काव्य श्रृंखला :
सांध्य दीप भाग-2
-डॉ. अशोक आकाश
काव्य श्रृंखला : सांध्य दीप भाग-2
सांध्य दीप भाग-2
/5/
निराश्रित जन आश्रय दे,
शुचि आशा दीप जलाता |
पल में बना धनवान अकिंचन ,
तन मन सुमन खिलाता ||
गूंगा मृदुभाषी होता,
कृषतन बलवान बनाता |
चिर यौवनमय अंधकार,
झट कोसों दूर भगाता ||
सुगंधित जीवन उपवन |
सँवरे द्रुत संस्कार सदन ||
ज्वलित दीप रवि रक्तिम आभा,
दूर करे हर उलझन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
/6/
दिव्य सुसज्जित संस्कारों से,
कर चरित्र निर्माण सबल |
गंगा जमुन संस्कृति पुष्पित,
गुंजरित दस दिश गुणगान प्रबल ||
करने आतुर विकल विश्व को,
मचल रहा नित नव कलि दल |
बुझा लो अपनी रक्त पिपासा,
मजा दो अरिदल में खलबल ||
जहां सुपथ संगठित युगल |
वाग्विभूति बन अड़ा अटल ||
सांध्यदीप सुधि साहस देता,
निर्बल दीन दुखी जन को |
अंधकार में भटके हैं,
जो कर उज्जवल उनके तम को ||
/7/
नवयुवकों से आस लगाए ,
है बैठी सारी दुनिया |
प्रेम शांति सद्भाव से गुंजरित,
सुख सुरभित न्यारी दुनिया ||
संस्कारों से सृजित पल्लवित,
नारी से हारी दुनिया |
विकल व्यथा मिटती जन की,
जिनकी दुख से भारी दुनिया ||
मन में रखता दीन धरम |
राह सरल करें मधुर वचन ||
पीर हरो संतोष करो ,
धूल समझ पर के धन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
/8/
हर निराश जन को आश्रय दे,
आशा दीप जलाता |
मुश्किल क्षण हिम्मत धीरज धर,
कर यूं हवा में उछाला ||
खुद जल जल शीतल कर देता,
अंतर्मन की ज्वाला |
जो भी भटके राह मुसाफिर,
यह बतलाने वाला ||
नवयुवकों की आश किरन |
निर्भीक शेर के पास हिरण ||
जब भी मन बहके झिंझोड़ता,
खुद अपने अवचेतन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तमको ||
/9/
मर्मस्पर्शी मधुर वाणी,
बहस का साहस कौन करें |
भावेश में बहे प्रलय को,
नम संकेत से मौन करे ||
छलक रहे अनुभूति ह्रदय में,
अमिय सरस अंकुरित बीज |
अपराजित मन की भावुकता ,
भावों में बहता भयभीत ||
हैं जो अपने मन का मीत |
उनके जीवन में संगीत ||
सांध्यदीप पुलकित होता ,
अनुभव कर जीवन दर्शन को |
अंधकार में भटके हैं ,
जो कर उज्जवल उनके तमको ||
-डाॅॅ. अशोक आकाश
कवि के अन्य काव्य श्रृंखला- किन्नर व्यथा