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अभी खरीदेंभाग 1: सनातन धर्म का दार्शनिक आधार
1.परिचय: सनातन और शाश्वत
सनातन का अर्थ और उसके दार्शनिक आयाम
सनातन धर्म, जिसे प्रायः हिंदू धर्म या वैदिक धर्म भी कहा जाता है, का अर्थ ‘शाश्वत धर्म’ है। यह धर्म उस सिद्धांत का प्रतीक है जो न केवल अनादि और अनंत है, बल्कि मानव सभ्यता के उदय से भी पूर्व विद्यमान है। सनातन धर्म की परिभाषा केवल इसकी प्राचीनता तक सीमित नहीं है; इसे इसलिए भी ‘सनातन’ कहा जाता है क्योंकि इसे ईश्वर द्वारा संरक्षित माना गया है और यह मानव को मोक्ष या अंतिम मुक्ति की ओर ले जाने की क्षमता रखता है।
वैदिक धर्म का अर्थ ‘वेदों का धर्म’ है, और वेद हिंदू धर्म के आधारभूत ग्रंथ हैं। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने वेदों में न केवल विश्व के रहस्यों को उद्घाटित किया, बल्कि अपनी आंतरिक आध्यात्मिक अनुभूतियों को भी व्यक्त किया। उपनिषदों में इन अनुभूतियों का विस्तार मिलता है, जिन्हें साक्षात् और अचूक माना जाता है। वेदों की यह गहराई और प्रमाणिकता सनातन धर्म को अपौरुषेय बनाती है—यह मानव निर्मित नहीं, बल्कि दिव्य रूप से प्रेरित माना जाता है।
‘सनातन’ शब्द का अर्थ है ‘शाश्वत’, जो सदा से है और सदा रहेगा। यह शब्द उस धर्म और दर्शन का प्रतीक है, जो अनादि और अनंत है। सनातन धर्म को ‘वैदिक धर्म’ या ‘हिंदू धर्म’ भी कहा जाता है। इसका आधार वेदों, उपनिषदों, स्मृतियों, और पुराणों में निहित है। यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति और दार्शनिक दृष्टिकोण है, जो मानव अस्तित्व के शाश्वत सत्य और उसकी अंतिम मुक्ति की खोज को रेखांकित करता है।
सनातनसनातन धर्म के संबंध में स्वामी शिवानंद जी अपने किताब हिन्दूतत्व-विवेचन (ALL ABOUT HINDUISM) में लिखते हैं- ‘’सनातन धर्म की आधारशिला श्रुति है, स्मृतिग्रन्थ इसकी भित्तियाँ हैं तथा पुराण-इतिहास इसके स्तम्भ हैं। प्राचीनकाल में श्रुतियाँ मौखिक याद की जाती थीं। गुरु शिष्य को गा कर सुनाते थे और शिष्यगण उनका अनुसरण करते हुए उन्हें गाते थे। वे लिखित नहीं थीं। समस्त मत तथा दर्शन-पद्धतियाँ श्रुति को अन्तिम प्रमाण मानती हैं। श्रुति के पश्चात् स्मृति को प्रामाणिक माना जाता है।’’
सनातन का अर्थ
सनातन का शाब्दिक अर्थ है “जो कभी समाप्त न हो,” अर्थात शाश्वत, अनंत और अपरिवर्तनीय। यह उस सत्य का प्रतिनिधित्व करता है, जो समय, स्थान और परिस्थिति से परे है। सनातन धर्म में यह विश्वास है कि यह धर्म न तो किसी व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित किया गया है और न ही किसी ऐतिहासिक घटना पर आधारित है। इसे अपौरुषेय (मानव निर्मित नहीं) माना गया है और इसे ईश्वर प्रदत्त धर्म समझा जाता है।
दार्शनिक आयाम
सनातन धर्म के दार्शनिक आयाम बहुआयामी हैं और इसमें जीवन, ब्रह्मांड, और ईश्वर के गूढ़ प्रश्नों का उत्तर खोजा गया है। इसके प्रमुख दार्शनिक आयाम निम्नलिखित हैं:
1. सत्य की अवधारणा
