की सृष्टि की और उसे देवदूतोंं की भांति अमर बनाया था । ईश्वर के आदिम संतान एडम और ईद (Adam&Eve) भी अमर थे; पूर्ण स्वतंत्र थे कहीं भी जाने के लिए किंतु उन्हें इडन गार्डेन के एक पेड़ के फल को चखने की स्वंतत्रता नहीं थी जिसे Forbidden Tree कहा गया । शैतान के बहकावे में ईव ने फल चखा, चेतना की अनुभूति हुई तो फल चखने मे अवज्ञा का भय हुआ, फिर उसने एडम को भी चखवाया, तो फिर एडम को भी भान हुआ कि ईश्वर की अवज्ञा हो गयी है । ईश्वर को पता चल गया तो उसने श्राप दिया कि अब से तुम जन्म लोगे और मरोगे । तभी से मानव जन्म लेता है मरता भी है । इस्लाम में भी मूल आदम और हौवा हैं ।
ईश्वर के मानडेट हैं, स्वीकार करो; क्या तर्क करने की गुंजाइश है? ईसाई में चेतना/ज्ञान के कारण मानव ने अमरत्व खोया है तो सनातन मे ज्ञान के माध्यम से उस अनादि परमात्मा को अमर आत्मा के द्वारा जानने के तीनो मार्ग हैं । ज्ञान पराभौतिक के द्वार तक कर्म के भौतिक मार्ग के माध्यम हैं जो मानव को भक्ति के साथ समर्पण मार्ग की ओर ही नहीं ले जाता है बल्कि उसी में विलीन हो जाने का परमानंद मोक्ष मार्ग दिखाता है । ऐसे में सनातन मुझे क्यों न भावे!