काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-19-डॉ. अशोक आकाश

सांध्‍य दीप भाग-19

-डॉ. अशोक आकाश

गतांक से आगे

काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-19-डॉ. अशोक आकाश
काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-19-डॉ. अशोक आकाश

/83/

कोई ममतामयी मॉ बच्चों को,
भूखे क्यों सुलायेगी ?
निरुपाय मॉ वह लाचारी !
भूल कभी क्या पायेगी ?

चाहत तो रहती ही सबको,
स्वर्णिम मंजिल पाने की |
किसलय को भी मिल जाये,
कुछ आजादी इतराने की ||

करता जो सबका सम्मान |
उसका ही होगा यशगान ||

नेकी पथ चलने नित प्रेरित,
करता सज्जन दुर्जन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
***

/84/

परहित कर जो हुआ प्रफुल्लित,
निर्विरोध बजती ताली |
सारी दुनिया की खुशी में,
होती इनकी खुशहाली ||

संयम सागर पार हुआ,
फिर भी न छुटे मुख से गाली |
धीरज सिंधु फूट पड़े,
जले क्रोधानल विप्लव वाली ||

दीवार ढहाने लड़ता जा |
समता से आगे बढ़ता जा ||

आलस क्रोध लोभ मद तज,
जगहित खुशहाली दे जन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
***

/85/

सांध्यदीप परिधि जो आये,
भरता नस नस में पारा |
अपने से जीतता कोई एक,
मौत से तो हर कोई हारा ||

क्षीण शक्ति तल्लीन भक्ति,
गमगीन सहारा ढूंढ मन |
अपनों से अपनापन न मिले,
तब हो जाती जीवन से उबन ||

भरे हौसलों की ऊड़ान |
उत्साहित चढ़ो कठिन चढ़ान ||

असफलता लड़ना सिखलाती,
सह जाओ इनके हन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल इनके तम को ||
***

/86/

रिश्ते क्या पराये हो जाते,
गैरों की बातों में होकर |
धरती मेरी जॉ से बढ़कर,
मरें जीयें इनकी होकर ||

इसकी आन पे मर मिट जाने,
व्याकुल आतुर पल पल मन |
कितने रोड़े आये जोड़ूं,
दुखियों के टूटे बंधन ||

आशीषों की दृढ़ छाया |
बढ़ते जाती जग की माया ||

सांध्यदीप देवों के तुल्य,
बना देता पथ पाहन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
***

/87/

जब हो अटल विश्वास किसी पर,
और वो टल जाता है |
करता स्वारथ पंगु विकल,
निर्मल मन छल जाता है ||

जुल्मी के आगे नतमस्तक,
जब नेक इंसॉ होते |
सच है उसकी भावी पीढ़ी,
अंधकार में खोते ||

कर हिंसक का तिरस्कार |
दे दो सेवक को पुरस्कार ||

दुःख दहन करो सुख वर्षण कर,
नित तोड़ दिखा हर बंधन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
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-डॉ. अशोक आकाश

शेष भाग अगले अंक में

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