सांध्य दीप भाग-18
-डॉ. अशोक आकाश
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गहन अमावस निशा अंधेरी,
चुप चुप लुक छिप आयी थी |
लप लप करती लौ से डरती,
घबरायी फरमायी थी ||
आप आये मेरे घर मैने,
अभिनंदन कर जगह दिया |
मुझमें छिपा अनमोल रतन,
क्यों तिरस्कार बेवजह किया ?
तल में ही ले लो स्थान |
तुझसे भी है जग कल्याण ||
सांध्यदीप सुनते क्रंदन,
करे बंधहीन बंदीजन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
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जहॉ ज्वलित हो सांध्यदीप,
है वो पूजा की थाली |
बगिया खून पसीना सींचे,
है वो ऐसा माली ||
कर्मवीर ही कीर्तिवान हो,
सुवासित रहता जग में |
संघर्षशील युवा अक्सर,
सुमेरु बदल देता रज में ||
अब कर्मयुद्ध संधान करो |
स्वयं सिद्ध कृति ज्ञान वरो ||
सांध्यदीप द्रुत ज्ञान बढ़ाने,
सीख बताता कण कण को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
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जीने की तरकीब सीख लो,
पढ़कर वेद पुराण से |
लेकर देखो वाणी बाइबिल,
गीता और कुरान से ||
जीवन में संगीत भरो,
सब धर्मों के सम्मान से |
सर्व धर्म समभाव जोड़े,
इंसानों को इंसान से ||
दृढ़ निश्चय जब पलता मन |
तप ढलता फौलादी तन ||
सांध्यदीप नवजीवन देता,
शोषित व्यथित पतित जन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
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धैर्य समाहित जिसके अंतस,
उसकी सफलता क्या कहना ?
साहस शौर्य पराक्रम गाथा,
गढ़ते काल गति बढ़ना ||
लिखे स्वयं इतिहास वीर,
गैरों के लिये लड़ाई कर |
थके कदम पीछे न हटे,
मंजिल की अहम चढ़ाई पर ||
जो दृढ़वत हो चले उसूल |
दुर्जन चुभे विष बुझे त्रिशूल ||
सद्विचार से सांध्यदीप,
करे निर्विकार विकृत जन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
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ऐ नवयुवकों उठो सम्हालो,
तुम अपने खुद का आवेग |
आगे बढ़ नित गढ़ सकते हो,
हाथों से किस्मत की रेख ||
मन का सारा तम हर लेता,
दिव्यजनों का नम संकेत |
वरन करो जीवन में उतारो,
सांध्यदीप का सुधि संदेश ||
दूर करो झट जीवन क्लेश |
सुख से गुजरे जीवन शेष ||
सांध्यदीप है ज्ञानदीप ,
जो सुनते कारुण क्रंदन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
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-डॉ. अशोक आकाश