काव्य श्रृंखला :
सांध्य दीप भाग-15
-डॉ. अशोक आकाश

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कुछ जन भ्रम पाले जीवन भर,
ख्वाब मधुर खोये रहते |
ईशभक्ति से जीव मुक्ति का,
भाव हृदय बोये रहते ||
देखे पत्थर में वे ईश्वर,
फर्ज भूल सोये रहते |
वक्त गुजरने पर रोते,
जिम्मेदारी ढोये रहते ||
नित्य बहाते कर्मनीर |
वे बन ही जाते धर्मवीर ||
कर्मशक्ति से ईशभक्ति का,
मेल करो सुख दें जन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
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कर्मवीर दिनकर बन उभरे,
बने नवाब वजीर |
कठिन तपस्वी ही बनता,
दुनिया के लिये नजीर ||
खुशहाली के लिये तरसता,
राजा रंक फकीर |
आलस में सोये रहता नित,
पीटे वही लकीर ||
कड़क परिश्रम से बलवीर |
पत्थर में लिखता तकदीर ||
कर्मवीर का बहे पसीना,
शुद्ध रखे तन मन धन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
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दिशाहीन पथ भटके सज्जन,
भ्रष्ट पतित हो जाता |
सद्मारग प्रेरित दुर्जन,
चढ़ उच्च शिखर सुख पाता ||
नियमित जलता तन्मयता से,
जग की तमस मिटाता |
कीट पतंगों संग जूझे,
बुझ जाते पर लड़ जाता ||
राख हो जाता जलके जिसम |
तेल में मिलता बनके भसम ||
जब तक प्राण रहे लड़कर,
थर्रा देता जूझकर जम को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
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यौवन फिसलन भरी पहाड़ी,
गिर जायेगा फिसल फिसल |
इस चढ़ाव में थिरकन भी है,
चढ़जा साथी सम्हल सम्हल ||
उम्र की इस दहलीज से बचकर,
सावधान बेदाग निकल |
वक्त का निर्मम पहिया,
जीवनदीप बुझाता कुचल कुचल ||
करता जो गैरों की नकल |
आती उसको गिरके अकल ||
मर्यादा ही बॉधे रखती,
नेकराह में यौवन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
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-डॉ. अशोक आकाश