सनातन धर्म का मूल सत्य की खोज में निहित है। सत्य को केवल एक नैतिक मूल्य नहीं, बल्कि अस्तित्व का आधार माना गया है। ऋग्वेद में सत्य को ‘ऋतं सत्यम्’ के रूप में परिभाषित किया गया है, जो ब्रह्मांड के नियमों और जीवन के अनिवार्य सिद्धांतों का प्रतीक है। उपनिषदों में सत्य को ‘सत्यम्, ज्ञानम्, अनन्तम् ब्रह्म’ के रूप में वर्णित किया गया है। इसका तात्पर्य यह है कि सत्य केवल बौद्धिक समझ तक सीमित नहीं, बल्कि यह ज्ञान और अनंतता का अनुभव है।
2. ब्रह्म और आत्मा का एकत्व
सनातन धर्म के अनुसार, ब्रह्म (सर्वोच्च सत्ता) और आत्मा (व्यक्तिगत चेतना) में कोई भेद नहीं है। यह अद्वैत (गैर-द्वैतवाद) का सिद्धांत है। उपनिषदों के महावाक्य, जैसे ‘अहं ब्रह्मास्मि’ (मैं ही ब्रह्म हूँ) और ‘तत्त्वमसि’ (तू वह है), इस एकता को रेखांकित करते हैं। यह विचार व्यक्ति को आत्मबोध और मोक्ष की ओर प्रेरित करता है।
3. धर्म का सार्वभौमिक स्वरूप
सनातन धर्म केवल धार्मिक अनुष्ठानों का संकलन नहीं है, बल्कि यह जीवन के सभी पहलुओं को समाहित करता है। इसमें चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) और तीन ऋण (देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण) का वर्णन किया गया है। यह जीवन के संतुलन और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने की शिक्षा देता है।
4. कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत
सनातन धर्म कर्म के सिद्धांत पर आधारित है। यह मानता है कि हर क्रिया का फल अवश्य मिलता है, चाहे वह इस जन्म में हो या अगले जन्म में। पुनर्जन्म और कर्मफल का यह सिद्धांत व्यक्ति को नैतिक और आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।
5. मोक्ष की अवधारणा
मोक्ष सनातन धर्म का अंतिम लक्ष्य है। इसे आत्मा की मुक्ति और ब्रह्म के साथ एकत्व के रूप में देखा जाता है। यह व्यक्ति को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त करता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान (ज्ञानयोग), कर्म (कर्मयोग), भक्ति (भक्तियोग), और ध्यान (राजयोग) का मार्ग बताया गया है।
सनातन धर्म और शाश्वत सत्य
सनातन धर्म के दार्शनिक आयाम शाश्वत सत्य की अवधारणा पर आधारित हैं। यह सत्य केवल बाहरी दुनिया का नहीं, बल्कि आंतरिक आत्मा का भी है। यह धर्म सिखाता है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर ब्रह्म का अंश विद्यमान है। यह आत्मा और ब्रह्म के एकत्व का बोध कराता है।
वेद और उपनिषदों की भूमिका
सनातन धर्म की नींव वेदों और उपनिषदों में है। वेदों को ज्ञान का परम स्रोत माना गया है। ऋग्वेद में ‘एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति’ का उल्लेख सत्य की एकता और उसकी विविध अभिव्यक्तियों को दर्शाता है। उपनिषद वेदांत दर्शन का आधार हैं और वे आत्मा और ब्रह्म के गहन रहस्यों को उजागर करते हैं।
सनातन धर्म न केवल धर्म का पर्याय है, बल्कि यह एक जीवन दर्शन है। इसका उद्देश्य मानव को सत्य, धर्म, और मोक्ष की ओर प्रेरित करना है। सनातन धर्म की शाश्वतता और इसके दार्शनिक आयाम इसे न केवल प्राचीन, बल्कि आधुनिक संदर्भ में भी प्रासंगिक बनाते हैं। यह धर्म अपने नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के माध्यम से मानवता को एकता, सहिष्णुता, और शाश्वत सत्य की ओर अग्रसर करता है।

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