काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-10-डॉ. अशोक आकाश

गतांक से आगे

काव्‍य श्रृंखला :

सांध्‍य दीप भाग-10

-डॉ. अशोक आकाश

काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-10-डॉ. अशोक आकाश
काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-10-डॉ. अशोक आकाश

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सांध्यदीप नित आगे बढ़,
नवयुग का स्वागत करता है |
लूटे ना कोई कुलदीपक,
त्वरित हिफाजत करता है ||

दुनिया भर में अमन-चैन हो,
यही इबादत करता है |
अस्तित्व बचाने कीट पतंगों,
से नित लड़ता रहता है ||

क्यों कर लेता निशा वरन |
अंतर तल अंधकार गहन ||

और कभी उच्छवास ले लेकर ,
गुंजरित करता उपवन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
***

//41//

हो देखो शतपथ अनुगामी,
नवयुग स्वागत कर तो लो |
बुझ ना जाये जग कुलदीपक,
त्वरित हिफाजत कर तो लो ||

अखिल विश्व में अमन चैन हो,
यही इबादत कर तो लो |
अस्तित्व बचाने कीट पतंगों,
से एकजुट हो लड़ तो लो ||

फैले शांति सद्भाव किरण |
दिव्य सरस संस्कार शरण ||

सत्य अहिंसा अपना लो,
जलने से बचा लो मधुवन को |
अंधकार में भटके हैं जो ,
कर उज्जवल उनके तम को ||
***

//42//

ज्ञानी जन की आशीष छाया,
पल में ही दुख हर लेता |
इतने सरल यह महागरल भी,
शुचि जग हित खुद वर लेता ||

यही है जग में जो गैरों का,
खुद चलकर दुख हर लेता |
सदा सुखी रहते हैं वह जो,
इनके चरण रज धर लेता ||

अप्रतिम होती उनकी ओज |
जो खिल मुरझाती हर रोज ||

सांध्यदीप ऐसी कलियों से,
गुंजरित करता उपवन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को |
***

/43/

वीरों की बलिदानी गाथा,
खंडित नहीं होने देंगे |
उनकी स्वर्णिम कुर्बानी,
गर्दिश में नहीं खोने देंगे ||

याद करो इतिहास के पन्ने,
हक के लिए लड़ते वह लोग |
लहूलुहान गिरे गश खाकर,
समा गए धरती की गोद ||

यहीं रह जाते चाल चलन |
संकल्पित अंदाज नमन ||

प्रबल किरण से ध्वस्त करे ,
हैवानों के क्रूर नर्तन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||

/44/

मान नीति और न्याय के खातिर,
सब कुछ अर्पण कर देते |
जीवन जीत चुके हैं जो,
खुश हो अपना मन भर लेते ||

जहां इरादों की सेना,
लड़ते तूफॉ से टकरा कर |
बदल जाए कश्ती किस्मत की,
चल पड़ते फिर इतराकर ||

धारण कर लो दिव्य वचन |
फूट पड़े वाणी से रतन ||

सांध्य दीप है शुद्धिकार,
जो खरा बनाता कंचन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
“””””””””

-डाॅॅ. अशोक आकाश

शेष अगले भाग में

कवि के अन्‍य काव्‍य श्रृंखला- किन्‍नर व्‍यथा

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