काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-22-डॉ. अशोक आकाश

सांध्‍य दीप भाग-22

-डॉ. अशोक आकाश

गतांक से आगे

काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-22-डॉ. अशोक आकाश
काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-22-डॉ. अशोक आकाश

/98/

जब सॉझ हुआ तब मधुर बांसुरी,
तान सुहानी लगती है |
जुगनू की चमक मदनी की महक,
श्रुति गान सुहानी लगती है ||

मन पड़े पुलक लख दिव्य झलक,
जगती रति रानी लगती है |
युग युग से हर नारी की,
एक राम कहानी लगती है ||

जहां अग्नि परख निखरे सीता |
वहां नित परखे गंगा गीता ||

तन कलिंग करें मन मलिंग करें,
जी तोड़ जूझे जीते जंग को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
***

/99/

सबको देता एक रोशनी,
भरता नस-नस में पारा |
कोई जीता जीवन बाजी,
मौत से तो हर कोई हारा ||

हर पल रहता बुझा बुझा सा,
जिसको अपनों ने मारा |
जो जीता नित जीवन बाजी,
एक दिन अपनों से हारा ||

भरे हौसलों की ऊड़ान |
आशीषों से सुख सम्मान ||

जहरीले नागों को पकड़कर,
कुचल मसल देता फन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||

/100/

सांध्यदीप संस्कार परिधि में,
पावन पूजा गृह गढ़ते |
अनुभव सिंधु तरंगित मन में,
उत्साहित मंजिल चढ़ते ||

प्रातः निर्मल शीतल जल से,
अर्पण कर करता स्नान |
शॉत चित्त मिथ्या बातों का,
कर देता पल में संधान ||

परिपूर्ण आध्यात्मिक जीवन |
जड़ भी जो कर दे चेतन ||

ज्ञानी ध्यानी उत्सुक होते,
श्रुति पूजा गृह दर्शन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||

/101/

पूर्ण चन्द्र जब गगन डगर में,
नित नव कला दिखाता |
चौकस प्रहरी सॉझ दुपहरी,
प्रात निशि जॉ लुटाता ||

वंदित सिंह समर भू पर,
संकल्पित रार मचाता |
हैवानी सीना खंडित कर,
गर्वित सर उठ जाता ||

निरख गगन थल जलवासी |
विष उगल मचलती प्रबल दासी ||

मद चूर्ण करे काज पूर्ण करे,
रण में दिखलाता दमखम को |
अंधकार में भटके हैं जो
कर उज्ज्वल उनके तम को ||

-डॉ. अशोक आकाश

शेष भाग अगले अंक में

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3 thoughts on “काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-22-डॉ. अशोक आकाश

  1. कालजयी रचना हेतू बहुत बहुत बधाई हो ।
    बहुत ही सुन्दर शब्द संयोजन है।

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